Religious Places of Indore: भारत में जहां हिन्दुओं के द्वारा 36 कोटि देवी-देवताओं की पूजा अर्चना और आराधना की जाती है. तो वहीं अनेकता में एकता का नजारा भी विश्व भर में सिर्फ भारत में ही देखने को मिलता है. इसका उदाहरण आप मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के शहर इंदौर (Indore) में भी देख सकते हैं. जहां सभी धर्मों के पवित्र धार्मिक स्थल देश भर में अपनी ख्याति के लिए प्रसिद्ध है. जिनमें खजराना गणेश मंदिर,बिजासन माता मंदिर, नाहरशाह वली सरकार की दरगाह, श्री इमली साहेब जी का गुरूद्वारा, गोमट गिरी स्थित भगवान जैन की धर्म स्थली प्रमुख धार्मिक स्थल है. यहीं वजह है कि सर्व- धर्म के धार्मिक स्थलों से संपन्न इंदौर को धार्मिक स्थली के नाम से भी जाना जाता है. चलिए बताते हैं आपको इन सभी स्थलों से जुड़ी रोचक कहानियां...


सबसे धनी है खजराना गणेश मंदिर


जब इन्दौर के धार्मिक स्थलों की बात की जाती है तो सबसे पहले नाम आता है खजराना गणेश मंदिर का. ये मंदिर बहादुर मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनाया गया था. कहा जाता है कि औरंगजेब से मूर्ति की रक्षा करने के लिए. मूर्ति को एक कुएं में छिपा दिया गया था और 1735 में इसे कुएं से निकाल लिया गया था. जिसके बाद 1735 में मंदिर की स्थापना अहिल्याबाई होल्कर द्वारा की गई थी. जो मराठा के होली वंश से संबंधित थी. गणपति जी का ये मंदिर देश के सबसे धनी गणेश मंदिरों में से एक माना जाता है. श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद यहां आकर दिल खोलकर चढ़ावा चढ़ाते हैं.


मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूरी होती मन्नत


कहा जाता है कि, इस मंदिर में पूजा करने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. वहीं भक्तों की मान्यता ये भी है कि इस मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने से हर मन्नत पूरी होती है. इस मंदिर में बुधवार और रविवार को विशाल संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. एक स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का मुख्य त्योहार विनायक चतुर्थी है और इसे अगस्त और सितंबर के महीने में भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है. मंदिर को सरकार ने अपने अधीन ले लिया है. जिसके बाद जिला प्रशासन द्वारा इसकी देखरेख की जाती है. मंदिर का प्रबंधन भट्ट परिवार द्वारा किया जाता है.




नाहरशाह वली की मस्जिद पर हिंदू भी करते हैं जियारत


वहीं इन्दौर की पहचान सर्वधर्म सदभाव और आपसी भाईचारा की है. जिसकी बानगी खजराना में देखने को मिलती है जहां खजराना में गणेश भगवान विराजित है. तो वहीं इराक से आए हजरत नाहरशाह वली की मुकद्दस मजार भी मौजूद है. जहां गंगा जमना तहजीब भी दिखाई देती है. दरगाह पर मुस्लिम समाज के साथ हिन्दू समाज के लोग भी जियारत को आते है. दरगाह का इतिहास करीब 350 साल पहले का बताया जाता है. खजराना पुरी तरह जंगल हुआ करता था. एक ऊंचे टीले पर मुस्लिम संत इबादत किया करते थे. तब जंगली जानवर जैसे शेर वगैरह भी आकर संत के पास बैठ जाया करते थे. नाहर (शेर) मुस्लिम संत के पास बैठा देख गांव के लोग संत को नाहरवाले बाबा पुकारने लगे और संत का नाम नाहरशाह पड़ा. नाहरशाह की मृत्यु के बाद नाहरशाह वली को इसी स्थान पर दफ़नाया गया. बताया जाता है कि नाहरशाह वली सरकार की जनाजे की नमाज मुगल बादशाह औरंगजेब ने पढ़ाई थी. जिसके बाद समय के साथ-साथ मजार का विस्तार हुआ और आज ये मजार मालवा की पहचान बन गया है.




इस मंदिर में देवी के नौ स्वरूप विद्यमान हैं


वहीं इन्दौर एयरपोर्ट के पास एक एक टेकरी पर मां बिजासन का मंदिर है. मंदिर के पुजारियों के अनुसार है कि ये पिंडियां स्वयंभू हैं. ये मूर्तियां यहां कब से प्रतिष्ठित हैं, इस बारे में ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. पुजारियों का कहना है कि सैकड़ों सालों से ये पिंडियां यहीं प्रतिष्ठित हैं. यहां देवी के नौ स्वरूप विद्यमान हैं. मंदिर का निर्माण इंदौर के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने 1760 में कराया गया था. जिसके बाद उसे पक्का बनवाया गया. वहीं टेकरी पर एक तालाब भी है. इस तालाब की मान्यता है कि मछलियों को दाना खिलाने से पुण्य मिलता है और मां उनकी मन्नत जरूर पूरी करती हैं. इस मंदिर में यू तो हर समय भक्त आते हैं लेकिन नवरात्र में लाखों की संख्या में दर्शन करने श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.




श्री इमली सहाब गुरुद्वारा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है


वहीं बात की जाए सिख समाज की तो, यहां का श्री इमली सहाब गुरुद्वारा भी काफी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि इस गुरुद्वारे का इतिहास इंदौर शहर के इतिहास से भी पुराना हैं. संवत् 1506 में सिखों के गुरु नानकदेवजी अपनी उदासीन यात्रा के दौरान इंदौर आये थे. उस समय ना तो इन्दौर शहर की नींव रखी गई थी और ना ही होलकर राजाओ का शासन हुआ करता था. बताया जाता है कि उज्जैन के बाद ओंकारेश्वर से बेटमा पहुंचे गुरुनानक ने 6 महीने शबद कीर्तन के साथ साधना में लीन रहने के बाद इंदौर पहुंचकर खान नदी के आस पास ही अपना समय गुजारा. गुरु नानकदेव उस समय तीन महीने इंदौर में इन्हीं स्थानों पर रहे. इस दौरान गुरु नानकदेव जी कृष्णपुरा क्षत्री, चंद्रभागा पुल और खान नदी के किनारे साधु संतों के साथ चर्चा के लिए जाते थे. उस दरमियान नानकदेव जी के द्वारा एक इमली का पौधा लगाया गया जो आगे चलकर एक विशालकाय पेड़  बन चुका था. होलकर रियासत के समय पंजाब से आए सिख समाज के लोगों द्वारा इमली के पेड़ काट कर उस जगह 1940 में गुरुद्वारे का निर्माण किया. जिससे गुरुद्वारे को श्री इमली साहब गुरुद्वारे से पहचाने जाने लगा. इसलिए ये देश और दुनिया में सिखों की आस्था का प्रतीक हैं. यहां सालभर सिख धर्म के अलावा अन्य धर्म के लोग भी दर्शन के लिए आते हैं.




इंदौर में जैन धर्म के 24 तीर्थकारों के होते हैं दर्शन


वहीं हम बात करें जैन समाज की तो इन्दौर शहर के एयरपोर्ट से 4-5 किलोमीटर की दूरी पर गोमटगिरी नाम की पहाड़ी है जहां पर एक जैन तीर्थ स्थल है. यहां पर जैन धर्म के 24 तीर्थकारों के दर्शन होते हैं. यहां पर प्रत्येक तीर्थकर के लिए अलग-अलग मंदिर बनाए गए गए. मन्दिर के बाहर गार्डन में भगवान बाहुबली की बड़ी मूर्ति विराजमान है. जिससे मन्दिर की खूबसूरती देखते ही बनती है. यहां पर शाम के वक्त आप सूर्यास्त का सुंदर नजारा देख सकते हैं. यहां शनिवार और रविवार को अधिक जैन समाज के लोग आते है. यहां रुकने की व्यवस्था के साथ एक भोजनालय भी आने वाले लोगों के लिए बनाया गया है. यहां मंदिर पर जाने के लिए सीढ़ी तो बनी ही है. साथ ही वाहन से जाने के लिए सड़क भी बनाई गई है.




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