Indore News: दालों के दाम में पिछले दो हफ्तों से गिरावट जारी है ऐसे में दालों की कीमत कम होने से व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ है. लगातार दाम गिरने के कारण 200 करोड़ से अधिक का घाटा होने का अनुमान है. दाम में गिरावट का कारण दाल मिल एसोसिएशन ने आगामी चुनाव को बताया है. इस हफ्ते की शुरुआत से तुअर दाल में ग्राहकी एकदम सुस्त बनी हुई है. देशी तुअर दाल में 300 से 400 रुपए प्रति क्विंटल और इंपोर्टेड तुअर दाल में 500 से 600 रुपए का भाव घटकर अब 1000 प्रति क्विंटल तक जा पहुंचा है.
दाल-चावल की थोक मंडी में ग्राहकों का टोटा
दाल-चावल की थोक मंडी में ग्राहकों का टोटा पड़ गया है. तुअर दाल देशी मीडियम और बोल्ड इंपोर्टेड के बाजार घटने से अन्य दालों का भी दाम व्यापारियों ने घटाए. बावजूद इसके फिर भी ग्राहकी नहीं निकल रही है. तुअर दाल का लगातार भाव घटने से बाजार में उठाव नहीं है. यही नहीं हालत दूसरी दालों में भी ग्राहकी नहीं मिल रही.
दाल उद्योग को 15 दिनों में 200 करोड़ की हानि
इंदौर में ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि दाल की कीमत में गिरावट को देखते हुए भारत सरकार ने अक्टूबर के अंत में मीटिंग ली थी. मीटिंग में जिम्बाब्वे, केन्या, साउथ अफ्रीका सहित कई देशों से दाल आयात करने का फैसला लिया गया. अनुबंध के तहत 7 जहाजों पर दाल रवाना किया गया. इंदौर आने में तीस से चालीस दिन लगेंगे. दाल की उपज दिसंबर माह में होती है. विदेशी और देशी दाल एक साथ आने से 10 से 12 रु प्रति किलो कम में मिल रही है. भारत में करीब 1000 दाल इंडस्ट्रीज व्यापार करती हैं. दाल उद्योग को करीब 15 दिनों में ही 200 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है.
सुरेश अग्रवाल ने आगे बताया कि व्यापारी से ज्यादा नुकसान किसानों को होंगे. तुअर दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार ने 6600 रु किया है. भारत सरकार से अनुरोध है कि किसान भाइयों को दालों के दाम करीब 80 से 90 रु किलो मिलना चाहिए. किसान को वाजिब दाम मिलने पर उत्पादन का हौसला बढ़ेगा. पॉलिसी में बदलाव का असर जरूर होता है. चुनाव के समय सरकार महंगाई काबू करने की दिशा में कदम उठाती है. आने वाले समय में मध्यप्रदेश, राजस्थान के भी चुनाव होने हैं लेकिन सरकार को चाहिए कि चुनावी मौसम में कीमतें कम करने के साथ उत्पादन बढाने पर जोर दे ताकि तुअर, उड़द का उत्पादन ज्यादा हो और दूसरे देशों की तरफ देखना न पड़े.