Indore News: लॉ कॉलेज में पढ़ाई जा रही थी धार्मिक कट्टरता वाली विवादित किताब, कोर्ट ने आरोपियों की अग्रिम जमानत की निरस्त
Indore News: नवीन विधि महाविद्यालय की लाइब्रेरी में विवादित पुस्तक पाई गई थी, जिसमें हिंदू धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक बातें लिखी हैं. इसमें कहीं न कहीं दो संप्रदायों में नफरत फैलाने का काम किया गया है.
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Indore News: मध्य प्रदेश के इंदौर में शासकीय विधि महाविद्यालय में सामूहिक हिंसा एवं दांडित न्याय पद्धति नामक विवादित पुस्तक मामला कोर्ट पहुंच चुका है. शासकीय विधि महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य इनामउर्रहमान और प्रोफेसर मिर्जा मौजिज बेग ने कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे जिला न्यायाधीश ने खारिज कर दिया है.
इधर फरियादी पक्ष के अधिवक्ता गोविंद सिंह बेस ने मीडिया से चर्चा के दौरान कहा कि मंगलवार 14वें अपर सत्र न्यायाधीश आरके गोयल की कोर्ट में दो जमानत रद्द की गई हैं. इसमें गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य इनामउर्रहमान और मिर्जा मौजिज बैग द्वारा अग्रिम जमानत लगाई गई थी. इसपर विपक्ष के पक्षकार ने तर्क प्रस्तुत किए और दोनों की जमानत न्यायाधीश ने खारिज कर दी. फरियादी लकी आदिवाल ने एफआईआर दर्ज की है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि दोनों आरोपियों द्वारा लिखी किताब में दो जातियों के बीच नफरत फैलाने का काम किया गया है. न्यायाधीश ने भी इस बात को माना था. ऐसे में समाज में नफरत फैलाने के आधार पर आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है.
प्रिंसिपल ने कहा- किताब नहीं पढ़ोगे तो मार्क्स कम हो जाएंगे
वहीं, एडवोकेट ने यह भी बताया कि विवाद का मूल विषय इंदौर के नवीन विधि महाविद्यालय की लाइब्रेरी में विवादित पुस्तक पाई गई थी, जिसमें हिंदू धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक बात लिखी हुई है. इसमें कहीं न कहीं दो संप्रदायों में नफरत फैलाने का काम किया जा रहा था. इसपर लॉ कॉलेज के छात्रों ने किताब का विरोध किया था. साथ ही प्राचार्य पर छात्रों ने इस पुस्तक को पढ़ाने का आरोप लगाया था. कई छात्रों का कहना है कि प्रिंसिपल छात्रों पर यह बुक पढ़ने का दबाव बनाते थे. अगर इस बुक का रेफरेंस या इसकी पढ़ाई नहीं करोगे, तो परीक्षा में आपके मार्क्स कम हो जाएंगे.
2014 से स्कूल में पढ़ाई जा रही किताब
फरियादी अधिवक्ता गोविंद सिंह बेस ने कहा कि प्रकाशक अमर पब्लिकेशंस और किताब की लेखिका फरहत खान हैं. अग्रिम जमानत का इसमें मुख्य तर्क दोनों याचिकाकर्ताओं द्वारा दिया गया था कि जो पुस्तक 2014 में आई है उस समय प्राचार्य कोई और था. इस आधार पर उन्होंने अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी. वहीं, फरियादी द्वारा तर्क दिया कि 2014 में बुक जरूर आई थी लेकिन लगातार आप इस बुक को छात्रों को पढ़ा रहे थे और कहीं ना कहीं छात्रों के ब्रेनवॉश करने के लिए इस किताब का इस्तेमाल कर रहे थे. इसी तर्क पर 14वें अपर सत्र न्यायाधीश आरके गोयल ने दोनों की याचिका निरस्त कर दी.
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