Jabalpur News: अंतरजातीय विवाह पर मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 के तहत कार्रवाई हो सकती है या नहीं? इसका निर्धारण अब हाई कोर्ट करेगा. इससे जुड़ी एक याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई पूर्ण हो चुकी है और ऑर्डर रिज़र्व कर लिया गया है. दरअसल, अंतरजातीय विवाह करने पर धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं किए जाने की मांग एलएस हरदेनिया और आजम खान सहित आठ लोगों की ओर से याचिकाएं दायर कर की गई है. जस्टिस सुजय पॉल और जस्टिस पीसी गुप्ता की बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.


अंतरिम आवेदनों पर वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज शर्मा व हिमांशु मिश्रा सहित अन्य की ओर से दलील दी गई कि अगर धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के दायरे से अंतरजातीय विवाह के बिंदु को पृथक नहीं किया गया, तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होगा. ऐसा नहीं होने से अंतरजातीय विवाह की सूरत में आरोप साबित होने पर विवाह शून्य होने के अलावा संबंधितों को तीन से 10 साल तक की सजा हो सकती है.


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एलएस हरदेनिया व आजम खान सहित 8 लोगों की ओर से दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश शासन द्वारा लागू किए गए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.इसी सिलसिले में गुजरात व राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायदृष्टांतों का हवाला देते हुए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के अंतर्गत अंतरजातीय विवाह के मामलों में कार्रवाई नहीं किए जाने संबंधी अंतरिम राहत चाही गई है.


महिला अधिकारी को मिले शैक्षणिक अवकाश
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा कि महिला नर्सिंग अधिकारी को उच्च शिक्षा के लिए शैक्षणिक अवकाश हासिल करने का पूरा अधिकार है. इस मत के साथ जस्टिस एमएस भट्टी की एकलपीठ ने आयुक्त स्वास्थ्य संचालनालय, स्वास्थ्य सेवाएँ को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर 10 दिन के भीतर उचित निर्णय पारित करने के निर्देश दिए. जिला चिकित्सालय उमरिया में पदस्थ नर्सिंग ऑफिसर नम्रता मिश्रा की ओर से अधिवक्ता शंकर प्रसाद सिंह ने दलील दी कि मूलतः रीठी, जिला कटनी निवासी याचिकाकर्ता नर्सिंग ऑफिसर के पद पर संतोषजनक सेवाएँ दे रही है. वह मास्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ या डिप्लोमा इन हास्पिटल मैनेजमेंट का दो वर्ष का कोर्स करके अपनी शैक्षणिक योग्यता बढ़ाना चाहती है.