मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां भी तेज कर दी हैं. कांग्रेस भी सत्ता में वापसी की पुरजोर कोशिश में लग गई है. अब खबरें हैं कि  कांग्रेस जल्द ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर सकती है.


उम्मीदवारों की घोषणा को लेकर एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने हाल ही में एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि कमलनाथ ही इस चुनाव में सर्वेसर्वा हैं और वह जिनके नाम पर मुहर लगाएंगे वहीं उम्मीदवार होगा. दिग्विजय सिंह ने कहा कि चुनाव से पहले मिलने वाले टिकट को लेकर कई दावेदार मुझसे मिल चुके हैं.  लेकिन आप सभी से आग्रह है कि इस बार चुनाव में किसी भी नेता के पास मत जाइए. इस बार नेताओं को टिकट कमलनाथ के सर्वे के आधार पर ही दिया जाएगा. इस चुनाव में हमारा लक्ष्य हर हाल में सत्ता को पाना है. 


दिग्विजय सिंह के बयान पर अटकलें तेज


दिग्विजय सिंह के सर्वेसर्वा के बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज हो गई है कि राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ही कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिग्गी फिर से अपने दोस्त कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं या उनका मकसद कुछ ही है? 


दिग्विजय क्यों बनाना चाहते हैं कमलनाथ का मुख्यमंत्री उम्मीदवार 


1. वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि दिग्विजय सिंह कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री चेहरा बनाना चाहते हैं क्योंकि फिलहाल उन्हें कमलनाथ में अपने बेटे की भविष्य की सुरक्षा दिखाई दे रही है. कमलनाथ उम्रदराज हो गए हैं और 5-7 साल में रिटायर हो जाएंगे. ऐसे में दिग्विजय उनके सहारे बेटे की जमीन मजबूत करने में जुटे हैं.


2. रशीद किदवई कहते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद राज्य की कांग्रेस वर्तमान में 2 गुटों में बंटी है. इसमें पहले गुट में दिग्विजय हैं तो दूसरे गुट में कमलनाथ हैं. कमलनाथ ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिलने के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली थी, लेकिन उस वक्त सरकार गिर गई थी. ऐसे में अगर कांग्रेस कमलनाथ को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर मैदान में उतरती है तो वह जनता के सामने इमोशनल कार्ड खेल सकती है. 


कमलनाथ ने पिछले महीने मंदसौर जिले में संबोधन के दौरान कहा भी था पिछली बार जब उन्होंने प्रदेश सरकार की कमान संभाली थी तब ज्यादातर लोग को पता नहीं था कि वह कैसे काम करते हैं, लेकिन अबकी स्थिति पूरी तरह से बदल गई है. ऐसा मेरी 15 महीने की सरकार के कारण है, जिसके दौरान मैंने मध्य प्रदेश के लोगों के लिए दृढ़ संकल्प के साथ काम किया. अब आप सभी जानते हैं कि कमलनाथ कैसे काम करते हैं. 


3. इसके अलावा एक कारण ये भी है कि साल 2018 में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो शासन-प्रशासन से जुड़े ज्यादातर फैसले दिग्विजय सिंह के कहने पर लिए गए और जब 15 महीने बाद सरकार गिरी तो कहा गया कि डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी अगर एक्टिव रहते तो विधायक बेंगलुरु नहीं जा पाते यानी कमलनाथ की सरकार गिरने के लिए दिग्विजय सिंह को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया गया था. 


दिग्विजय-कमलनाथ की सियासी दोस्ती


1. दिग्विजय-कमलनाथ की सियासी दोस्ती भी काफी पुरानी है. साल 1993 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी थी.  उस वक्त 174 सीटें कांग्रेस को मिली थी. केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और कांग्रेस पर भी उन्हीं का वर्चस्व था. 


उस वक्त राज्य में सीएम पद के लिए 3 दावेदार थे. दिग्विजय सिंह, माधवराव सिंधिया और श्यामचरण शुक्ल. सियासी हलचल को देखते हुए सिंधिया ने अपना समर्थन श्यामाचरण शुक्ल को दे दिया. जिसके बाद शुक्ल का पलड़ा भारी हो गया. राजनीतिक गलियारें में उनके मुख्यमंत्री बनने की खबरें तेज होने लगीं. 


इसी बीच मंत्री कमलनाथ ने शुक्ल और सिंधिया के प्लान पर पानी फेरते हुए राव से कहा कि सीएम के लिए विधायकों से वोटिंग करने को कहा. राव को उनका यह आइडिया पसंद आया और दिल्ली से जनार्दन रेड्डी के नेतृत्व में 3 नेता भोपाल भेजे गए.


विधायकों के वोटिंग के दौरान एक तरफ सिंधिया-शुक्ल गुट के विधायक थे तो दूसरी तरफ अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का खेमा. यह वोटिंग मध्य प्रदेश के इंदिरा भवन में करवाई गई, जिसमें दिग्विजय को 103 और श्यामचरण शुक्ल को 56 वोट मिले. 


इस परिणाम की सूचना राव को कमलनाथ ने ही दी, जिसके बाद दिग्विजय के सीएम बनाए जाने पर आखिरी ठप्पा लगा. कमलनाथ के कारण ही उस चुनाव में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. दिग्विजय सिंह 1993 से लेकर 2003 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.


2. साल 1993 के ठीक 25 साल बाद साल 2018 में मध्यप्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई, लेकिन इस बार सीटों की संख्या कम थी. इस बार भी मुख्यमंत्री बनने के दो दावेदार थे. पहला कमलनाथ और दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया. इस बार दिग्विजय सिंह ने अपना समर्थन कमलनाथ को दे दिया. दिग्विजय के समर्थन में कम से कम 50 विधायक थे. उस वक्त उन्होंने ये तर्क दिया था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य है. कमलनाथ के पास अब सिर्फ एक ही मौका बचा है. दिग्विजय के समर्थन के साथ ही कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए. 


कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद 4 महीने तक सब कुछ ठीक रहा, लेकिन लोकसभा चुनाव में सिंधिया की हार ने बगावत का बीज बो दिया. 2020 के शुरुआत में कमलनाथ की सरकार गिर गई और सिंधिया बीजेपी में चले गए.