उषा ठाकुर ने कांग्रेस नेता राम शुक्ला की BJP में क्यों कराई एंट्री? पढ़ें क्षेत्र का सियासी समीकरण
MP News: विधानसभा चुनाव में राम किशोर शुक्ला कांग्रेस से और अंतर सिंह दरबार निर्दलीय उषा ठाकुर के सामने लड़े थे. कुछ दिन पहले शुक्ला के बीजेपी में दस्तक की आहट पर ठाकुर ने विरोध किया था.
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MP Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में कांग्रेस को लगातार झटके लग रहे हैं. कांग्रेस नेताओं के बीजेपी में शामिल होने का सिलसिला जारी है. बीजेपी कांग्रेस में सेंधमारी कर कुनबा विस्तार करना चाह रही है.
कल स्थापना दिवस पर बीजेपी ने दावा किया कि बड़े पैमाने पर नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कहा. कांग्रेस बीजेपी के दावे को मानने से इनकार कर रही है. इस बीच इंदौर के महू में बड़ा घटनाक्रम हुआ. विधानसभा प्रत्याशी रह चुके राम किशोर शुक्ला बीजेपी में शामिल हो गये. शुक्ला चार बार दल बदल कर चुके हैं. आईए जानते हैं महू के सियासी समीकरण.
बीजेपी के बागी को उषा ठाकुर ने दिलायी सदस्यता
विधानसभा चुनाव में राम किशोर शुक्ला कांग्रेस से और अंतर सिंह दरबार निर्दलीय उषा ठाकुर के सामने लड़े थे. राम किशोर शुक्ला और अंतर सिंह दरबार के बीजेपी में शामिल होने पर उषा ठाकुर को ऐतराज था. कुछ दिन पहले शुक्ला के बीजेपी में दस्तक की आहट पर ठाकुर ने विरोधी तेवर दिखा दिए थे. ठाकुर के विरोध की वजह से शुक्ला का बीजेपी में प्रवेश स्थगित हो गया.
शनिवार को बीजेपी के स्थापना दिवस पर उषा ठाकुर ने शुक्ला की बीजेपी में एंट्री करवायी. उषा ठाकुर ने दरबार के बीजेपी में एंट्री का फैसला खुलकर स्वीकार नहीं किया. हालांकि, दोनों की एक गुप्त भेंट की सूचना है.
उसके बावजूद रिश्तों की लड़ियां बिखरी हुई हैं. शनिवार को स्थापना दिवस पर बूथ स्तरीय कार्यक्रम की कमान विधायक की टीम के हाथ में रही. दरबार विधायक की टीम से नदारद रहे. खबर है कि उन्होंने अपने स्तर पर आयोजन किया. सूत्रों के मुताबिक दोनों की दूरियां खत्म होने में वक्त लगेगा. उषा ठाकुर को राम किशोर शुक्ला से भी परहेज था. उन्होंने स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा उठाकर टिकट के लिए दावेदरी पेश की थी.
राम किशोर शुक्ला 25 वर्षों में चार बार इधर-उधर
राम किशोर शुक्ला का पच्चीस वर्षों में चार बार इधर-उधर 'आना जाना' हो गया है. दो बार कांग्रेस में रह लिए और दो बार बीजेपी के हो गए. दोनों पार्टियों में रहते हुए अंतर सिंह दरबार से शुक्ला की राजनीतिक तल्खी बरकरार रही. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुक्ला के कांग्रेस में प्रवेश की बात चल रही थी. उस वक्त पुराने कांग्रेसियों ने 'ना-ना' किया था, उनमें दरबार सबसे उग्र थे.
ॉशुक्ला को कांग्रेस में प्रवेश से नहीं रोक पाने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा. चुनाव में शुक्ला को तीसरे नंबर पर जाना पड़ा. दरबार की चाल से शुक्ला आज तक आहत हैं. उनका मानना है कि दरबार के निर्दलीय खड़े होने से समीकरण बिगड़ गया. हार जीत होने के बावजूद तीसरे नंबर पर नहीं पहुंचते. साठ हजार वोट का बड़ा हिस्सा उनके खाते में जाता. एक-दूसरे से परहेज करने वाले सभी नेता अब एक ही दल में हैं.
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