Madhya Pradesh News: कोविड-19 (Covid-19) ने मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में दीपावली (Diwali) की परंपरा से जुड़े ‘‘हिंगोट युद्ध’’ (Hingot war) पर ग्रहण लगा दिया है. प्रशासन ने कोविड-19 की रोकथाम के लिए सामाजिक कार्यक्रमों पर पाबंदी के पुराने आदेश का हवाला देते हुए हिंगोट युद्ध को अनुमति देने से इनकार कर दिया. हालांकि, इन दिनों जिले में महामारी के नये मामलों की तादाद बेहद कम रह गई है. अधिकारियों ने बताया कि परंपरा के तहत दीपावली के अगले दिन इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा क्षेत्र में दो प्रतिस्पर्धी दलों के ग्रामीण लड़ाके फल में बारूद भरकर एक-दूसरे पर दागते हैं जिससे कई वर्षों के दौरान इस आयोजन में कई लोग हताहत हो चुके हैं.
अनुविभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) रवि सिंह ने आज ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया, ‘‘चूंकि कोविड-19 की रोकथाम के लिए सामाजिक कार्यक्रमों पर पाबंदी को लेकर जिला प्रशासन का आदेश अब भी प्रभावी हैं, इसलिए हम हिंगोट युद्ध के आयोजन को अनुमति नहीं दे सकते.’’ उन्होंने बताया कि प्रशासन ने बैठक आयोजित कर ग्रामीणों को हिंगोट युद्ध के आयोजन पर भीड़ न लगाने की हिदायत दी है. हालांकि, प्रशासन को आशंका है कि ग्रामीण इस हिदायत को अनदेखा कर हिंगोट युद्ध छेड़ सकते हैं.
एसडीएम ने कहा, ‘‘दीपावली के अगले दिन गौतमपुरा क्षेत्र में सावधानी के तौर पर पुलिस बल के साथ ही एम्बुलेंस और अग्निशमन दल को देर रात तक तैयार रखा जाएगा.’’ उन्होंने बताया कि जरूरत पड़ने पर ग्रामीणों की तलाशी भी ली जाएगी ताकि पता लगाया जा सके कि उनके पास बारूद भरा हिंगोट तो नहीं है. उधर, गौतमपुरा नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष विशाल राठी ने प्रशासन से अनुरोध किया कि दीपावली की परंपरा के मद्देनजर सांकेतिक हिंगोट युद्ध को मंजूरी दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासन चाहे तो हिंगोट युद्ध में शामिल होने वाले ग्रामीणों की संख्या बेहद सीमित कर सकता है.’’ जानकारों ने बताया कि हिंगोट, आंवले के आकार वाला एक जंगली फल होता है. गूदा निकालकर इस फल को खोखला कर लिया जाता है. फिर हिंगोट को सुखाकर इसमें खास तरीके से बारूद भरी जाती है. नतीजतन आग लगाते ही ये रॉकेट जैसे पटाखे की तरह बेहद तेज गति से छूटता है और लम्बी दूरी तय करता है. गौतमपुरा कस्बे में दीपावली के अगले दिन यानी विक्रम संवत की कार्तिक शुक्ल प्रथमा को हिंगोट युद्ध की परंपरा निभाई जाती है. गौतमपुरा के योद्धाओं के दल को "तुर्रा" नाम दिया जाता है, जबकि रुणजी गांव के लड़ाके "कलंगी" दल की अगुवाई करते हैं. दोनों दलों के योद्धा रिवायती जंग के दौरान एक-दूसरे पर हिंगोट दागते हैं.