MP News: मध्य प्रदेश के जबलपुर में बीजेपी नगर अध्यक्ष के बदलने की चर्चा काफी समय से हो रही है, लेकिन नेताओं की आपसी खींचतान के चलते किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है. हालांकि पार्टी के प्रदेश संगठन ने एक नाम को अपनी हरी झंडी दे दी है, लेकिन एक स्थानीय नेता की असहमति के कारण इसकी घोषणा नहीं हो पा रही है. वैसे, यह तय माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी का नगर अध्यक्ष ओबीसी से ही होगा.


बीजेपी के वर्तमान नगर अध्यक्ष जी एस ठाकुर का दूसरा कार्यकाल भी खत्म हो गया है. उन्हें 2016 में स्थानीय सांसद राकेश की पसंद पर यह दायित्व मिला था. पार्टी के संविधान के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है और किसी भी व्यक्ति को केवल दो ही कार्यकाल अध्यक्ष के रूप में मिल सकते हैं. यह व्यवस्था राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर जिला और नगर अध्यक्ष तक लागू है.


दोनों कर रहे दावे
जबलपुर में बीजेपी नगर अध्यक्ष के लिए जो नाम सबसे आगे हैं वह पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व महापौर प्रभात साहू का है. कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी प्रभात साहू के नाम को हरी झंडी दे दी है, लेकिन सांसद राकेश सिंह के खेमे से उनके नाम को सीधे क्लियर ना करने के कारण मामला अटका हुआ है. यह भी चर्चा है कि सांसद राकेश सिंह ने पूर्व एमआईसी सदस्य नंदकुमार यादव का नाम आगे बढ़ाया है. नंद कुमार यादव भोपाल के कुछ नेताओं के चक्कर लगा रहे हैं, ताकि ओबीसी नगर अध्यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी हो सके. वहीं, प्रभात साहू खेमे का दावा है कि उनके नाम को फाइनल कर दिया गया है. बस घोषणा होना बाकी है. प्रभात साहू भी ओबीसी वर्ग से आते है.


पार्टी को हो रहा नुकसान
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि वर्तमान नगर अध्यक्ष जी एस ठाकुर भी प्रभात साहू के नाम का विरोध कर रहे हैं. दोनों के बीच लंबे समय से सोशल मीडिया में आरोप-प्रत्यारोप की चर्चा भी है. वहीं प्रभात साहू के खेमे का कहना है कि वर्तमान नगर अध्यक्ष के कार्यकाल में बीजेपी ने शहर की ना केवल 3 विधानसभा सीट गंवाई, बल्कि हाल ही में हुए महापौर के चुनाव में भी पार्टी को मात खानी पड़ी. वही, जी एस ठाकुर खेमा भी लगातार प्रभात साहू के खिलाफ पार्टी विरोधी होने के आरोप लगाता रहा है. वैसे, पिछले कुछ चुनाव से जिस तरह बीजेपी का जबलपुर में प्रदर्शन रहा है, उसे लेकर संगठन पर उंगलियां उठती रही हैं. यह माना जा रहा है कि इस बार ओबीसी वर्ग से अध्यक्ष बनाए जाने से एक बड़े नाराज वर्ग को साधा जा सकता है, लेकिन नेताओं की आपसी खींचतान के कारण यह मामला लंबा खींचता जा रहा है. जिसका नुकसान पार्टी को हो रहा है.


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