Indore News: 32 साल का इंतजार खत्म, संघर्ष कर रहे हुकुमचंद मिल के मजदूरों को अब जाकर मिलेगा पैसा
Madhya Pradesh News: हुकमचंद मिल के 5895 श्रमिकों और उनके परिजनों का 32 साल का इंतजार खत्म होने का समय आ गया है. मंगलवार को मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव. भुगतान प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये.
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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में सीएम मोहन यादव शपथ लेने के बाद से ही एक्शन मोड में हैं. वहीं आज उन्होंने हुकमचंद मिल के 5895 श्रमिकों और उनके परिजनों के 32 साल से अटके हुए पैसों के भुगतान पर साइन किए. शीघ्रता से कार्यक्रम आयोजित कर मिल श्रमिकों का भुगतान एक क्लिक से उनके खाते में भेज दिया जाएगा.
दरअसल, 12 दिसंबर 1991 को हुकुमचंद मिल बंद होने के बाद मजदूरों की बकाया राशि को लेकर सामना करना पड़ा. 5895 मजदूर में से 2200 से अधिक मजदूरों की मौत हो गई. इस दौरान कोर्ट में भी कैस भी चला. लंबे संघर्ष के बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने मजदूरों को भुगतान के लिए 464 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की है, जो की 2500 परिवारों को यह राशि सिंगल क्लिक के माध्यम से खातों में डाली जाएगी.
12 दिसंबर 1991 को बंद कर दी गई थी हुकमचंद मिल
हुकमचंद मिल को बंद हुए सालों हो गए हैं, तब से 5,895 कर्मचारी सदस्यता शुल्क का भुगतान करने के लिए भटक रहे हैं. हाउसिंग बोर्ड द्वारा मिल देनदारों का 425 करोड़ 89 लाख रुपए भोपाल स्थित बैंक में जमा कराया जा चुका है. मुख्यमंत्री की मंजूरी मिलने के बाद अब 26 दिसंबर से श्रमिकों के खाते में भुगतान भेजा जाना शुरू होने की संभावना है. 26 दिसंबर को मुख्यमंत्री द्वारा इसका शुभारंभ किये जाने की उम्मीद है.
वहीं महापौर बोले बिल मजदूरों को मिलने वाली राशि को लेकर नगर निगम पहले ही मिल की जमीन हाउसिंग बोर्ड को हस्तांतरित कर चुका है, जिसको लेकर इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने प्रदेश सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने राशि जमा करने के लिए आदेश जारी कर दिया है. हमने पहले ही सैद्धांतिक तरीके से जमीन हाउसिंग बोर्ड को ट्रांसफर कर दी है.
तुकोजी राव होलकर-द्वितीय लाये थे मिलों को इंदौर
तुकोजी राव होलकर-द्वितीय (1844 से 1886) का युग इंदौर के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय था. राजा ने इंदौर में कपास मिलों की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि फिलहाल इंदौर में कोई मिल नहीं चल रही है. सेवानिवृत्त इतिहास के प्रोफेसर जेसी उपाध्याय बताते हैं कि, “राजा तुकोजी राव-द्वितीय के कार्यकाल में कपास मिलों की स्थापना शुरू हुई. इंग्लैण्ड से इंदौर के लिए मशीनें मंगवाई गईं लेकिन परिवहन सुविधा के अभाव में वे बम्बई तक ही पहुँचीं और लगभग एक वर्ष तक वहीं पड़ी रहीं. बाद में, मशीनें ट्रेन के माध्यम से खंडवा लाई गईं लेकिन फिर भी इंदौर नहीं पहुंचीं.'' प्रोफेसर उपाध्या ने कहा कि, राजा तुकोजी राव होल्कर-द्वितीय ने मशीन को खंडवा से इंदौर लगभग 135 किमी दूर लाने के लिए उस वक़्त अपना हाथी भेजा था."
इस तरह हुकुमचंद मिल की स्थापना हुई. जिसके मालिक सर सेठ हुकुमचंद थे. इंदौर में सात मिलें स्थापित की गईं जिनमें से दो मिलें हुकुमचंद मिल और राजकुमार मिल सर सेठ हुकुमचंद के स्वामित्व में थीं. बाकी अन्य मिलें मालवा मिल, भंडारी मिल, स्वदेशी मिल और कल्याण मिल थीं. ये मिलें सूती कपड़ों के लिए प्रसिद्ध थीं और नेमावर के कपास का उपयोग कपड़े बनाने में किया जाता था. समय के साथ, इन मिलों ने सूती कपड़ा व्यवसाय में देशव्यापी ख्याति मिली. मिलें एक दिन में तीन शिफ्टों में चलती थीं जो सुबह 8 से दोपहर 3 बजे, दोपहर 3 बजे से 12 बजे और 12 बजे से सुबह 8 बजे तक थीं. कर्मचारियों को शिफ्ट बदलने की सूचना हूटर बजाकर दी जाती थी.
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