हर घर में ईको फ्रेंडली प्रतिमा स्थापित हो इस उद्देश्य के साथ 9 सालों से एक महिला इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बना रही है. उन्होंने पंचामृत से भगवान गणेश की प्रतिमा बनाई है. ये प्रतिमाएं पर्यावरण को ध्यान में रखकर गो मूत्र, गोबर, दही, शहद और मिट्टी से बना रही हैं. अब सपना यह है कि भारत सरकार के द्वारा चलाए जा रहे आत्मनिर्भर अभियान से जुड़ना है. इस अभियान के लिए गांव की और महिलाओं को भी जोड़ा जा रहा है और उन्हें मूर्तियां बनाना भी सिखाया जा रहा जिससे की ये घरेलू महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन सकें.


इंदौर से सटे देपालपुर के गांव आगरा की यहां रहने वाली महिला अंगूर बाला पिछले 09 सालों से इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बना रही हैं. अंगूर बाला को बचपने से ही प्रतिमाए बनाने का शौक था. शादी होने के बाद प्रतिमाएं बनाना बंद कर दी थी जब अंगूर बाला के पति को उनके मूर्ति बनाने के हुनर के बारे में पता चला तो उन्होंने फिर से मूर्ति बनाने के लिए प्रेरित किया और साथ ही कहा कि जो मूर्तियां हैं वह कभी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने देख ली तो हो सकता है तुम्हें मिलने के लिए बुलाएं.


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महिला के दिल में ये बात घर कर गई. और अंगूर बाला ने मूर्तियां बनाना शुरू कर दी. अब वह कहती हैं कि जो मूर्तियां बना रही हैं. वह पूरी तरह से पर्यावरण को ध्यान में रखा गया है. आज के दौर में भगवान के नाम पर भी लोग कमाई करने का मौका नहीं छोड़ते लेकिन आज जो पर्यावरण और जीव जंतु बर्बाद हो रहे हैं उसके जिम्मेदार भी हम हैं. इसलिए इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बनाई है.


अब जो प्रतिमाएं बनती है उसमें केमिकल होता है केमिकल के कारण जीव जन्तु मर जाते हैं. मछली और पानी में रहने वाले तमाम तरह के जीव जंतु को परेशानी से गुजरना पढ़ता है. इसलिए पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इको फ्रेंडली प्रतिमाओ को बनाया जा रहा है. अंगूर बाला कहती हैं कि सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में आत्मनिर्भर भारत भी है. आज मेरे पास 4 से 5 महिलाए मूर्तियां बनाने आ रही हैं लेकिन 20 से 30 महिलाए आएंगी उस रोज मेरा आत्मनिर्भर का सपना पूरा हो जाएगा.


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