Deva Mangode Wala: खौलते तेल की कढ़ाई में हाथ डालकर मंगोड़ी तले जाने की हुनरबाजी, जानें पूरी कहानी
खास बात है कि खौलते तेल में हाथ डालने के बावजूद उन्हें कुछ नहीं होता. उनके हाथ से सारे जैविक सेल सक्रिय है.
जबलपुर: यूं तो शहर की खास पहचान 'देवा मंगोड़े वाले' अब जीवित नही हैं लेकिन उनके मंगोड़े के अनोखे स्वाद और चमत्कार की परंपरा बेटे अतुल निभा रहे है. अपने पिता की तरह खौलते तेल की कड़ाही में हाथ डालकर मंगोड़े तलने का हुनर अतुल के हाथों में भी है. कड़ाही के खौलते तेल में अपने हाथ डालकर मंगोड़ा निकालने के लिए मशहूर देवा अपने पीछे छह दशक लंबी विरासत छोड़ गए है, जिसे अब अतुल आगे बढ़ा रहे है. देवा मंगोड़े वाले के मंगोड़े की प्रसिद्धि अभी भी कायम है और शाम को तीन घंटे में ही उनके तले मंगोड़े लोग चट कर जाते हैं.
कैसे किया ये मौलिक प्रयोग
अतुल बताते है कि उनके पिता देवा उर्फ देवेन्द्र जैन ने वकालत की पढ़ाई की थी लेकिन यह पेशा कभी नहीं अपनाया. उनके दादा कंछेदीलाल मंगोड़ों की दुकान लगाते थे और यही दुकान वे देवा को विरासत में सौंप गए. देवा ने दादा की परम्परा को संजोते हुए उनसे एक कदम आगे बढ़कर बजाए झारे से मंगोड़े निकालने के घिसे-पिटे तरीके के एक मौलिक प्रयोग कर दिखाया. वे खौलती कड़ाही में हाथ डालकर गरमा-गरम मंगोड़े निकालने लगे.
खौलते तेल में कैसे डालते है हाथ
देवा के न रहने पर उनके बेटे अतुल ने वही हुनर सीख लिया है. अतुल का कहना है कि पिता की तरह उनकी भी मुसलमानों की एक परंपरा में अगाध श्रद्धा है. वे ताजिया की पूजा करते है. खौलते तेल में मंगोड़े डालने के बाद अतुल श्रद्धा में अपना हाथ उसमें स्पर्श करते है. खास बात है कि खौलते तेल में हाथ डालने के बावजूद उन्हें कुछ नहीं होता. उनके हाथ से सारे जैविक सेल सक्रिय है.
हर दिन कैसे जुड़ते गए नए ग्राहक
देवा मंगोड़े वाले की दुकान में स्वाद और चमत्कार का अद्भुत संगम है. जिसके कारण रोज मंगोड़ा प्रेमियों का तो दुकान पर जमघट लगा ही रहता था, उसके साथ-साथ नए-नए ग्राहक हर दिन बस इस रोमांच में खिंचे चले आते है. एक खास बात यह कि अतुल अक्सर सूरज डूबने के बाद अपनी दुकान सजाते है. मंगोड़े की पहली घान जैसे ही उनके हाथों से बाहर आती आसपास खुशबू फैल जाती और चंद पलों में ग्राहक मंगोड़े सफाचट कर निकल जाते. मंगोड़े के साथ अब भजिया, समोसा और बरा भी तला जाता है. जितना भी माल हो अधिकतम तीन घंटे में खत्म हो ही जाता.
पत्रकार सच्चिदानंद शेकटकर ने बताई परंपरा
शहर के वरिष्ठ पत्रकार सच्चिदानंद शेकटकर का कहना है कि देवा मंगोड़े वाले सिर्फ एक दुकान का नाम नहीं बल्कि सौ साल से भी ज्यादा की परंपरा है. दादा से शुरू हुई इस परंपरा को देवेंद्र जैन उर्फ देवा ने जो ऊंचाई दी, उसे उनका बेटा अतुल नए शिखर तक ले जा रहा है.
बड़े-बड़े दिग्गजों ने चखा स्वाद
भारतीय राजनीति के दिग्गज शरद यादव सहित न जाने कितनी हस्तियों ने बड़ा फुहारा स्थित प्रतिष्ठान 'देवा मंगोड़े वाले' के मंगोड़ों का लजीज स्वाद चखा है. देश का शायद ही कोई अखबार या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो जिसमें उनके इस हुनर को कवरेज न मिली हो.
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