(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Jabalpur Doctors Crisis: जबलपुर के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी, स्वीकृत पदों के मुकाबले महज एक तिहाई डॉक्टर ही कर रहे काम
मध्य प्रदेश का जबलपुर जिले के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहा है. जिले में स्वीकृत पदों के मुकाबले महज एक तिहाई डॉक्टर ही काम कर रहे हैं इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.
जबलपुर: मध्यप्रदेश में एक तरफ जहां कोरोना की तीसरी लहर बेकाबू होती जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य महकमे के इन्तजामों पर एक बार फिर सवालिया निशान लगने लगे हैं.सरकार ने कोरोना संक्रमण की पिछली दो लहरों से सबक न लेते हुए आज तक स्वास्थ्य महकमे में डॉक्टरों की कमी को पूरा नहीं किया है, जिसका खामियाजा मरीजों को तीसरी लहर में भुगतना पड़ सकता है.जबलपुर जिले में स्वीकृत पदों के मुकाबले महज एक तिहाई डॉक्टर ही काम कर रहे हैं.
25 लाख की आबादी वाले जबलपुर में महज 99 सरकारी डॉक्टर हैं
एक तरफ कोरोना का खतरा तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग की बिगड़ी व्यवस्था. जबलपुर जिले में डॉक्टरों की बेतहाशा कमी की वजह से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गए हैं. सरकार और विभाग लाख दावे करे लेकिन जो आंकड़े सामने आए हैं,वह तमाम दावों की पोल खोल रहे हैं. जानकारी हैरानी होगी कि करीब 25 लाख की आबादी वाले जबलपुर जिले में महज 99 सरकारी डॉक्टर काम कर रहे हैं. इससे ज्यादा बदतर हालात ग्रामीण क्षेत्रों के हैं, जहां एक डॉक्टर के भरोसे दर्जनों ग्रामीण क्षेत्रों की जिम्मेदारी होती है.
260 डॉक्टरों के स्वीकृत पद में से सिर्फ 99 पर हुई है नियुक्ति
आंकड़ों के मुताबिक जबलपुर जिले में 260 डॉक्टरों के स्वीकृत पद हैं लेकिन महज 99 पद भरे हैं. यानी 161 डॉक्टर के पद आज भी खाली हैं. जिले में 36 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, चार सिविल अस्पताल, 10 संजीवनी अस्पताल, 7 सिविल डिस्पेंसरी और संभाग का सबसे बड़ा जिला अस्पताल मौजूद है लेकिन इनमें कई स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक केंद्र तो ऐसे हैं जहां एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि कई बार तो हालात ऐसे बन जाते हैं कि गांव में इलाज ना मिल पाने की वजह से शहर तक जाते-जाते मरीज दम तोड़ देता है.
स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 19 स्वीकृत पदों में से महज 2 पर हुई नियुक्ति
आंकड़ों के मुताबिक जबलपुर जिले में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 19 स्वीकृत पदों में से महज 2 काम कर रहे हैं. वही शल्यक्रिया विशेषज्ञ के 18 स्वीकृत पद में से महज दो काम कर रहे हैं. स्त्री रोग में 19 डॉक्टर के पद स्वीकृत हैं लेकिन 4 काम कर रहे हैं. शिशु रोग में 18 पद है तो 3 काम कर रहे हैं. वही हैरानी इस बात की है कि जबलपुर जिले में नेत्र रोग विशेषज्ञ, ईएनटी,दंत रोग,क्षय और त्वचा रोग विशेषज्ञ के तो एक भी पद भरे नहीं है.
पदों को भरने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं- क्षेत्रीय स्वास्थ्य संचालक
वहीं डॉ संजय मिश्रा,क्षेत्रीय स्वास्थ्य संचालक का कहना है कि पदों को भरने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं.65 साल की सेवा पूर्ण कर चुके विशेषज्ञ चिकित्सकों को 2 साल और नौकरी का ऑफर दिया जा रहा है.इसके साथ ही पीजी वाले डॉक्टर भी बॉन्ड के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा दे रहे है.
निजी अस्पताल उठा रहे फायदा
जिले के सरकारी अस्पतालों की यह हालात आज की नहीं बल्कि पिछले कई सालों से ऐसे ही बनी हुई हैं. लेकिन सवाल यह है कि पिछले 2 सालों में कोरोना जैसी भयानक महामारी से बिगड़े हालातों से भी सबक न लेकर सरकार ने अब तक इन पदों को भरने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. नतीजा निजी अस्पताल संचालक इसका जमकर फायदा उठाते हैं और गरीब जनता को सरकारी अस्पताल की वजह मजबूरी में निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है.