Bhopal: धर्म बदल चुके आदिवासियों को सरकारी सुविधाओं से वंचित करने की मांग, भोपाल में डी-लिस्टिंग गर्जना रैली
Garjana Rally: डी-लिस्टिंग गर्जना रैली में 40 जिलों से आए जनजातीय समाज के लोगों ने शिरकत की. भेल दशहरा मैदान पर जुटे लोगों ने धर्म बदल चुके आदिवासियों को सरकारी सुविधाएं नहीं देने की मांग गी.
MP News: मध्यप्रदेश में धर्म बदल चुके आदिवासियों की अब खैर नहीं. जनजाति समाज की संस्कृति, पूजा-पद्धति से अलग हो चुके लोगों को डि-लिस्टिंग करने की मांग के लिए आवाज मुखर हो गई है. भोपाल के भेल दशहरा मैदान में जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आज डी-लिस्टिंग गर्जना रैली आयोजित की गई. रैली में 40 जिलों से जुटे जनजातीय समुदाय ने मांग की कि जो लोग जनजाति समाज की संस्कृति और पूजा-पद्धति से अलग हो गए हों, ऐसे लोगों को नौकरी, छात्रवृत्रि, आरक्षण और शासकीय अनुदान का लाभ नहीं दिए जाने की मांग की. जनजाति सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संयोजक कालू सिंह मुजाल्दा ने बताया कि डी-लिस्टिंग गर्जना रैली में 40 जिलों से हजारों लोग शामिल हुए.
जनजाति सुरक्षा मंच की डी-लिस्टिंग गर्जना रैली
रैली को जनजातीय समुदाय की भावनाओं का प्रकटीकरण बताते हुए उन्होंने कहा कि मांगें पूरी होने तक अभियान जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप जनजाति की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति, पूजा-पद्धति अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की गई है. अगर कोई त्यागकर दूसरी पूजा पद्धति और संस्कृति को मानता है तो जनजाति के लिए सुनिश्चित लाभ का पात्र नहीं रह जाता है. नौकरियों, छात्रवृत्तियों और शासकीय अनुदान देने के मामले में संविधान की भावनाओं को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है.
मंच के प्रांतीय संयोजक कैलाश निनामा ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 342 में धर्मांतरित लोगों को जनजातीय आरक्षण के लाभ से बाहर करने के लिए देश की संसद अब तक न तो कानून बना पाई है और न ही अब तक संशोधन के लिए प्रस्ताव पर ही विचार किया है. जबकि मसौदा 1970 के दशक से संसद में विचाराधीन है.
धर्म बदल चुके आदिवासियों को नहीं मिले लाभ
निनामा ने डी लिस्टिंग के पीछे वजह स्पष्ट करते हुए बताया कि धर्मांतरण के बाद जनजाति का सदस्य भारतीय क्रिश्चियन कहलाता है. इसके बाद कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ जाता है. चूंकि संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में स्पष्ट प्रविधान नहीं है, इसलिए धर्मांतरित लोग दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं. सौभाग्य सिंह मुजाल्दा ने बताया कि जनजाति सुरक्षा मंच लंबे समय से जागरूकता अभियान चला रहा है.
2000 की जनगणना और डॉ जेके बजाज के अध्ययन में आए तथ्यों को सामने रखते हुए 2009 में राष्ट्रपति को 28 लाख पोस्टकार्ड लिखे और सौंपे गए. इसके बाद 2020 में 448 जिलों के जिलाधीशों, संभागीय आयुक्तों के साथ राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों से मिलकर राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर डी-लिस्टिंग का अनुरोध किया जा चुका है. बावजूद लगातार समाज की अनदेखी की जा रही है.