Sehore News: सीहोर में कुछ सालों से सोयाबीन, गेहूं व चने की फसलों का सही उत्पादन नहीं होने से और सही लागत के भी न मिलने से जिलेभर में किसान परेशान हैं. लेकिन अब कृषि में नवाचारों का प्रयोग करके की जा रही खेतीबाड़ी किसानों की तकदीर बदल रही है. नए नए नवाचारों का प्रयोग करके काफी किसान न अच्छा उत्पादन प्राप्त करके अपनी आमदनी में बढ़ोतरी कर रहे हैं बल्कि पानी की बचत करने के साथ ही खेत में अनुपयोगी खरपतवार से भी निजात पा रहे हैं. 


ऐसी ही खेती की एक तकनीक का नाम है मल्चिंग. मल्चिंग से किसान न केवल परंपरागत खेती से ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं बल्कि कम पानी के इस्तेमाल से अच्छी खेती कर रहे हैं.


सीहोर जिले के जमोनिया के किसान खेती में नई-नई तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं. यहां एक किसान मल्चिंग के जरिए मिर्च की खेती करके अच्छा उत्पादन कर रहा है.आपको बता दें कि परंपरागत फसलों के मुकाबले सब्जी वाली फसलें हमेशा से ही ज्यादा मुनाफा देने वाली साबित होती आई हैं. इसके लिए कड़ी मेहनत, जोखिम उठाना और सही जानकारियाँ मिलना काफी जरूरी होता है. लेकिन काफी बार किसान नवाचार की जानकारी के अभाव में मजबूरन पुराने तरीके से ही खेती करते हैं. इसके विपरीत जो किसान हिम्मत करके नवाचारों से खेती करते हैं, उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होता है.



क्या है मुकेश की कहानी


सीहोर जिले के जमोनिया गांव के किसान मुकेश बुचर ने कुछ ऐसी ही हिम्मत दिखाई. मुकेश बुचर ने ठान लिया कि एक बार नवाचार का प्रयोग कर खेती करेंगे. उन्होंने एक फाउंडेशन की सलाह से मिर्च की खेती करने का फैसला किया, जिसकी पैदावार सालभर की जाएगी. मुकेश ने अपने सात एकड़ खेत को मिर्च की खेती के लिए चुना. किसान मुकेश ने खेत की तैयारी की, उर्वरकों और कीटनाशकों के इंतजाम किए व सिंचाई की व्यवस्था की. ज्यादा पैदावार लेने के लिए उन्होंने ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की और खेती के लिए मल्चिंग पद्धति का सहारा लिया. मुकेश को अभी छह महीने मिर्च की खेती किए हुआ ही है कि अभी तक दो से तीन लाख रुपए का फायदा हुआ है. मिर्च को हरदा, सीहोर, भोपाल, होशंगाबाद मंडी भेजा जा रहा है. 
मुकेश ने बताया कि सोयाबीन व गेहूँ की फसलों के सही उत्पादन नहीं होने से उसके ऊपर कर्ज बढ़ता जा रहा था, इसलिए नवाचार करके यह मिर्च की खेती की है



क्या है ड्रिप मल्चिंग का तरीका



इस सिस्टम में खेत को प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है, जिससे खेत में नमी बनी रहती है और खरपतवार नहीं पनप पाते हैं. प्लास्टिक की शीट अलग अलग साइज में मिल जाती है. इन शीटों के बीच में तयशुदा दूरी पर छेद करके किसान बीज या पौधों का रोपण कर सकते हैं. मशीन के जरिए भी पौधा रोपा जा सकता है. रासायनिक खादें भी दी जा सकती है. जैविक खाद का इस्तेमाल करें तो उत्पादन में रासायनिक तत्वों की मौजूदगी नहीं रहेगी. ड्रिप सिस्टम से सिंचाई से न केवल पानी की बचत होगी बल्कि कम पानी की उपलब्धता के बावजूद ड्रिप इरीगेशन से किसान अच्छी सिंचाई कर सकते हैं. इस तकनीक से खरपतवार पर रोकथाम, पानी की बचत तथा समय और श्रम बचता है.


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