Holi Celebration in India: रायसेन जिले के दो गांवों में अनोखे तरह से होली मनाई जाती है. होली मनाने की परंपरा ग्राम चंद्रपुरा में और ग्राम मेंहगवा में वर्षों पुरानी है. होलिका दहन से रंग पंचमी तक परंपरा का निर्वहन किया जाता है. होली का त्योहार मान्यताओं और परंपराओं का समागम है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली हर्षोल्लास से मनाई जाती है.


कहीं फूलों से होली खेली जाती है, कहीं लोग एक दूसरे पर लट्ठ बरसाते हुए होली खेलते हैं. आपको आग के अंगारों पर चलकर होली खेले जाने का यकीन नहीं होगा. लेकिन सिलवानी तहसील के दो गांवो में परंपरा आज भी निभाई जाती है.


रायसेन जिले में होली मनाने की अनूठी परंपरा


आस्था और श्रद्धा की वजह से ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच नंगे पैर निकलते हैं. नाबालिग बच्चों से लेकर महिलाएं और उम्र दराज बुजुर्ग तक आयोजन में हिस्सा लेते हैं. लेकिन बच्चों, महिलाओं से लेकर बुजुर्गों तक के पैर नहीं जलते. सभी ग्रामीण बारी-बारी से आग पर चलते हैं. ग्राम चंदपुरा और ग्राम महगवा में ग्रामीण करीब वर्षों से आग पर चलने की परंपरा निभाते आ रहे हैं.



ग्राम महगवा के चौराहे पर विधि विधान से पूजा अर्चना कर होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन को देखने कई गांवों के ग्रामीण बड़ी संख्या में देखने आते हैं. ग्राम चंदपुरा में भी पर्व से कई दिन पहले तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. बड़ी संख्या में ग्रामीण आयोजन में भाग लेते हैं.


धधकते अंगारों के बीच से निकलते हैं ग्रामीण


धधकते अंगारों पर चलने की मान्यता के बारे में ग्रामीण स्पष्ट कुछ भी नहीं जानकारी देते हैं. बुजुर्गों का कहना है कि परंपरा निभाने से गांव में प्राकृतिक आपदा नहीं आती है. सुख शांति समृद्धि के लिए वर्षों पुरानी प्रथा निभाई जाती है. प्रत्येक वर्ष होली दहन के बाद आयोजन ग्रामीण करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अंगारों पर चलने के बाद एक दूसरे को रंग गुलाल लगाया जाता है. रायसेन जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर वनगवां गांव बसा हुआ है.


गांव में होलिका दहन के दूसरे दिन हलारिया गौत्र समाज कुल देवता मेघनाथ बाबा की पूजा करता है. पूजा के दौरान 25 फीट ऊंचे 2 खंभों पर मचान बनाकर एक बकरे को बांधकर घूमाया जाता है. पूजा संपन्न होने के बाद बकरा मालिक को वापस कर दिया जाता है.






बकरे को घुमाते समय लोगों को कोड़े मारे जाते हैं. मान्यता है कि कुलदेवता के आशीर्वाद से लोगों को कोड़ों की मार का अहसास तक नहीं होता. मुनीलाल गौर ने बताया कि वनगवां गांव बसने के समय से परंपरा चली आ रही है. माना जाता है कि परंपरा निभाने से गांव में समृद्धि और समरसता का माहौल बना रहता है. 


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