Atal Progressway: भिंड में अटल प्रोग्रेस-वे प्रोजेक्ट के खिलाफ धरने पर बैठे किसान, शिवराज सरकार पर साधा निशाना
Atal Progress Way: भिंड में धरने पर बैठे किसानों ने आरोप लगाया है कि शिवराज सरकार भूमिहीन करना चाहती है. उन्होंने अटल प्रोग्रेसवे का काम पुराने एलाइनमेंट के अनुसार करने की मांग की है.
Farmers Protest: भिंड में किसानों ने अटल प्रोग्रेसवे प्रोजेक्ट (Atal Progress Way Project) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. धरने पर बैठे किसानों ने आरोप लगाया है कि सरकार भूमिहीन करना चाहती है. प्रोजेक्ट के लिए किसान अपनी जमीन किसी भी कीमत पर देने को तैयार नहीं हैं. प्रतापपुरा इलाके में किसान संघ के बैनर तले सड़क पर टेंट लगाकर धरना शुरू हो गया है. गौरतलब है कि मध्यप्रदेश (MP) में सबसे पिछड़े इलाके चंबल (Chambal) को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए चंबल नदी किनारे अटल प्रोग्रेसिव-वे का निर्माण होना है. जिसमें नए एलाइनमेंट के तहत किसानों की 90 फीसद भूमि का अधिग्रहण किया जाना है. किसान जमीन देने के विरोध में हैं.
अटल प्रोग्रेसवे प्रोजेक्ट के खिलाफ धरने पर बैठे किसान
भारतमाला परियोजना (Bharatmala Pariyojna) के तहत देश के चारों कोनों को जोड़ने के लिए एक्सप्रेसवे योजना शुरू की गई है. चंबल नदी किनारे 403 किलोमीटर लंबी एक्सप्रेस वे का निर्माण राजस्थान के कोटा जिले में करिया-बारा नेशनल हाइवे 27 से शुरू होकर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे तक कराए जाने की घोषणा मुखिया शिवराज सिंह ने 2017 में की थी. घोषणा के बाद से एक्सप्रेस वे लगातार विवादों में घिरा रहा. पांच साल बीत जाने के बाद भी काम शुरू नहीं हो सका है. पहले इसका नाम चंबल एक्सप्रेस वे से बदलकर अटल प्रोग्रेस-वे किया गया.
कमलनाथ सरकार में इसका भिंड से इटावा तक का हिस्सा हटाया गया और इसका निर्माण मुरैना तक ही रखा गया. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद एक बार फिर इसको उत्तर प्रदेश के इटावा से बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे तक जोड़ा गया. शुरुआत में 403 किलोमीटर लंबी एक्सप्रेस-वे का अनुमानित खर्चा 850 करोड़ रुपए आंका गया था. 2021 में मध्यप्रदेश दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इसे भारतमाला परियोजना में अटल एक्सप्रेसवे को जोड़ा. तब इसकी लागत बढ़कर 5000 करोड़ रुपए अनुमानित थी. लेकिन आज निजी जमीन 90 फीसद अधिग्रहण होने के चलते इसकी लागत 9 हजार करोड़ रुपए हो चुकी है.
36 गांवों में 320 हेक्टेयर जमीन का होना है अधिग्रहण
चंबल नदी किनारे बनने के चलते नया विवाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति के बाद इसका तय रूट चंबल नदी से 1.5 किलोमीटर पेरेलल को हटाकर तीन किलोमीटर नदी से दूर किया गया है. जिसके चलते पहले जो 70 फीसद बीहड़ ओर शासकीय जमीन का अधिग्रहण होना था और 30 फीसद किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाना था, अब 90 फीसद किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाना है. अब किसानों ने सड़क पर बैठकर धरना शुरू कर दिया है. किसान धर्म सिंह राजावत ने कहा कि अपनी जमीन को किसी भी हालत में देने के लिए तैयार नहीं हैं. किसानों का कहना है कि छोटे छोटे किसान हैं. उनके पास 1 एकड़ के लगभग जमीन है.
अगर अधिग्रहीत हो गई तो किसान अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे. सरकार किसानों की जमीन के बदले बीहड़ी जमीन या मुआवजा देना चाहती है लेकिन शर्त मंजूर नहीं है. किसान चाहते हैं कि अटल प्रोग्रेसवे का काम पुराने एलाइनमेंट के अनुसार बीहड़ किनारे हो जिससे उनकी उपजाऊ जमीन बची रहे और इसमें बीहड़ी जमीन का इस्तेमाल हो सके. भिंड कलेक्टर सतीश कुमार एस का कहना है कि 36 गांवों में 320 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण करना है. 4000 के लगभग किसान प्रभावित हो रहे हैं. धरने पर बैठे किसानों का ज्ञापन मिलते ही पुराने एलाइनमेंट के तहत निराकरण किया जाएगा.