Navratri 2023 Special: चैत्र नवरात्रि के विशेष अवसर पर हम बताने जा रहे हैं सीहोर जिले की आष्टा तहसील के भंवरा वाली माता मंदिर का इतिहास. किंवदंति के अनुसार, मंदिरों को तहस नहस करने वाला औरंगजेब भंवरा वाली माता के मंदिर को भी ध्वस्त करने आया था, लेकिन कहा जाता है कि माता के चमत्कार को देखकर औरंगजेब उल्टे पैर ही लौट गया था. किंवदति यह भी कहती है कि भंवरा ढाई हजार साल पुराने माता के इस मंदिर में उसी समय से दो अखंड ज्योति जल रही हैं. वहीं, मंदिर के नजदीक बावड़ी में कभी पानी खत्म ही नहीं होता. नवरात्रि पर्व के दौरान माता के श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां दर्शन के लिए आते हैं.
मां को दंडवत कर चला गया था औरंगजेब
ऐसी मान्यता है कि औरंगजेब जब भारत में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासतों और स्थलों को तहस-नहस अभियान में जुटा हुआ था, तो यहां भी आया था. औरंगजेब ने तय कर रखा था कि वह हिन्दुओं के प्रत्येक देव स्थल के सम्मुख जाएगा और तीन आवाज लगाएगा. अगर उसे वहां से किसी चमत्कारी स्थान की अनुभूति होगी तो उसे नष्ट नहीं करेगा.
जब औरंगजेब ने गढ़ भंवरा में मां दरबार के सम्मुख आवाज लगाई तो उसे कुछ विशेष अनुभूति हुई और वहां पर दंडवत प्रणाम करते हुए इलाही नाम से संबोधित करके गया. तभी से लंबे समय तक भंवरा को इलाही माता का भंवरा के रूप में भी पुकारा जाने लगा.
पाली भाषा में मिलते हैं मंदिर के ऐतिहासिक प्रमाण
भंवरा वाली माता का महत्व भी किसी शक्तिपीठ से कम नहीं है. मंदिर में सनातनकाल से दो अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित है, जो कि देशभर में ग्राम भंवरा को एक ऐतिहासिक और गौरवशाली पहचान प्रदान करने के लिए पर्याप्त है. इंदौर-भोपाल राजमार्ग पर आष्टा तहसील मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर जताखेड़ा जोड़ से दक्षिण की और 17 किमी दूर विंध्याचल पर्वत से लगा हुआ है. पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार यहां पर स्थित माताजी का मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है. पुरातत्व के अनुसार मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान मिले शिलालेख पर पाली भाषा में मंदिर की ऐतिहासिकता का प्रमाण मिलता है. यहां शिलालेख वर्तमान में जिला संग्रहालय में रखा है.
अलग-अलग रूप में दर्शन देती हैं मां
इस मंदिर में माता की प्रतिमा चैतन्य रूप में है. जो श्रद्धालु याचक के रूप में मां के दरबार में पहुंचते हैं, उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. मान्तया है कि सच्चे साधक को मां के यहां चारों पहर में अलग-अलग रूप में दर्शन भी होते हैं. माता के दरबार के सम्मुख एक बावड़ीनुमा बड़ा जलाशय है, जो 120 फीट लंबा, 50 फीट गहरा और 30 फीट चौड़ा है. बावड़ी में 100 से अधिक सीढ़ियां हैं. इसके जल का उपयोग आमजन पेयजल के रूप में करते हैं. ग्राम के अनेक बड़े व गहरे जलाशय कई बार सूख गए, लेकिन माताजी की इस बावड़ी में कभी भी जलाभाव नहीं हुआ.
दरबार के पास है शिवालय
यह शाश्वत मान्यता है कि जहां शिव है वहां शक्ति है. इन दोनों के बिना शिवशक्ति का अधिष्ठान अधूरा ही माना गया है. तभी तो इलाही माता के ग्राम भंवरा में मां दुर्गा के दरबार से लगभग 20 फीट की दूरी पर उत्तर दिशा में भोलेनाथ विराजमान हैं. शिवालय में बड़े आकार में शिवलिंग स्थापित है. पुरातत्व के अनुसार 2500 वर्षों से अधिक पुराने हैं.
करंज तेल के दो अखंड दीप
माताजी के दरबार में अखंड ज्योति एक तेलीय फल श्करंज्य ग्रामीण नाम कंजी और वनस्पति नाम पोंगामियाग्लेबरा करंज के तेल से जलती है. इस करंज को गांव में ही करंज के पेड़ों से प्राप्त कर ग्राम के ही तेली समुदाय घाने में निकालकर देते हैं. अखंड ज्योति का काम ग्राम के परमार समाज द्वारा सामूहिक रूप से लगान देकर चंदा इकट्ठा कर किया जाता है. वसूली पटेल लगान वसूली के साथ यहां धनराशि एकत्रित करते हैं. देश में कहीं पर भी भंवरा को छोडक़र दो अखंड दीप और वह भी करंज के तेल से जलने के प्रमाण नहीं मिलते हैं. मंदिर में नाथ संप्रदाय के लोग ही माता की पूजा अर्चना करते हैं.
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