हिन्दू धर्म के सर्वोच्च गुरु और ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का आज 99 वर्ष की आयु में महाप्रयाण हो गया. परमहंसी गंगा आश्रम, झोतेश्वर जिला नरसिंहपुर में स्वामी जी ने आज दोपहर 3.30 बजे अंतिम सांस सांस ली. हाल ही में 30 अगस्त को उनके परमहंसी गंगा आश्रम में तीजा के दिन स्वामी जी का 99वें जन्मदिन मनाया गया था. 


आश्रम सूत्रों ने बताया पिछले एक साल से गंभीर रूप से बीमार थे और कुछ दिनों से उन्हें आश्रम में भी बनाये अस्थाई अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्ट पर रख गया था. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राम्हण परिवार जन्म हुआ था स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के सर्वोच्च गुरु तो थे ही, वे आजादी की लड़ाई में भाग लेकर जेल भी गए थे. आजादी की लड़ाई में भाग लेकर जेल गए थे.


स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज करोड़ों सनातन हिन्दुओं  की आस्था के ज्योति स्तंभ हैं. जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य हैं.स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था.उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था.


महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी. इस दौरान वो उत्तरप्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग,शास्त्रों की शिक्षा ली. आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे,क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी.


9 साल की उम्र में स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने अपना घर छोड़ दिया था. जिसके बाद उन्होंने भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थों, स्थानों और संतों के दर्शन करते हुए वे काशी पहुंचे. कम लोग ही जानते हैं कि स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने आजादी के लड़ाई में वाराणसी में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी थी. इस दौरान वो करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे.


स्वामी स्वरूपानंद ने ली दंड दीक्षा


स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाये गए थे और 1981 में उन्हें द्वारका-शारदा पीठ का शंकराचार्य बनाया गया. उन्होंने 1950 में ज्योतिषपीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे.


इसे भी पढ़ें:


Lampi Virus: मध्य प्रदेश में तेजी से पांव पसार रहा लंपी वायरस, अब तक 11 जिलों में हुई पुष्टि


Indore: वारदात करने से पहले ही इंदौर पुलिस की क्राइम ब्रांच का एक्शन, 10 पिस्टल के साथ 7 आरोपियों को दबोचा