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किस्सा ए सियासत: कभी कांग्रेस का गढ़ रहे जबलपुर से शरद यादव पहुंचे संसद, अब बीजेपी का बना मजबूत किला

Jabalpur Lok Sabha Election 2024: जबलपुर लोकसभा सीट का शुमार भारतीय जनता पार्टी के मजबूत किले के रुप में होती है. इस सीट पर बीजेपी ने साल 1996 से लगातार जीत दर्ज करती आ रही है.

Jabalpur Lok Sabha Chunav 2024: मध्य प्रदेश के जबलपुर लोकसभा क्षेत्र के इतिहास को खंगाले तो पता चलता है कि यहां का वोटर देश की सियासी हवा को बखूबी पहचानता हैं और उसी के साथ चलता हैं.

आजादी के बाद कांग्रेस को सर माथे बिठाने वाली जबलपुर की जनता ने वक्त आने पर जेपी आंदोलन का साथ देते हुए एकदम नौजवान शरद यादव पर सहज ही यकीन किया और उन्हें पहली बार लोकसभा पहुंचाया. इसके बाद एक बार उसने जो बीजेपी का हाथ थामा तो बरसों से पकड़ रखा है. 

फिलहाल बीजेपी के नए चेहरे आशीष दुबे का मुकाबला कांग्रेस के फ्रेश फेस दिनेश यादव से है. इस सीट पर मतदान पहले चरण के दौरान 19 अप्रैल को होगा.

जबलपुर सीट पर बीजेपी ने इस बार नया चेहरा उतारा है. चार बार के सांसद राकेश सिंह के विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्री बनने के बाद बीजेपी के गढ़ को बचाने की जिम्मेदारी पार्टी ने आशीष दुबे को सौंपी है. आशीष दुबे का मुकाबला कांग्रेस के दिनेश यादव से है, जिन्हें पार्टी ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए मैदान में उतारा है.

जबलपुर बनी बीजेपी का गढ़
साल 1996 से बीजेपी लगातार जबलपुर सीट पर जीत हासिल करती आ रही है. यहां से साल 1991 में कांग्रेस के श्रवण भाई पटेल आखिरी बार चुनाव जीते थे. जबलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस कैंडिडेट दिनेश यादव पूर्व में तीन बार पार्षद का चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन मेयर इलेक्शन में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, जबकि बीजेपी कैंडिडेट आशीष दुबे के राजनीतिक करियर का यह पहला चुनाव है.

कहते है कि जबलपुर से शरद यादव के देश का बड़े नेता बनने की राह खुली. अपने समय की लोकप्रिय नेता इंदिरा गांधी के आपातकाल के फैसले के खिलाफ जब पूरा देश एकजुट था, तब जबलपुर के वोटर ने भी कांग्रेस को नकार दिया था.

1952 की क्या थी तस्वीर?
साल 1952 में पहली लोकसभा की स्थापना के समय जबलपुर में दो संसदीय सीटें थीं. सुशील कुमार पटेरिया ने जबलपुर उत्तर सीट हासिल की, जबकि मंगरु गणु उइके ने सांसद के रूप में जबलपुर दक्षिण-मंडला का प्रतिनिधित्व किया था. वहीं, मध्य प्रदेश के गठन के बाद जबलपुर लोकसभा सीट पर पहली बार चुनाव 1957 में हुए थे. जहां कांग्रेस के सेठ गोविंद दास ने जीत हासिल की थी. सेठ गोविंद दास की गिनती एमपी के कद्दावर नेताओं में होती है. उन्होंने 1971 तक लगातार चार बार जबलपुर से सांसद का चुनाव जीता था.

ऐसे चमके नौजवान शरद
साल 1974 में, सांसद सेठ गोविंद दास के निधन के बाद जबलपुर में उपचुनाव होना था. उस समय में देश में जेपी आंदोलन अपने चरम पर था. ऐसे में जयप्रकाश नारायण ने 27 साल के शरद यादव को जबलपुर से टिकट दिया. हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर लड़ते शरद यादव ने उपचुनाव में जीत हासिल की. खास बात ये थी कि जेल में रहते हुए उन्होंने उपचुनाव जीता था.

लोगों की जुबान पर चढ़ा वो नारा
जबलपुर सीट पर उपचुनाव आपातकाल से ठीक पहले हुआ था, जब कांग्रेस और इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में गिरावट आ रही थी. यादव ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे छात्र आंदोलन का समर्थन किया था और उन्हें जेल में डाल दिया गया था. जेल में रहते हुए, वो समाजवादी विचारों से प्रभावित हुए और जेपी आंदोलन में शामिल हो गए.

शरद यादव के जरिये चुनाव जोर-शोर से लड़ा गया. यादव ने 'लल्लू को न जगधर को, मुहर लगेगी हलधर को' का नारा दिया, जो लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ. यहां से शरद यादव की जीत हुई. यह जीत कांग्रेस के लिए एक झटका थी और इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ बढ़ते विरोध का प्रतीक थी.

1982 में बीजेपी का खुला खाता
साल 1977 में आपातकाल हटने के बाद देश में चुनाव हुए तो ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस की करारी हार हुई. जबलपुर में भी कांग्रेस का यही हाल हुआ. जनता पार्टी के टिकट पर शरद यादव ने दूसरी बार जीत हासिल की. हालांकि, 1980 के चुनावों में कांग्रेस ने जबलपुर में वापसी की और मुंदर शर्मा चुनाव जीते. वहीं 1982 में जबलपुर में एक बार फिर उपचुनाव हुए.

तब इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला. उस समय बीजेपी के बाबूराव परांजपे ने सीट पर जीत हासिल की, फिर इसके बाद के कुछ चुनावों में बीजेपी-कांग्रेस को बारी-बारी जीत मिली. साल 1984 में कांग्रेस से अजय नारायण मुशरान, 1989 में बीजेपी के बाबूराव परांजपे और 1991 में कांग्रेस के श्रवण कुमार पटेल की जीत हुई.

बीजेपी की लोकप्रियता का बढ़ा ग्राफ
1996 में बीजेपी की जबलपुर सीट पर फिर जीत हुई. खास बात ये है कि 1996 से जबलपुर सीट बीजेपी का मजबूत किला बन गई है. 1996 के बाद से इस सीट पर लोकसभा के सभी चुनाव बीजेपी ने ही जीते हैं. 1996 और 1998 के चुनावों में, बीजेपी के बाबूराव परांजपे को जनता ने चुना. 1999 में बीजेपी की जयश्री बनर्जी ने कांग्रेस के चंद्रमोहन को हराया.

साल 2003 के लोकसबा चुनाव में बीजेपी के राकेश सिंह ने जीत हासिल की और लगातार 4 बार सांसद रहे. राकेश सिंह मिसल 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के विवेक तंखा के खिलाफ साढे चार लाख से अधिक मतों से जीता था.

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