Kanwar Yatra 2024: अंग्रेजी के महान साहित्यकार विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है. लेकिन नाम में बहुत कुछ रखा है तभी तो विलियम शेक्सपियर ने ये लाइनें लिखकर भी उसके नीचे अपना ही नाम लिखा. यही नाम है, जिसने हालिया राजनीति में वो उबाल लाया है कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार और उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार को भी विलियम शेक्सपियर वाला ही जवाब दे दिया है कि नाम में क्या रखा है. 


दरअसल सावन महीने में कांवड़ यात्रा को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आदेश जारी किया था. इस आदेश में साफ तौर पर लिखा था कि दुकानदारों को दुकान पर साफ तौर पर बड़े-बड़े अक्षरों में दुकान के मालिक का नाम लिखना होगा. इसकी शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हुई थी. इस आदेश के बाद फलवाले-सब्जीवाले के ठेले से लेकर बड़े-बड़े होटल-रेस्टोरेंट के नाम बदल गए. 


बदले गए दुकानों के नाम


25 साल से चल रहा संगम ढाबा सलीम मियां का ढाबा हो गया. नीलम स्वीट्स फजल स्वीट्स हो गया. क्वालिटी स्वीट्स जफर इकबाल स्वीट्स हो गई. और ये तो दो-तीन उदाहरण भर हैं. सैकड़ों दुकानों, ढ़ाबों, रेस्टोरेंट्स के नाम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के बाद बदले गए और उनके नाम मालिकों के नाम पर रखे गए. बनारस में भी प्रशासन ने फरमान जारी किया कि काशी विश्वनाथ कॉरीडोर की दुकानों को अपने मालिक के नाम से दुकान का नाम करना होगा.


सिलसिला उत्तर प्रदेश से शुरू होकर मध्य प्रदेश और उत्तराखंड तक भी पहुंच गया. मध्य प्रदेश में तो बागेश्वर धाम में धीरेंद्र शास्त्री ने कह दिया कि बागेश्वर धाम के दुकानदारों को 10 दिनों के अंदर अपने मालिकों काम नाम लिखना होगा ताकि राम और रहमान वालों की पहचान हो सके.


एनडीए में शामिल नेताओं ने भी किया विरोध


और फिर शुरू हुई राजनीति. विपक्ष ने नाम को हिंदू-मुसलमान में बांटने की राजनीति से प्रेरित बताया. खूब हंगामा भी हुआ. केंद्र की एनडीए सरकार के सहयोगी दलों ने भी इस फैसले का विरोध किया. इस बीच मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नाम के एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान के जरिए उनका आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है. 


इसके अलावा टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी सुप्रीम कोर्ट में नाम बदलने के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की. एनजीओ की ओर से वकील सीयू सिंह और महुआ मोइत्रा की ओर से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


दोनों वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में  जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने इस मामले पर फैसला देते हुए कहा कि दुकान मालिकों के नाम लिखने के आदेश पर अदालत अंतरिम रोक लगाती है और अब इस मामले की सुनवाई 26 जुलाई को होगी. दुकानदारों को अपनी दुकान पर ये साफ-साफ लिखना होगा कि उनका खाना शाकाहारी है या मांसाहारी.


इस तरह से सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश यूपी की योगी सरकार, मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार और उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार के लिए एक बड़ा झटका है. क्योंकि दुकानों के नाम वाले आदेश के बाद से ही इन तीनों ही राज्यों में हिंदू बनाम मुस्लिम की एक अलग ही बहस छिड़ गई थी. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने इस पूरी कवायद पर पानी फेर दिया है.


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