(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
BJP के मजबूत किले में सेंध लगाने को कांग्रेस कितनी तैयार? एमपी की सबसे हाई प्रोफाइल सीट के बारे में जानें सबकुछ
Jabalpur Lok Sabha Chunav 2024: मध्य प्रदेश में जबलपुर सीट सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में से एक हैं. इस सीट को बीजेपी का गढ़ का कहा जाता है. हालांकि इस बार परस्थितियां थोड़ी बदली हुई हैं.
Jabalpur Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर चार चरणों में मतदान होगा. पहले चरण में 19 अप्रैल को 6 लोकसभा सीटों, दूसरे चरण में 26 अप्रैल को 7 सीटों पर, तीसरे चरण में 7 मई को 8 सीटों पर और चौथे चरण में 13 अप्रैल को भी 8 सीटों पर चुनाव होगा. चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही बीजेपी ने "मिशन 29" लक्ष्य तय किया है, जबकि कांग्रेस भी अच्छी खासी सीटें जीतने का दावा करती रही है.
लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदे की सियासत में प्रचार के दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों के केंद्र में किसान, महिला, आदिवासी और गरीब तबका शामिल है. कमोबेश यही स्थिति मध्य प्रदेश के महाकौश क्षेत्र के "एपीसेंटर" कहे जाने वाले जबलपुर लोकसभा सीट का है. जबलपुर लोकसभा सीट इस बार चर्चा में है. इसकी वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने यहां पर नए चेहरों को मौका दिया है.
कैसे पड़ा जबलपुर नाम ?
जबलपुर की सियासत पर बात करने से पहले इसके ऐतिहासिक उत्पत्ति नजर डालते हैं. पुराणों और किवदंतियों के मुताबिक जबलपुर शहर का ताल्लुक जाबालि ऋषि से है. कहा जाता है कि जाबालि ऋषि का निवास स्थान यहीं पर और उन्होंने यहीं पर तपस्या भी की थी. जबलपुर नाम की उत्पत्ति को लेकर एक और मान्यता है. इसके मुताबिक, चूंकि जबलपुर पत्थरों का शहर है और पत्थर को 'जबल' भी कहा जाता है. इस वजह से इसका नाम जबलपुर पड़ा.
कहा जाता है इन दिग्गजों का शहर?
अंग्रेज जबलपुर नाम का सही उच्चारण नहीं कर पाते थे, इसलिए उन्होंने इस शहर का नाम जब्बलपोर कर दिया, जिसे बाद में जबलपुर कहा जाने लगा. यह क्षेत्र हमेशा से शैक्षणिक केंद्र, सामाजिक संस्कृति और सियासी गतिविधियों की पुरानी परंपरा रही है. यह कई लेखकों का घर रहा है. यही वजह है कि इसे महार्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का शहर भी कहा जाता है.
जबलपुर नर्मदा नदी के किनारे बसा है. यह प्राकृतिक सौंदर्यता और खूबसूरत पशु पक्षियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. जबलपुर शहर उत्तर में निचली पहाड़ियों से घिरे चट्टानी बेसिन में झीलों और मंदिरों के बीच मौजूद है. इसे शिक्षा गहवारा कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक बेंच जबलपुर में भी स्थित है. इस प्राचीन शहर को 1780 ई. में मराठों का मुख्यालय बना, अंग्रेजों के शासकाल में इसे 1864 में नगर पालिक घोषित किया गया.
18 लाख से अधिक मतदाता करेंगे हार जीत का फैसला
आजादी के बाद 1 नवंबर 1956 को जबलपुर को एक जिले के रुप में मान्यता मिली. देश में जबलपुर संस्कारधानी और न्यायिक राजधानी के नाम से भी मशहूर है. 10 हजार 160 स्क्वायर किमी में फैले जबलपुर में साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, 24 लाख 60 हजार 714 महिला-पुरूष रहते हैं. इस बार जबलपुर सीट पर 18.83 लाख मतदाताओं ने रजिस्ट्रेश कराया है. जिनमें से 9.57 लाख पुरुष और 9.26 लाख महिला मतदाता हैं. यह सीट बीजेपी का मजबूत किला कहा जाता है.
लोकसभा चुनाव में जबलपुर सीट पर जातीय समीकरण काफी मायने रखते हैं. इस सीट पर कुल 8 विधानसभाएं हैं, जिनमें से बीजेपी ने साल 2023 में 7 सीटों पर जीत हासिल किया था, जबकि कांग्रेस सिर्फ जबलपुर पूर्व से ही जीत दर्ज कर पाई थी. जबलपुर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी ने इस बार आशीष दुबे को प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस ने ओबीसी समाज को साधने के लिए दिनेश यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस के कई नेताओं ने हाल ही में पार्टी का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
जातीय समीकरण
जबलपुर में 18 लाख से अधिक मतदाता रजिस्टर्ड हैं. साल 2011 की जनगणन के मुताबिक, इस सीट पर एससी मतदाताओं की संख्या 14.4 फीसदी है. इसी तरह एसटी 15 फीसदी, मुस्लिम 7.4 फीसदी मतदाता हैं. यहां पर ओबीसी और सामान्य श्रेणी के मतदाताओं की संख्या खासी है. यही वजह है कि कांग्रेस ने ओबीसी समुदाय और बीजेपी ने सामान्य श्रेणी के प्रत्याशी को चुनावी रण में उतारकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है.
कांग्रेस की बीजेपी वोट बैंक में सेंध लगाने का प्लान
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जबलपुर सीट पर 69.04 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमें से बीजेपी प्रत्याशी रहे राकेश सिंह को अकेले 65 फीसदी से अधिक वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी रहे कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तंका सिर्फ 29.41 फीसदी वोट ही हासिल कर सके थे.बाकी के अन्य उम्मीदवार को एक या एक फीसदी से कम वोट मिले थे.
हालांकि इस बार परिस्थितियां अलग हैं. बीजेपी ने सिटिंग सांदद का टिकट का दिया है. इस बार बीजेपी ने राकेश सिंह की जगह आशीष दुबे को प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस ने दिनेश यादव को उम्मीदवार बनाया है. दोनों ही प्रमुख दलों के उम्मीदवार पहली बार लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इस सीट पर अभी तक कांग्रेस बीजेपी की तरफ से कोई बड़ा नेता प्रचार प्रसार के लिए नहीं पहुंचा है. कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश यादव प्रचार का अनोखा तरीका अपनाया है, वह प्रचार के दौरान पार्टी और चुनाव के लिए छोटी-छोटी राशि में चंदा भी इकट्ठा कर रहे हैं.
कब कौन जीता?
आजादी के बाद पहली बार साल 1952 में लोकसभा चुनाव हुआ था, उस समय जबलपुर में दो संसदीय थी. सुशील कुमार पटेरिया ने जबलपुर उत्तर सीट हासिल की, जबकि मंगरु गणु उइके ने सांसद के रूप में जबलपुर दक्षिण-मंडला का प्रतिनिधित्व किया था.प्रदेश के गठन के बाद 1957 में कांग्रेस प्रत्याशी रहे सेठ गोविंद दास ने जीत हासिल की. वह इस सीट से 1974 तक अपने अंतिम सांस तक सांसद रहे है.
जबलपुर से शरद यादव की सियासत में एंट्री
उनकी मौत के बाद जबलपुर और देश की सियासत में बड़ा बदलाव आया है. साल 1974 में जेपी आंदोलन अपन चरम पर था. सेठ गोंविंद दास के मौत के बाद हुए उपचुनाव में जयप्रकाश नारायण ने भारतीय लोकदल से एक 27 वर्षीय युवक शरद यादव को अपना उम्मीदवार बनाया. इस युवक ने बाद में बिहार और मध्य प्रदेश की राजीनित में अहम रोल अदा किया. साल 1977 में शरद यादव दोबारा जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की.
इसके बाद साल 1980 कांग्रेस ने वापसी की और मुंदर शर्मा जीतकर दिल्ली पहुंचे. 1982 में फिर यहां उपचुनाव हुआ और बाबूराव प्रांजपे बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल किया. साल 1984 में कांग्रेस ने अजय नारायण, साल 1989 में बाबूराव प्रांजपे (बीजेपी) और 1991 में श्रवण कुमार पटेल (कांग्रेस) ने जीत दर्ज किया.
जबलपुर सीट पर 28 साल से बीजेपी का कब्जा
इसके बाद साल 1996 से लगातार बीजेपी ने यहां पर जीत हासिल कर रही है. बीजेपी के टिकट पर बाबूराव प्रांजपे ने (1996, 1998) में लगातार दो बार फिर जीते और दिल्ली में जबलपुर का प्रतिनिधित्व किया. इसी तरह जयश्री बनर्जी (1999), राकेश सिंह (2004, 2009, 2014, 2019) तक लगातार बीजेपी के टिकट पर जीतते रहे हैं. इस बार बीजेपी ने राकेश सिंह की जगह आशीष दुबे को प्रत्याशी बनाया है.
भारतीय जनता पार्टी साल 1996 से लगातार जीत हासिल कर रही है. यानी 28 साल और 6 लोकसभा चुनाव से बीजेपी यहां पर जीतती रही है. इसके उलट 1996 से पहले कांग्रेस ने 9 बार जीत हासिल की है.
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