(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
IIT इंदौर के दीक्षांत समारोह, 23.9 फीसदी लड़कियों ने ली ग्रेजुएट की डिग्री
IIT Indore: आईआईटी इंदौर के 12वां दीक्षांत समारोह मनाया गया. जिसमें 23.9 फीसदी लड़कियों ने स्नातक की उपाधि ली.इस दौरान पीएचडी कंचन समाधिया को वीपीपी मेनन गोल्ड मेडल अवार्ड मिला.
MP News: जब सपने ऊंचे हों और लक्ष्य तय हों तो उन्हें पूरा करने का सफ़र एक प्रेरणादायक कहानी बन जाती है. एक ऐसी कहानी जो अपनी उम्र के दूसरे लोगों को प्रेरित करती है. ऐसी ही कहानी है कंचन समाधिया और कृषांगी कश्यप की. जिन्होंने अपनी योग्यता साबित की और आईआईटी-इंदौर पहुंची. आईआईटी इंदौर के 12वें दीक्षांत समारोह में 23.9 फीसदी लड़कियों ने स्नातक की उपाधि ली.
बायोसाइंस और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कंचन समाधिया ने ग्वालियर के सिंधिया कन्या विद्यालय से अपनी यात्रा शुरू की. उन्हें वीपीपी मेनन गोल्ड मेडल अवार्ड मिला. वहीं असम के बारपेटा जिले के एक छोटे से गांव से आने वाली कृषांगी कश्यप ने आईआईटी-इंदौर से अवार्ड लिया वे अब एक एस्ट्रोनॉट बनने की ख्वाहिश रखती हैं. उन्हें बीयूटीआई फाउंडेशन गोल्ड मेडल और इंस्टीट्यूट सिल्वर मेडल (पीजी प्रोग्राम) नाम से दो पुरस्कार मिले.
कैंसर के बाद, एबीआर दुनिया भर में मौत का दूसरा कारण
ABP लाइव से बातचीत में कंचन समाधिया ने कहा कि अभी मैं एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (एबीआर) पर काम कर रही हूं, जो एक बड़ी समस्या बनती जा रही है.
एबीआर बैक्टीरिया अपशिष्ट जल में पाया जाता है. इसका मुख्य कारण यह है कि लोग अपनी बीमारी के इलाज के लिए केमिस्ट से एंटीबायोटिक लेते हैं और कई बार कोर्स पूरा नहीं करते, जिससे मानव शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया इम्यून हो जाते हैं. फिर बैक्टीरिया नालियों में मानव अपशिष्ट के माध्यम से पहुंचते हैं और फिर नदियों और वाटर सोर्सेस तक पहुंचते हैं. जब कोई व्यक्ति इस पानी के संपर्क में आता है और संक्रमित हो जाता है, तो ऐसी दवाएं संक्रमण पर काम नहीं करती हैं और उसकी मृत्यु हो सकती है.
कंचन समाधिया ने कहा मैं एबीआर बैक्टीरिया को मारने या पानी को सुरक्षित बनाने के लिए शोध कर रही हूं. कैंसर के बाद, एबीआर दुनिया भर में मौत का दूसरा कारण है. मैंने ग्वालियर के सिंधिया कन्या विद्यालय से पढ़ाई की. फिर कमला राजा गर्ल्स गवर्नमेंट कॉलेज से बीएससी बायोटेक किया. फिर मैं इंदौर आ गई. किशोरावस्था से ही मैं आर्मी ऑफिसर बनना चाहती थी. मैंने एनसीसी भी की, लेकिन सेना में भर्ती नहीं हो पाई. अब मेरा लक्ष्य देश के लिए काम करना है. खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में एबीआर की समस्या के प्रति जागरूकता लाना और समाधान लाना है.
‘एस्ट्रोनॉट बनना मेरी दिली ख्वाहिश’
वहीं असम के एक छोटे से गांव की रहने वाली कृषांगी कश्यप ने अंतरिक्ष यात्री बनने या मंगल और चंद्रमा पर शोध के लिए भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में काम करने के मकसद से इंदौर आईआईटी में एडमिशन लिया. उन्होंने कहा एस्ट्रोनॉट बनना मेरी दिली ख्वाहिश है. मैंने मंगल और चंद्रमा की सतह के आंकड़ों रिसर्च की है और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का भी अध्ययन किया है.
कृषांगी कश्यप ने बताया कि मैंने शोध के लिए चंद्रयान के आंकड़ों और चंद्रमा की सतह की खासियत पर भी काम किया. उन्होंने कहा कि मैंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है. असम के मेरे गांव के लोगों के लिए तीसरी क्लास में पहुंचना बड़ी बात है. मैं आईआईटी में एडमिशन लेने के अपने पहले प्रयास में असफल रही, लेकिन निराश नहीं हुई और दिल्ली से ऑनलाइन कोचिंग ली और IIT में एडमिशन लिया. कृषांगी विद्यार्थियों को फ्री गाइडेंस देने के लिए प्रज्ञा शिक्षा केंद्र नामक एक संस्थान चलाती हैं.
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