Jabalpur News: मध्य प्रदेश के खरगोन (Khargone) में रामनवमी के जुलूस के दौरान भड़के दंगों के बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार (Shivraj government) ने क्लेम्स ट्रिब्यूनल (Claims Tribunal) का गठन किया है. कानून बनने के बाद यह पहली बार है कि किसी घटना के बाद इसका गठन किया गया है. अब यह ट्रिब्यूनल दंगे में हुए नुकसान के मामलों की सुनवाई करके भरपाई के आदेश पारित करेगा.


तीन महीने में देगा रिपोर्ट
ट्रिब्यूनल की स्थापना के लिए एक गजट नोटिफिकेशन मंगलवार 12 अप्रैल 2022 को जारी किया गया. अधिसूचना के अनुसार रविवार को खरगोन शहर में हुई हिंसा के दौरान हुए नुकसान के आकलन से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति वसूली अधिनियम-2021 के प्रावधानों के तहत न्यायाधिकरण का गठन किया गया है.अधिसूचना में कहा गया है कि सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश शिवकुमार मिश्रा और राज्य सरकार के सेवानिवृत्त सचिव प्रभात पाराशर की अध्यक्षता वाला न्यायाधिकरण तीन महीने की अवधि में जांच का काम पूरा करेगा. ट्रिब्यूनल ऐसे मामलों में शामिल दंगाइयों से नुकसान की वसूली भी सुनिश्चित करेगा.


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क्या है क्लेम ट्रिब्यूनल
विधि विशेषज्ञ विजय त्रिपाठी के मुताबिक देश में न्यायालयों के अलावा विषय-विशेष के लिए अलग-अलग अर्द्ध-न्यायिक संस्थाओं का गठन किया जाता है. इनके पास अपने विषय को लेकर अदालतों जैसे ही अधिकारी होते हैं, जिसके तहत ये आदेश दे सकते हैं. देश में इस तरह के कुल 15 स्थायी अर्द्ध-न्यायिक संस्था या ट्रिब्यूनल हैं.


दिए जाते है अदालत जैसे अधिकार
देश में स्थापित विशेष ट्रिब्यूनल के अलावा किसी अन्य विषय पर सरकारें दावे-आपत्तियों के निराकरण के लिए अपने राज्यों के कानून के हिसाब से ट्रिब्यूनल का अस्थायी रूप से गठन करती हैं. इन्हें क्लेम ट्रिब्यूनल कहते हैं. इन्हें भी अदालतों जैसे अधिकार दिए जाते हैं. इनके पास पीड़ित व्यक्ति या संस्था अपने मामले की शिकायत कर सकते हैं. ट्रिब्यूनल मामलों की सुनवाई के बाद वसूली के आदेश देने के लिए पात्र होती हैं. सेवानिवृत्त न्यायाधीश इसका अध्यक्ष होता है. जबकि मध्य प्रदेश शासन के सेवानिवृत्त सचिव सदस्य के रूप में चुने जाते हैं. सदस्यों की संख्या एक से ज्यादा हो सकता है.


मध्य प्रदेश में क्लेम ट्रिब्यूनल का मुख्यालय  जिला कलेक्ट्रेट खरगोन रहेगा
मध्य प्रदेश की तो यहां खरगोन दंगे के मामले में भी क्लेम ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है. प्रदेश में इस ट्रिब्यूनल का गठन 'मध्य प्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण एवं नुकसानी की वसूली विधेयक- 2021' की धारा 4 के तहत किया गया है. ट्रिब्यूनल में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश डॉ. शिवकुमार मिश्रा को अध्यक्ष और सेवानिवृत्त सचिव मध्य प्रदेश शासन प्रभात पराशर को सदस्य नियुक्त किया गया है. इसका मुख्यालय जिला कलेक्ट्रेट खरगोन रहेगा.


दोषियों को सजा न देकर नुकसान की भरपाई का होता है फैसला
हर क्लेम ट्रिब्यूनल के गठन के समय ही उसके मूल कानून (जिसके तहत उसका गठन हो रहा है) के अनुसार नियम तय होते हैं. इसमें शिकायतकर्ता की पात्रता, आदेश का दायरा और समय सीमा तय किया जाता है. इन्हें नियमों के अंदर ही क्लेम ट्रिब्यूनल को सुनवाई और अपना फैसला देना होता है. ट्रिब्यूनल दीवानी कोर्ट की तरह काम करती है. इसमें दोषियों को सजा न देकर उनसे नुकसान की भरपाई का फैसला होता है. उत्तर प्रदेश के बाद बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में दिसंबर 2021 में 'मध्य प्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण एवं नुकसानी की वसूली विधेयक- 2021' पारित किया गया था. इसके अनुसार यह प्रदेश का पहला क्लेम ट्रिब्यूनल होगा.


कर सकेगा दोगुना तक के अवार्ड पारित
'मध्य प्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण एवं नुकसानी की वसूली विधेयक- 2021' के अनुसार सरकारी संपत्ति पर जिला कलेक्टर, कार्यालय प्रमुख और निजी संपत्ति के नुकसान पर संपत्ति का मालिक या संपत्ति का नियंत्रणकर्ता 30 दिन के भीतर आवेदन कर सकता है. क्लेम ट्रिब्यूनल को हर्जाना/मुआवजे का निर्धारण यथासंभव आवेदन करने के 3 माह में करना आवश्यक होगा. ट्रिब्यूनल नुकसान के 2 गुना तक के अवार्ड पारित कर सकेगा.


भुगतान नहीं होने पर होगी यह कार्रवाही
ट्रिब्यूनल के अवॉर्ड पारित (नुकसान वसूली) करने के 15 दिन में भुगतान नहीं होने पर ब्याज तथा आवेदनकर्ता को क्लेम में प्रकरण में हुए खर्चे की वसूली के आदेश भी देने के अधिकार हैं. 15 दिन में राशि जमा नहीं होने पर ट्रिब्यूनल कलेक्टर को बकाया की वसूली के लिए संबंधितों की चल-अचल संपत्ति की कुर्की एवं नीलामी के लिए प्रमाण-पत्र जारी कर सकते हैं. हालांकि इस अधिनियम से पुलिस की कार्रवाई बाधित नहीं होगी.


केवल उच्च न्यायालय में दी जा सकती है चुनौती
'मध्य प्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण एवं नुकसानी की वसूली विधेयक- 2021' के अनुसार ट्रिब्यूनल को सिविल कोर्ट के अधिकार और शक्तियां होती है. क्लेम ट्रिब्यूनल के आदेश केवल उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है. वो भी ट्रिब्यूनल के द्वारा अवॉर्ड पारित (नुकसान वसूली या नुकसान की रकम तय करना) होने के 90 दिन के भीतर.


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