Madhya Pradesh News: चंद्रयान-3 जैसे अंतरिक्ष मिशनों में मौजूदा समय में सिर्फ हल्की सामग्री भेजी जा सकती है, जिसका कुल वजन 3900 किलोग्राम हो, लेकिन भविष्य में भारत अंतरिक्ष में 30,000 किलोग्राम वजन भेजने की क्षमता विकसित कर सकेगा. इस उद्देश्य के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और इंदौर के राजा रमन्ना प्रगति प्रौद्योगिकी केंद्र (RRCAT) के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है.


2040 तक मानव अंतरिक्ष यात्रा की योजना को देखते हुए यह नई तकनीक काफी महत्वपूर्ण होगी. हाल ही में इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में ISRO के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (LPSC) के निदेशक डॉक्टर वी. नारायण ने इस तकनीक के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि 'सूर्या' नामक नई पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल का निर्माण किया जा रहा है, जो लिक्विड ऑक्सीजन और मिथेन प्रोपल्शन पर आधारित होगा.


RRCAT के निदेशक ने दी ये जानकारी
इस इंजन की तकनीक को विकसित करने में 18 से 24 महीने का समय लगेगा और यह लेजर एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (LAM) पर आधारित होगी. तकनीक विकसित होने के बाद इंजन का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया जाएगा. यह तकनीक पूरी तरह से स्वदेशी होगी और इसमें विदेशी सहयोग की जरूरत नहीं होगी. RRCAT के निदेशक उन्मेष डी. मल्शे ने बताया कि इस तकनीक के विकास के साथ ही इंजन को देश की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जा सकेगा.


उन्होंने कहा कि एक कार्यक्रम में दो नई कंपनियों के साथ अनुबंध किए गए. आरजे इंस्ट्रूमेंट प्राइवेट लिमिटेड, ठाणे के साथ एक सिंगल स्टेज 30के क्लास क्रायोकूलर और हीलियम कंप्रेसर का निर्माण किया जाएगा. वी फ्यूज मेटल्स, भोपाल ने दो किलोवाट लैम डीईडी मेटल 3डी प्रिंटर लॉन्च किया और मेटल एंड मेम्ब्रेन प्राइवेट लिमिटेड, इंदौर ने ठोस और छिद्रपूर्ण पाइपों को जोड़ने वाला एक नया प्रोडक्ट पेश किया.


नई लेजर एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (LAM) तकनीक का पहली बार उपयोग किया जाएगा, जो पिछले लॉन्च व्हीकल्स की तुलना में सात से आठ गुना बड़ा होगा. इस इंजन को पूरी तरह से तैयार होने में आठ साल लगेंगे. प्राथमिक चरण में यह इंजन रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में सामान भेजने में उपयोग किया जाएगा.




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