Same Sex Marriage: देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिले या ना मिले, इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बहस चल रही है. सरकार और याचिकाकर्ताओं के तर्कों को सुप्रीम कोर्ट सुन रहा है लेकिन इस बीच देश भर में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के खिलाफ सामाजिक संगठन सड़कों पर उतर रहे हैं. जबलपुर में भी हर वर्ग के लोगों ने मिलकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के नाम एक ज्ञापन कलेक्टर को सौंपा.


जबलपुर के डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, अधिवक्ता और व्यापारियों ने गुरुवार को एक साथ मिलकर घंटाघर चौक से कलेक्ट्रेट तक मार्च निकाला. इस मार्च में शामिल नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन स्थापक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को कोई भी फैसला लेने से पहले राज्य और देश के सामाजिक संगठनों की राय जरूर लेनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिका सुनने से इनकार कर दिया है. लिहाजा सामाजिक संगठन अब राष्ट्रपति से गुहार लगा रहे हैं. राष्ट्रपति के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने वाले सामाजिक संगठनों का कहना है कि समलैंगिक विवाह को अगर क़ानूनी मान्यता मिलती है तो समाज में विकृति आना तय है.देश में भविष्य में इस तरह के हालात ना बने, इसलिए समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए.


चीफ जस्टिस के नाम महिलाओं ने भेजा ज्ञापन
समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर मंगलवार को महिलाओं के संगठन जागृत शक्ति मंच ने भी जबलपुर कलेक्टर को राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम का ज्ञापन सौंपा था. मीडिया से चर्चा में महिलाओं ने कहा कि विवाह रूपी संस्था सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है. परिवार और कुटुंब का आधार सोलह संस्कारो में से एक विवाह है. भारत में वर-वधु एक-दूसरे का वरण कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते हैं.


शताब्दियों से केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच सम्पन्न हुए विवाह को ही मान्यता दी गई है. जागृत शक्ति मंच का कहना है कि विवाह विधि मात्र जैविक पुरुष और महिला पर लागू होती है.भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा (2014) और नवतेज जौहर (2018) के मामलों में समलैंगिकों एवं विपरीत लिंगी (Transgender) के अधिकारों को पहले ही संरक्षित किया जा चुका है.


ये भी पढ़ें: Narmadapuram: नर्मदा नदी में बेखौफ हो रहा रेत का खनन, ओवरलोड डंपर बने हादसों का सबब तो सड़कें भी हो रहीं छलनी