Indore Gangrape Case: हाई कोर्ट उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर ने गैंगरेप के आरोप का सामना कर रहे तीन उम्रदराज शिक्षाकर्मियों की अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार करते हुए टिप्पणी की है. न्यायालय ने कहा है कि इस पूरे मामले में प्रतिशोध स्वरूप गैंगरेप के झूठे आरोपों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. दरअसल शाजापुर निवासी 40 वर्षीय विवाहित महिला ने नवम्बर माह में 50 से 55 वर्षीय तीन शिक्षाकर्मियों कमाल अहमद, वाहिद खान और सलीम खान के खिलाफ कोतवाली शाजापुर में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी.
रिपोर्ट में आरोप था कि तीनों ही आरोपियों पुराने चलते आ रहे विवाद के राजीनामा करने की धौंस देकर रात में घर में घुसे, उसका बलात्कार किया और जान से मारने की धमकी देकर गए थे. जिस पर फरियादी महिला की शिकायत पर कोतवाली शाजापुर ने तीनों ही आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप की गंभीर धाराओं में प्रकरण दर्ज कर लिया. इस मामले में तीनों ही शिक्षकों ने न्यायालय की शरण में जाकर अधिवक्ता मनीष यादव और अधिवक्ता अदिति यादव की मदद से अपनी अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई थी.
झूठी कहानी रचकर शिक्षकों पर गैंगरेप का केस: आरोपी पक्ष
वहीं अधिवक्ता मनीष यादव ने हाई कोर्ट उच्च न्यायालय खंड पीठ में शिक्षको की अग्रिम जमानत लगाकर अपनी बात रखते हुए बताया कि पूरा मामला प्रथमदृष्टया ही झूठे आरोपों का है. वर्ष 2021 में शिकायतकर्ता पीड़िता के पति ने आरोपी कमाल पर जानलेवा हमला किया था. जिस पर उसके पति पर गंभीर धाराओं में प्रकरण दर्ज होकर निचली अदालत में सुनवाई चल रही है. जिसमें बाकी दो आरोपी गवाह है और वे लगातार राजीनामा करने के लिए दबाव बनाने जा रहे थे. जिसके खिलाफ कई बार थाने में भी आवेदन भी दिया जा चुका है. इस पर महिला ने पिछले नवम्बर माह में झूठी कहानी रचकर तीनों शिक्षकों पर गैंगरेप किए जाने का केस दर्ज करवा दिया था.
अधिवक्ता ने आगे कहा कि शिकायत में उल्लेख किया गया था कि शिक्षकों ने बारी-बारी से ज्यादती की थी. वही शिकायतकर्ता की बताई गई गैंगरेप की घटना के समय याचिकाकर्ता घटनास्थल से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर थे और पीड़िता को किसी प्रकार की आंतरिक या बाहरी चोट भी नहीं है, जिससे गैंगरेप के आरोप की पुष्टि हो सके. वहीं तीनो शासकीय सेवक हैं.
उच्च न्यायालय ने दी अग्रिम जमानत
बता दें कि सभी पक्षों को सुनकर उच्च न्यायालय खंडपीठ ने दिनांक 17 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. जिसे जारी करते हुए यादव के तर्कों से सहमत होकर न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की बेंच ने तीनों की अग्रिम जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की है कि मेडिकल साक्ष्य और परिस्थितियों को देखते हुए लगता है की पूरा मामला प्रतिशोध स्वरूप दर्ज कराया हो सकता है. हाई कोर्ट में दायर अर्जी में उल्लेख किया कि पूरा मामला फर्जी है. तीनों ही शिक्षक अग्रिम जमानत के पात्र हैं. इसलिए तीनों को अग्रिम जमानत का लाभ दिया जाता है.
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