75th Independence Day: इन दिनों देश में स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. ऐसे में हर घर तिरंगा अभियान से जुड़कर पूरे देश में लोग अपने घरों पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहरा रहे हैं. इस अभियान का असर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के खंडवा (Khandwa) में देखने को मिल रहा है. यहां एक मुस्लिम बस्ती में रखे ताजिए को पूरी तरह से तिरंगे के रंग से सजा दिया गया है. इतना ही नहीं यहां मुहर्रम (Muharram) पर कव्वालियों के साथ देश भक्ति के गीत भी बजाए जा रहे हैं.


खंडवा के मुस्लिम बहुल क्षेत्र खड़कपुरा में मक्का मस्जिद के पास रखा ताजिया इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इमाम हुसैन की याद में बनाए जाने वाले इस ताजिए को तिरंगे की तरह सजाया गया है. दरअसल पांच बुर्राकों के साथ हर साल बनने वाले इस ताजिए की बनावट इस बार अमृत महोत्सव को देखते हुए तिरंगे के कलर से की गई है. पूरी साज-सज्जा में यहां दूर से तिरंगा ही नजर आता है. ताजिए के पंडाल पर भी तिरंगा ध्वज लगाया गया है. यही नहीं यहां कव्वालियों के साथ देश भक्ति गीत भी बजाए जा रहे हैं.


खड़कपुरा मस्जिद के बाहर रखा जाता है ताजिया


ताजिया बनाने वाले खड़कपुरा के सरपंच अजीज खान ने बताया कि ब्रिटिश काल से ही उनके परिजन ताजियादारी करते आ रहे हैं. अब वह भी अपने परिजनों की इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां ताजिया खड़कपुरा मस्जिद के बाहर रखा जाता है. अजीज खान ने कहा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल आजादी की 75वीं सालगिरह है. इस मौके पर हर घर तिरंगा लगाने का ऐलान किया है. ऐसे में हमने भी इस ताजिए को तिरंगे रंग में सजाया है. उन्होंने अपने ताजियों को तिरंगे का रंग देकर एक नई मिसाल पेश की है.


ताजिए की जियारत के लिए हर धर्म के आते हैं लोग 


अजीज खान ने बताते हैं कि उनके ताजिए की जियारत के लिए लगभग सभी धर्म के लोग यहां आते हैं और तिरंगे के रंग में बने इस ताजिए को देखकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं. यहां पहुंचे एक दुकानदार हरमिंदर सचदेव ने बताया कि वह पिछले 20 सालों से इस क्षेत्र में फुटवियर की दुकान चला रहे हैं. हर साल मुहर्रम पर यहां सभी युवा मिलकर ताजिया बनाते हैं. यह एकता की मिशाल है. इस बार अमृत महोत्सव में इसको तिरंगे के रंग में सजाया गया है. यही सद्भावना पूरे देश में बनीं रहे, यही कामना है.


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एक से बढ़कर एक बनाए जाते हैं ताजिए


वहीं एक दूसरे दुकानदार विशाल ने कहा कि जिस तरह से तिरंगे के रंग में ताजिए को बनाया गया है, उससे देख कर बहुत ही आत्मीयता महसूस होती है. इस ताजिए के माध्यम से देश भक्ति की भावना का भी संदेश दिया जा रहा है. यहां ताजिया हम सभी की एकता का परिचय है. गौरतलब है कि इन दिनों इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम का महीना चल रहा है, जिसमें ताजियादारी की जाती है. पूरे देश में अलग-अलग जगह एक से बढ़कर एक नक्काशी कर ताजिए बनाए जाते हैं. खंडवा में भी ऐसे ताजियों का निर्माण किया गया है.


तैमूर लंग के समय हुई थी ताजिए की शुरुआत!


बताया जाता है कि भारत में ताजिए की शुरुआत 14वीं सदी में तैमूर लंग बादशाह के शासनकाल में हुई थी. तैमूर लंग 1398 में भारत पहुंचा था. उसके साथ 98000 सैनिक भी भारत आए थे. दिल्ली की सत्ता पर काबिज महमूद तुगलक से युद्ध जीतने के बाद तैमूर लंग ने अपना ठिकाना बनाया और यहीं उसने स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया था. बताया जाता है कि शिया समुदाय से होने की वजह से तैमूर लंग हर साल मुहर्रम के महीने में इराक के कर्बला में इमाम हुसैन के मजार पर जरूर जाता था. हालांकि, कहा जाता है कि वह हृदय रोगी था, इसलिए हकीमों और वैद्यों ने उसे यात्रा के लिए मना किया था.


जानिए क्यों बनने लगे ताजिए?


बताया जाता है कि सेहत खराब होने की वजह से वह एक साल कर्बला नहीं जा पाया. लिहाजा, तैमूर को खुश करने के लिए दरबारियों ने उस जमाने के कलाकारों को इकट्ठा कर उन्हें इराक के कर्बला स्थित इमाम हुसैन के मकबरे की प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया था. इस आदेश के बाद कुछ कलाकारों ने बांस की किमचियों की मदद से इमाम हुसैन की याद में मकबरे का ढांचा तैयार किया, जिसे तरह-तरह के फूलों से सजाया गया. इसी को ताजिया नाम दिया गया. इस तरह 801 हिजरी में तैमूर लंग के महल के परिसर में ताजिए को पहली बार रखा गया.


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