50 years of 1971 Indo-Pak war: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीदों की याद में जबलपुर के दी ग्रेनेडियर्स रेजिमेंटल सेंटर में यादगार परेड का आयोजन किया गया. युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता कर्नल होशियार सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की गई. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक परमवीर चक्र कर्नल होशियार सिंह की पुण्यतिथि और इस युद्ध के वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए परेड का आयोजन किया गया.
रेजीमेंट को गौरवान्वित किया
कार्यक्रम की शुरुआत युद्ध स्मारक पर माल्यार्पण और 1971 के युद्ध के नायकों और वीर नारियों के अभिनंदन करने के साथ हुई. 1971 के युद्ध के दौरान ग्रेनेडियर्स की भूमिका बहुत अहम और सराहनीय थी. कुल 15 बटालियन में से 13 बटालियनों ने दोनों मोर्चों पर लड़ाई लड़ी और अपनी वीरता से रेजीमेंट को गौरवान्वित किया. इसके लिए रेजीमेंट को थियेटर ऑनर "पंजाब" और बैटल ऑनर "चक्रा" और "जयपाल" से सम्मानित किया गया.
परमवीर चक्र दिया गया
दुश्मन के खिलाफ साहस और अद्भुत युद्ध कौशल प्रदर्शन के लिए रेजिमेंट को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र के साथ-साथ 3 महावीर चक्र, 23 वीर चक्र और 93 अन्य वीर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. रेजिमेंट के 8 अधिकारी, 6 जीसीओ और 150 सैनिकों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया.
वीर योद्धा थे होशियार सिंह
कर्नल होशियार सिंह दहिया का जन्म हरियाणा के सोनीपत जिले के सिसान गांव में हिंदू जाट परिवार में हुआ था. वे उन वीर सैनिकों में शामिल थे, जिन्हें अपने जीवनकाल में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 5 मई 1937 को हरियाणा के सोनीपत में जन्मे मेजर होशियार सिंह ने 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया था.
जीत को आसान बनाया
होशियार वॉलीवॉल के खिलाड़ी और अपनी राष्ट्रीय स्तर की टीम के कप्तान भी थे. इस टीम का मैच जाट रेजीमेंटल सेंटर के एक उच्च अधिकारी ने देखा तो होशियार सिंह से वे प्रभावित हुए. इसके बाद 1957 में होशियार सिंह ने सेना की जाट रेजीमेंट में प्रवेश किया और 3 ग्रेनेडियर्स में कमीशन लेने के बाद वे ऑफिसर बन गए. 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जीत को आसान बनाने में होशियार सिंह की दी गई महत्वपूर्ण सूचना का खास योगदान था.
घायल होकर भी डटे रहे
1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के अंतिम 2 घंटे पूर्व तक, जब युद्ध विराम की घोषणा की गई और दोनों सेनाएं एक-दूसरे के सैनिकों को खत्म करने का भरसर प्रयास कर रही थीं, तब भी होशियार सिंह घायल अवस्था में भी डटे रहे और लगातार दुश्मन सिपाहियों को एक के बाद एक रास्ते से हटाते रहे. वे लगातार अपने साथियों का हौसला बढ़ाते रहे.
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