Indore News: देशभर में कश्मीर पंडितों का मुद्दा गरमाया हुआ है. इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने हाल ही में बयान दिया है कि जो भी कश्मीरी पंडित परिवार मध्य प्रदेश में रहते हैं और अगर वह कश्मीर जाना चाहते हैं तो सरकार उन्हें कश्मीर भेजने में सहायता करेगी. इसी बयान को लेकर जब इन्दौर के निपानिया में रहने वाले कश्मीरी पंडित संजीव पंडित जो इन्दौर में प्राइवेट सेक्टर में काम कर अपना जीवन दो बेटी और पत्नी के साथ बिता रहे हैं उनका कहना है कि वे गृहमंत्री के बयान का स्वागत करते है और दिल से धन्यवाद करते हैं.


सोर्स ऑफ इनकम और सुरक्षा मिले-संजीव पंडित
संजीव पंडित ने कहा, ऐसी पहल करनी चाहिए लेकिन मूल मुद्दा यह है कि अगर वहां जाते हैं तो वहां हम करेंगे क्या. कोई भी सरकार हो उनसे निवेदन है कि हमारे लिये वहा पर एक सोर्स ऑफ इनकम हो जाए. बच्चों को जॉब मिले या ऐसी सहायता दी जाए जिससे वे अपना बिजनेस सेटअप कर सकें. अगर ऐसा हो जाए तो हम जाना चाहेंगे. उन्होंने कांग्रेस नेता विवेक तन्खा के बयान पर कहा कि उन्होंने बहुत सही कहा है कि सुरक्षा को लेकर कोई गारंटी हो. वहां जाकर उनके साथ कोई अप्रिय घटना फिर से न घटे क्योंकि यह देश के लिए हास्यास्पद होगा. 


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माता ने खो दी मानसिक हालत-संजीव पंडित
संजीव पंडित ने बताया कि वे 1989 में कश्मीर छोड़कर आए थे. तब वहा उनकी15 लाख रु की प्रॉपर्टी थी. वहा कनाल चलता है. 50 से 60 हजार रु कनाल के मिलता था. वह अब डेढ़ से दो करोड़ रु कनाल हो गया है. हमने अपना बचपन खोया है जवानी खोई है लेकिन कोई अनैतिक कार्य नहीं किया. हमारी माताजी का दो साल पूर्व देहांत हुआ है जिन्होंने अपने आखरी दिनों में अपनी मानसिक स्थिति तक खो दी थी. वे ऐसे ही बैठे बैठे कश्मीरी में बात करने लग जाती थीं. 


पिता को आया हार्ट अटैक
संजीव पंडित ने कहा कि, घर ऐसे ही छोड़ देने से मानसिक असर पड़ता है. इसी कारण हमारे पिताजी को भी 1989 में वहां प्रॉपर्टी के नुकसान के चलते हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक एक साथ हो गया. वे इसे सहन नहीं कर पाए और हमने उन्हें खो दिया. तब हालात अलग थे जब 4 से 5 प्रतिशत कश्मीरी पंडित थे अब अगर लौटते भी हैं तो 2 से 3 प्रतिशत से ज्यादा नहीं जाएंगे तो हम अपना बचाव कैसे करेंगे.


संजीव की पत्नी ने क्या कहा
संजीव की पत्नी भावना का कहना है कि हम 2008 में कश्मीर गए थे. तब के हालात देखकर लगता था कि कभी कश्मीर नहीं जाना है. अगर सरकार भेजती है तो निवेदन है कि जो बच्चे योग्य हैं उन्हें जॉब दे. हमें सुरक्षा दे. केवल वहां जाने से कुछ नहीं होगा. पूरी जिन्दगी हमनें संघर्ष किया है. सरकार अब कुछ कर देती है तो मरते मरते शांति रहेगी कि मरने से पहले अपने घर लौट गए. यह हमारी ही नहीं हर कश्मीरी पंडित की तमन्ना है.


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कौन हैं संजीव
बता दे कि संजीव अनंतनाग के पास एक गांव हरदातुरु के रहने वाले थे. उनका जन्म श्रीनगर में हुआ और वहीं उन्होंने अपनी पढ़ाई भी पूरी की. वे करीब 22 साल की उम्र में 1989 में कश्मीर में अपने पिताजी का कपड़ों का कारोबार छोड़कर आए थे, जिसके बाद 1995 से इन्दौर में बसे हैं.