(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Republic Day 2023: सीहोर में हुई ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहली क्रांति, 1857 में 356 क्रांतिकारियों ने दी थी शहादत
Republic Day: सीहोर में जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 अगस्त 1858 को सभी 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर सीवन नदी के किनारे लाकर सभी क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था.
India 74th Republic Day: ब्रिटिश सेना के खिलाफ भारत में सबसे पहली क्रांति सीहोर में हुई थी. 1857 की क्रांति में एक साथ 356 क्रांतिकारियों ने शहादत दी थी. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखा जाता है. मेरठ से 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के रूप में शुरु हुई इस क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों में असंतोष फैलता गया और धीरे-धीरे इस आंदोलन ने उग्र रूप में लिया. पूरे देश के साथ ही मध्य भारत में भी अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को दबाने के लिए अनेक क्रांतिकारियों को गोली से भून दिया.
अंग्रेजी शासन के खिलाफ मध्य भारत में चल रहे विद्रोह में सीहोर की बर्बरतापूर्ण घटना को जलियावालाबाग हत्याकांड की तरह माना जाता है. 10 मई 1857 को मेरठ की क्रांति की ज्वाला सुलग रही थी. मेवाड़ उत्तर भारत से होती हुई क्रांतिकारी चपातियां 13 जून 1857 को सीहोर और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गई थी. एक अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों को नए कारतूस दिए गए. इन कारतूसों में सुअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी. जांच में सुअर और गाय की चर्बी के उपयोग की बात सामने आने पर सैनिकों में आक्रोश और बढ़ गया. सीहोर छावनी के सैनिकों ने सीहोर कॉन्टिनेंट पर लगा अंग्रेजों का झंडा उतार कर जला दिया और महावीर कोठ और वलीशाह के संयुक्त नेतृत्व में स्वतंत्र सिपाही बहादुर सरकार का ऐलान किया.
सैनिकों ने उतारा था अंग्रेजों का झण्डा
वहीं जनरल ह्यूरोज को जब सीहोर की क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इसे बलपूर्वक कूचलने के आदेश दिए. सीहोर में जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 अगस्त 1858 को सभी 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर सीवन नदी के किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में लाया गया. यहां इन सभी क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था. जनरल ह्यूरोज ने इन क्रांतिकारियों के शव पेड़ों पर लटकाने के आदेश दिए जिसके बाद शवों को पेड़ों पर लटकाकर छोड़ दिया गया था. दो दिन बाद आसपास के ग्रामवासियों ने इन क्रांतिकारियों के शवों को पेड़ों से उतारकर इसी मैदान में दफनाया था.