Indore News: यहां होता है अनोखा भंडारा, सूर्यास्त के बाद जलती चिताओं के बीच लोग ग्रहण करते हैं भोजन, जानें क्या है परंपरा
कोरोना काल में मुक्तिधाम में भंडारे का आयोजन नहीं किया गया था. उस दौरान प्रसादी के पैकेट बनाकर श्रद्धालुओं के घर भेजे गए थे. हालांकि, इस बार काल भैरव जयंती के दिन 20 हजार लोगों के आने की संभावना है.
Indore News: मध्य प्रदेश में यूं तो धार्मिक कार्यक्रम और राजनीति के लिए कई भंडारे होते हैं, लेकिन इंदौर में एक ऐसे अनोखे भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसके बारे में जानकर आप भी अचंभित रह जाएंगे. इंदौर में जब भी इस प्रसिद्ध भंडारे का आयोजन होता है, पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन जाता है. दरअसल, यह भंडारा होता है श्मशान घाट पर, वह भी सूर्यास्त के बाद.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, सूर्यास्त के बाद मुक्तिधाम में प्रवेश करने से परहेज किया जाता है, लेकिन इंदौर शहर में एक ऐसा मुक्तिधाम है, जहां साल में एक बार तीन दिवसीय उत्सव होता है. इसके लिए हजारों श्रद्धालु सूर्यास्त के बाद जुटते हैं और मुक्तिधाम में विराजित अपने आराध्य का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाते हैं. इतना ही नहीं, श्रद्धालु अपने आराध्य को 56 भोग भी अर्पित करते हैं. वहीं, जलती चिताओं के बीच सुंदरकांड और भजन-कीर्तन किया जाता है.
भंडारे में भारी संख्या में जुटती है भीड़
यह उत्सव मध्य प्रदेश के इंदौर के रामबाग स्थित मुक्तिधाम में हर साल भैरव अष्टमी पर मनाया जाता है. यहां जलती चिताओं के बीच भोजन प्रसादी ग्रहण करने के लिए नवजात शिशु से लेकर वृद्धजनों तक, सभी आते हैं और भंडारे में भारी संख्या में भीड़ लगती है. बिना किसी हिचकिचाहट के लोग चिताओं के बीच बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं.
इस साल आ सकते हैं 20 हजार से ज्यादा लोग
वहीं, आयोजन प्रबंधन समिति के अगुआ दिलीप माने के अनुसार, बीते दो साल के कोरोना काल में एहतियातन 5 हजार प्रसादी के पैकेट तैयार कर पंजीकृत श्रद्धालुओं के घर तक पहुंचाए जा रहे थे. माने ने यह भी बताया की इस साल 14-16 नवंबर को आयोजित होने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम में लगभग 20 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं के शामिल होने का अनुमान है. प्रबंधन समिति के अनुसार, यहां लगभग 5 टन भोजन सामग्री तैयार की जाती है. दो टन से ज्यादा सब्जी, एक टन आटे की पूड़ी सहित कुल 5 टन भोजन सामग्री तैयार की जाती है.
भैरव अष्टमी के दिन होता है भंडारे का आयोजन
बता दें कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं में विद्यार्थी, कारोबारी, विवाहित-अविवाहित महिलाओं से लेकर इनके नवजात शिशु शामिल होते हैं. ये सभी साल भर अपने आराध्य से मान मन्नत करने के बाद एक बार भैरव अष्टमी पर यहां दर्शन करने के लिए आते हैं. साथ ही, जलती चिताओं के बीच भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं.