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मध्य प्रदेश: दोस्त कमलनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनवा पाएंगे दिग्विजय सिंह?

मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में सबसे अधिक सवाल यही उठ रहा है कि क्या दिग्गी राजा फिर से अपने दोस्त कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं? या इस बार मकसद कुछ और है?

दिल्ली में सियासी हसरत पूरी नहीं होने के बाद दिग्विजय सिंह एक बार फिर मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं. चुनावी साल होने की वजह से दिग्गी राजा तहसील का दौरा कर रहे हैं. 

दिग्गी के कार्यकर्ताओं से संवाद के तरीके और उसकी खबरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं. दिग्विजय शुरुआत में उन 66 सीटों पर फोकस कर रहे हैं, जहां पिछले 2 बार से कांग्रेस चुनाव नहीं जीत पाई है. 

दिग्विजय जिन सीटों पर फोकस कर रहे हैं, उनमें राजधानी भोपाल की 3 और इंदौर की 4 सीटें भी शामिल हैं. दिग्विजय अब तक करीब 40 सीटों पर अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं. आने वाले दिनों में बाकी जगहों पर जाएंगे.

दिग्विजय की सक्रियता को लेकर सियासी गलियारों में 2 तरह की चर्चा जोरों पर है. पहला, क्या दिग्गी राजा फिर से कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं? 

दूसरी चर्चा दिग्विजय और उनके बेटे जयवर्धन सिंह के सियासी फ्यूचर को लेकर की जा रही है. हालांकि, दिग्विजय हर जगह कमलनाथ को ही फिर से मुख्यमंत्री बनाने का जिक्र करते हैं.

दिग्विजय-कमलनाथ की सियासी दोस्ती

1. 1993 में संयुक्त मध्य प्रदेश में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी थी. 174 सीटें उस वक्त कांग्रेस को मिली थी. केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और कांग्रेस पर भी उन्हीं का वर्चस्व था. 

मध्य प्रदेश में उस वक्त मुख्यमंत्री पद के लिए 3 दावेदार थे. 1. दिग्विजय सिंह 2. माधवराव सिंधिया और 3. श्यामचरण शुक्ल

प्रदेश की सियासी हलचल को देखते हुए सिंधिया ने अपना समर्थन श्यामाचरण शुक्ल को दे दिया. सिंधिया के समर्थन मिलने के बाद शुक्ल का पलड़ा भारी हो गया. कांग्रेस विधायकों में उनके मुख्यमंत्री बनने की खबरें दौड़ने लगीं. 

इसी बीच राव सरकार में मंत्री कमलनाथ ने शुक्ल और सिंधिया के प्लान पर पानी फेर दिया. कमलनाथ ने राव से कहा कि मध्य प्रदेश में विधायकों से वोटिंग करा ली जाए. राव को यह आइडिया पसंद आया और दिल्ली से जनार्दन रेड्डी के नेतृत्व में 3 नेता भोपाल भेजे गए.

वोटिंग में एक तरफ सिंधिया-शुक्ल गुट था तो दूसरी तरह अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का खेमा. मध्य प्रदेश के इंदिरा भवन में वोटिंग हुई, जिसमें दिग्गी को 103 और श्यामचरण शुक्ल को 56 वोट मिले. 

राव को रिजल्ट की सूचना भी कमलनाथ ने ही दी, जिसके बाद दिग्गी के नाम पर फाइनल मुहर लगा.

कमलनाथ की वजह से दिग्गी राजा मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. दिग्विजय सिंह 1993 से लेकर 2003 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

2. ठीक 25 साल बाद. यानी साल 2018 में कांग्रेस की सरकार फिर से सत्ता में आई, लेकिन इस बार सीटों की संख्या कम थी. दिल्ली में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के सभी नेताओं के साथ मीटिंग की. इस बार मुख्यमंत्री बनने के दो दावेदार थे. 1. कमलनाथ और 2. ज्योतिरादित्य सिंधिया

राहुल के सामने दिग्विजय ने अपना समर्थन कमलनाथ को दे दिया. दिग्विजय के समर्थन में 50 से ज्यादा विधायक थे. दिग्विजय ने तर्क ये भी दिया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य है. कमलनाथ के पास अब सिर्फ एक ही मौका बचा है.

दिग्विजय का समर्थन और तर्क कमलनाथ के पाले में चला गया और वे राज्य के मुख्यमंत्री बने. दिग्गी के इस समर्थन को राजनीतिक जानकार कमलनाथ का कर्जा उतारने के रूप में भी देखते हैं.

कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद 4 महीने तक सब कुछ ठीक रहा, लेकिन लोकसभा चुनाव में सिंधिया की हार ने बगावत का बीज बो दिया. 2020 के शुरुआत में कमलनाथ की सरकार गिर गई और सिंधिया बीजेपी में चले गए.

सत्ता वापसी के लिए कांग्रेस में दिग्गी कितने महत्वपूर्ण?
दिग्विजय सिंह पिछले एक महीने से विधानसभाओं का दौरा कर रह हैं. इस दौरान सभा का आयोजन किया जाता है, जिसमें सिर्फ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को बुलाया जाता है. दिग्गी खुद मंच पर नहीं बैठकर नीचे बैठते थे. दिग्गी यहां कार्यकर्ताओं से वन टू वन फीडबैक लेते हैं.

मंदसौर समेत कई जगहों पर कार्यकर्ताओं ने आपसी गुटबाजी की शिकायत की, जिसे मौके पर ही दिग्विजय सिंह हल कर देते हैं. कई शिकायतों को वे डायरी में लिख कर रखते हैं. साथ ही नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव लड़ने की शपथ दिलाते हैं.

मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों की मानें तो हारी हुई 66 सीटों पर टिकट वितरण में दिग्गी राजा की सिफारिश काफी मायने रखेगी. ऐसे में आइए जानते हैं, सत्ता वापसी के लिए दिग्विजय सिंह क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं?

कांग्रेस में जमीनी पकड़ वाले नेताओं की कमी- दिग्विजय के मुकाबले कांग्रेस के पास एक भी ऐसा नेता नहीं हैं, जिनकी जमीनी पकड़ पूरे प्रदेश में हो. दिग्गी 4 साल प्रदेश अध्यक्ष और 10 मुख्यमंत्री रहे हैं, इसलिए वे ब्लॉक स्तर पर नेताओं और कार्यकर्ताओं को जानते हैं.

मजबूत नेटवर्किंग की वजह से दिग्विजय रणनीति और माहौल तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. 2018 में दिग्गी की नर्मदा यात्रा और उसके फीडबैक ने कांग्रेस को संजीवनी दी थी. पहली बार नर्मदांचल में कांग्रेस बड़ी जीत दर्ज कर पाई थी.

जमीनी नेताओं को टिकट दिलाने में मददगार- मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार नितिन दुबे के मुताबिक दिग्गी की मजबूती की एक वजह जमीनी कार्यकर्ताओं को टिकट दिलवाना भी है. दिग्गी की दिल्ली में मजबूत पकड़ है और जब टिकट वितरण होता है, तो कार्यकर्ताओं की वहां पर मजबूत पैरवी करते हैं.

नितिन आगे बताते हैं- मध्य प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में दिग्गी की पहचान हाईकमान में उनके लिए लड़ने वाले नेता की है. इसलिए कार्यकर्ता आसानी से उनसे जुड़ते हैं और अपनी बात कहते हैं. 

कार्यकर्ताओं के लिए लड़ने वाले नेता की छवि- हाल ही में दिग्विजय सिंह का शिवराज सरकार के मंत्री महेंद्र सिसोदिया को धमकाते हुए एक वीडियो वायरल हुआ था. सिंह वीडियो में सरकार आने पर सिसोदिया को नहीं छोड़ने की बात कह रहे थे.

दरअसल, दिग्विजय सिंह से कार्यकर्ताओं ने कहा था कि गुना के बमौरी में सिसोदिया के इशारे पर पुलिस परेशान कर रही है, जिसके बाद दिग्विजय बिफर पड़े थे. 

नितिन दुबे कहते हैं- यह सिर्फ एक उदाहरण है. कई ऐसे मामले है, जब दिग्विजय सीधे कार्यकर्ताओं के लिए पुलिस और प्रशासन से लड़ पड़ते हैं, इसलिए नेताओं और कार्यकर्ताओं में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है.

दोस्त कमलनाथ को फिर मुख्यमंत्री बनवा पाएंगे दिग्गी?
मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में सबसे अधिक सवाल यही उठ रहा है कि क्या दिग्गी फिर से अपने दोस्त कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं? या मकसद कुछ और है? इसे 3 तरीके से समझते हैं...

1. मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन में अभी 5 बड़े पद में से 4 पर दिग्विजय सिंह के लोग बैठे हैं. इनमें नेता प्रतिपक्ष, युवा और महिला कांग्रेस का अध्यक्ष जैसे पद शामिल हैं. नर्मदांचल, ग्वालियर-चंबल और मालवा में बड़े स्तर पर दिग्गी के लोग संगठन में हैं. 

2018 में भी सबसे अधिक विधायक दिग्गी के ही समर्थन में थे. उन्होंने इसका फायदा भी उठाया और अपने बेटे को नगर विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिलवा दिए.

नितिन दुबे के मुताबिक अगर दिग्गी समर्थक विधायक अधिक संख्या में जीतकर आते हैं, तो गेम पलट सकता है. यह संख्या कितनी होनी चाहिए? इस पर दुबे कहते हैं- 100 के करीब होनी चाहिए. 

दुबे के मुताबिक ऐसी स्थिति अगर कांग्रेस में आती है तो दिग्विजय हाईकमान के सामने मजबूत होंगे और मुख्यमंत्री के लिए अपने बेटे या किसी करीबी के नाम की सिफारिश भी कर सकते हैं. 

2. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस अभी 3 गुटों में बंटी है. इसमें दिग्विजय, कमलनाथ और अजय-अरुण गुट है. कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से भले कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताया जा रहा हो, लेकिन पद को लेकर अरुण यादव का बयान खूब सुर्खियों में रहा है.

अरुण यादव ने एक कार्यक्रम के बाद कहा था कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव बाद विधायकों की सलाह पर हाईकमान करती है. कमलनाथ से पहले अरुण यादव ही मध्य प्रदेश इकाई में कांग्रेस के अध्यक्ष थे.

चुनाव के बाद पद जाने का दर्द वे कई बार बयां भी कर चुके हैं. उनके पार्टी छोड़ने की अटकलें भी कई बार लग चुकी है. हालांकि, यादव खुद सभी अटकलों को खारिज कर चुके हैं.

मध्य प्रदेश में टिकट बंटवारा और उसके बाद रिजल्ट में इन सभी गुटों का दबदबा रहने वाला है. बहुत कुछ इसके आधार पर ही तय होगा. 

3. वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक दिग्गी को कमलनाथ में अपने बेटे की भविष्य की सुरक्षा दिखाई दे रही है. कमलनाथ उम्रदराज हो गए हैं और 5-7 साल में रिटायर हो जाएंगे. दिग्गी उन्हीं के सहारे बेटे की जमीन मजबूत करने में जुटे हैं.

तीन कारणों से दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश में इतनी मेहनत कर रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा कारण बागियों को मजा चखाना है. साथ ही बेटे की राजनीति में स्थापित करना भी बड़ा कारण है. तीसरा कारण कमलनाथ के विश्वास को बहाल करना भी है.

दरअसल, 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शासन-प्रशासन से जुड़े अधिकांश फैसले दिग्विजय सिंह के कहने पर लिए गए. जब सरकार गिरी तो कहा गया कि डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी अगर एक्टिव रहते तो विधायक बेंगलुरु नहीं जा पाते. 

यानी कमलनाथ की सरकार गिरने के लिए दिग्विजय सिंह को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया गया था. 

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