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कारम बांध निर्माण से पहले ग्रामीणों ने की मुआवजे की मांग, आंदोलन की दी चेतावनी, जानें पूरा मामला

Karam Dam Dhar: धार जिले की धरमपुरी तहसील के गांवों के लोगों ने कारम बांध में रिसाव की वजह से हुए नुकसान को लेकर मुआवजे की मांग की है. मांग पूरी न होने पर उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दी है.

MP News: मध्य प्रदेश के धार जिले की धरमपुरी तहसील के गांव कोठिदा व भारुड़पुरा में 52 गांवों में सिंचाई के लिए कारम नदी पर बांध का निर्माण करने का काम किया गया था. 303 करोड़ की इस योजना के तहत 105 करोड़ की लागत से बांध का 75 फीसदी काम पूरा हो गया था. जिससे किसानों को खेती के लिए भरपूरे पानी मिलने की उम्मीद जगी थी, लेकिन 11 अगस्त 2022 को अचानक बांध से रिसाव होने लगा जिसको लेकर सरकार पर सवाल खड़े किए गए.  

कारम बांध पर मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक की नजर टिकी थी. कारम बांध पर रिसाव की खबर जैसे ही मीडिया में आई प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए थे. कारम बांध के आसपास के गांव के ग्रामीणों को सुरक्षित जगह ले जाने का कार्य शुरू कर दिया था. प्रशासन ने 4 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद 18 गांव के लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया था.

वहां के ग्रामीण अपनी घर गृहस्थी, खेत, पशुओं को छोड़कर खुले आसमान के नीचे जिंदगी जीने को मजबूर हो गए थे. उन्हें सुरक्षित तो बचा लिया गया लेकिन उनके नुकसान की भरपाई नहीं की गई. वहीं कारम बांध 2 साल से अभी भी टूटा ही पड़ा है. उसी कंपनी द्वारा बांध का पुन निर्माण बारिश के बाद शुरू होने की संभावना हैं. 

ग्रामीणों ने रखी ये मांग
कारम बांध में रिसाव की वजह से किसानों के खेतों की मिट्टी बह गई थी, जिसके बाद प्रशासन से आश्वासन मिला कि खेतों में मिट्टी डाली जाएगी लेकिन अभी तक खेतों में मिट्टी नहीं डाली गई है. जिसकी वजह से किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं. अब किसानों की मांग है कि उनके खेतों में मिट्टी डाली जाए और नदी का गहरीकरण किया जाए. साथ ही उनके पुनर्वास का मुआवजा भी दिया जाए. मांगे पूरी न होने और कारम नहीं का निर्माण चालू न करने पर ग्रामीणों ने आंदोलन की चेतावनी दी है.

क्या है पूरा मामला? 
11 अगस्त 2022 का दिन 18 गांव के ग्रामीण जिंदगी भर नहीं भूल सकते. कारम बांध देशभर में सुर्खियों में आया था. दोपहर एक बजे का समय था, तब तक लोग अपने अपने घरों में काम में लगे हुए थे. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि 4 घंटे बाद हमें यहां से सब कुछ छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए पहाड़ियों पर आशियाना लगाना पड़ेगा. बांध में बारिश का पानी रोकने से बांध लबालब भरा हुआ था. यदि बांध टूट जाता तो एक बड़ी आपदा कई गांवों में आ सकती थी.

कारम बांध से लगे करीब 10 गांव को शाम 5 बजे मुनादी करा कर अलर्ट किया गया. जेसीबी पोकलेन लगाकर लीकेज वाले हिस्से को सुधार कार्य चालू किया गया, लेकिन एक दिन बीतने के बाद भी रिसाव बंद नहीं हुआ. 12 अगस्त को सुबह करीब 7 बजे मिट्टी वाला एक हिस्सा गिर गया. प्रशासन फिर अलर्ट हो गया और सुबह 9 बजे से कलेक्टर के निर्देश पर अलग-अलग टीम बनाकर खरगोन व धार जिले के 18 गांवों में टीमें अपनी गाड़ियों का सायरन बजाते हुए पहुंच गई.

सुबह से गांव को खाली करवाना शुरू कर दिया गया. ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना शुरू किया. नेशनल हाईवे पर भी वाहनों को रोक दिया गया. ग्रामीण भी अपने घरों पर ताला लगाकर अपने रिश्तेदारों एवं परिचित लोगों के घर चले गए, वहीं कुछ ग्रामीणों ने पहाड़ी के ऊपर जाकर अपना आशियाना बना लिया. मौजूदा दो मंत्रियों को भी यहां पर भेजा गया. बड़ी संख्या में पुलिस,सेना, एनडीआरएफ सहित हेलीकॉप्टर तैनात किए.

12 अगस्त की शाम से ही पोकलेन व जेसीबी की मदद से एक तरफ के हिस्से में चैनल बनाकर पानी निकासी की योजना बनाई गई, जिसके लिए काम चालू किया गया. 13 अगस्त को कई संगठन एवं कांग्रेस बीजेपी के बड़े-बड़े नेता भी मौके पर पहुंचे. रात में करीब 2 बजे चैनल में से पानी की निकासी चालू हुई. धीरे-धीरे काम में तेजी और लाई गई. 14 अगस्त की शाम को अचानक से एक बड़ा हिस्सा गिरने से कारम बांध में से तेजी गति से पानी निकलना शुरू हो गया.

देखते ही देखते नदी ने रौद्र रूप धारण कर लिया. पानी इतनी तेज गति में निकला की 10 मिनट के अंदर करीब 10 किलोमीटर तक नदी उफान पर आ गई. नदी के साथ लगते कई गांवों के मकानों में पानी घुस गया. कई किसानों के खेत नदी बन गए, उन्हें काफी नुकसान का सामना करना पड़ा. कई गांव में 4 घंटे तक अंधेरा छा गया लोगों में डर का माहौल बन गया, जो ग्रामीण बाहर गए वह अपने घरों की चिंता कर रहे थे. वहीं प्रशासन भी लगातार गांव में घूम कर निगरानी रख रहा था. प्रशासन ने रात को करीब 10 बजे बाद चैन की नींद ली. बड़ी आपदा से बचाव हो गया. 

घर-खेतों से बेदखल हुए किसान
कारम बांध में रिसाव की वजह से आई बाढ़ की वजह से कई किसानों के परिवार बेघर हो गए. 2 साल बाद भी इस क्षेत्र के प्रभावित किसान अपनी जमीन में फैले पत्थरों व बाढ़ में आई रेती के कारण खेत में उपज नहीं ले पा रहे हैं. खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी बह गई. उस समय प्रशासन के अधिकारी आश्वासन देकर गए थे कि आपको फसल और उजड़े घरों का मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन 2 वर्ष बीत जाने के बाद भी आश्वासन के सिवाय उन्हें कुछ नहीं मिला है.

पहाड़ियों पर रह रहे ग्रामीण
हालत ये है कि अब भी प्रभावित लोग पहाड़ियों में रहने को मजबूर है न बिजली की व्यवस्था है न पानी की. बस उन्हें शासन से आस है कि उन्हें उचित मुआवजा दिया जाएगा, उनका पूर्नवास किया जाएगा. बाढ़ की वजह से टूटे स्कूलों का भी अब तक निर्माण नहीं किया गया है. करीब एक साल तक बच्चों को झोपड़ी और पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाया गया. इस साल नीजि मकान में स्कूल संचालित किया गया है. कई बच्चे तो आज भी पहाड़ी वाले रास्तों से 4 किलोमीटर पैदल चल कर पढ़ाई करने के लिए जाने को मजबूर हैं.

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