Harda Factory Explosion: मध्य प्रदेश के हरदा शहर में एक पटाखा कारखाने में विस्फोट और आग में एक महिला ने अपने माता-पिता को खो दिया. वहीं इस महिला ने कहा कि पटाखा फैक्ट्री रिहायशी इलाके में नहीं चलनी चाहिए थी,  यह त्रासदी तो होनी ही थी.


वहीं इस महिला ने मंगलवार की घटना के लिए सरकार और कारखाने के मालिक को जिम्मेदार ठहराया. इस हादसे में 11 लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं.


वहीं एक अन्य महिला ने सड़क पर रात बिताई क्योंकि घटना में उसका घर क्षतिग्रस्त हो गया है. इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि उन्होंने इलाके से पटाखा इकाई को हटाने की मांग की थी लेकिन उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.


बता दें कि हरदा शहर के बाहरी इलाके मगरधा रोड पर बैरागढ़ इलाके में स्थित इकाई में 200 से अधिक लोग पटाखे बनाने के काम में लगे हुए थे. मंगलवार सुबह करीब 11 बजे लोगों ने कारखाने में पहला विस्फोट सुना. कारखाने के आसपास के इलाके में अफरा-तफरी मच गई क्योंकि लोग भागने लगे और सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के लिए संघर्ष करने लगे.


विस्फोट से पटाखा इकाई मलबे में तब्दील हो गई, शवों के टुकड़े चारों ओर दूर दूर तक बिखर गए, घर मलबे में तब्दील हो गए. विस्फोट स्थल से लगभग 50 फुट दूर एक जला हुआ और पलटा हुआ ट्रक पड़ा देखा गया.


हादसे में अपनी मां और पिता को खोने वाली नेहा ने रुंधी आवाज में बताया, ''कारखाने और गोदाम का विस्तार कार्य चल रहा था. यह तो होना ही था.'' उसका परिवार कारखाने के आसपास ही रहता है. उन्होंने कहा, "मैं इस घटना के लिए सरकार और कारखाना मालिक को जिम्मेदार मानती हूं. उन्हें आबादी वाले इलाके में कारखाना नहीं चलाना चाहिए था."


नेहा ने कहा कि ऐसी घटना पहले भी हुई थी लेकिन संबंधित अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया. इस हादसे में उसका घर भी जल गया. उसने आरोप लगाते हुए कहा, "पहले भी लोग मरे हैं लेकिन सरकार ने इजाजत दे दी." जैसे ही वे ( कारखाना मालिक) पैसा जमा कराते हैं, सरकार सील (कारखाने की) फिर से खोल देती है. क्या होता है."


एक अन्य स्थानीय निवासी अमरदास सैनी अपने घर पर थे जब सुबह करीब 11 बजे पहला विस्फोट हुआ. उन्होंने कहा कि जब पहला विस्फोट हुआ तब मैं घर पर था. मेरी पत्नी खाना बना रही थी. हम धमाकों के बीच भागे, बजरी, कंक्रीट के टुकड़े और आग के गोले हम पर गिर रहे थे. सड़क से गुजर रही कई मोटरसाइकिलें बुरी तरह प्रभावित हुईं.


सैनी ने कहा कि इस घटना में कई लोगों के शरीर के हिस्से क्षत विक्षत होकर यहां वहां बिखर गए. उन्होंने बताया कि कारखाने के आसपास करीब 40 घर हैं. सैनी ने दावा किया कि हम पिछले 25 वर्षों से इलाके में रह रहे हैं. हमने कलेक्टर को (कारखाना हटाने के लिए) कई आवेदन दिए हैं, लेकिन किसी ने हमारी याचिका नहीं सुनी.


वहीं पांच बच्चों की मां अरुणा राजपूत ने इस घटना में अपना घर खो दिया और अपने बच्चों के साथ सड़क पर रात बिताई. उसने रोते हुए कहा, 'मैं पहले विस्फोट के बाद भाग गयी. मेरी कॉलोनी के कई लोगों को चोटें आईं और उनका इलाज चल रहा है. मेरा पूरा घर क्षतिग्रस्त हो गया.


उन्होंने कहा कि पहले भी छोटी-मोटी घटनाएं हुई थीं लेकिन इस बार मैं बेघर हो गई. मैंने सड़क पर रात बिताई. मेरे पास कुछ नहीं बचा है और मैं सरकारी मदद चाहती हूं. अरूणा ने अपने परिवार के सुरक्षित होने पर भगवान को धन्यवाद दिया, लेकिन कहा कि घटना के बाद वह इधर उधर भागती रही, रात में सड़क पर सोई और सुबह इलाके में लौटी.


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