Ken-Betwa Link Project: केन-बेतवा लिंक (नदी जोड़ो) (Ken-Betwa Link Project) परियोजना मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बड़े भू-भाग की तस्वीर बदलने वाली है. इससे दोनों राज्यों के बुंदेलखंड इलाके की करीब 10 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो सकेगी और 62 लाख लोगों को पीने का साफ पानी मिल सकेगा. इस प्रोजेक्ट के तहत 103 मेगावाट हाइड्रो पावर और 27 मेगावाट की क्षमता वाला सोलर प्लांट बनाया जायेगा. परियोजना से उद्योग-धंधों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे युवाओं के लिये रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और बुंदेलखंड से पलायन भी कम होगा.


केन-बेतवा लिंक परियोजना में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिले आते हैं. इनमें मध्य प्रदेश के 9 जिले पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन शामिल हैं. वहीं उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिले हैं. इस पूरी योजना से इन सभी जिलों को पेयजल के साथ सिंचाई में लाभ होगा, जिससे करीब साढ़े नौ लाख किसानों को फायदा पहुंचेगा. आसार हैं कि उनका जीवन स्तर सुधरेगा और आय में भी वृद्धि होगी.


बुंदेलखंड इलाके के लिए वरदान साबित होगी केन-बेतवा परियोजना


मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में लंबे अरसे से पेयजल और सिंचाई का संकट जग जाहिर रहा है. परिणाम स्वरूप यह क्षेत्र देश में आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. बुन्देलखण्ड का अधिकांश भू-खण्ड पथरीला है और सिंचाई के लिए पानी की कमी यहां के मेहनतकश रहवासियों को जीवन निर्वहन के लिये पलायन करने पर मजबूर करती है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र को "केन-बेतवा लिंक परियोजना'' की सौगात देते हुए एक नये विकसित बुन्देलखण्ड की परिकल्पना को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है. यह परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सपने को साकार करते हुए बुन्देलखण्ड अंचल की तकदीर और तस्वीर बदलकर विकास की नई उड़ान भरेगी.


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इलाके में पानी की समस्या रही है पुरानी


मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव के मुताबिक लगभग 23 हजार 733 वर्ग किलोमीटर में फैले बुन्देलखण्ड अंचल में "बेतवा-केन नदियों" को जीवन-रेखा कहा जाता है. इनके साथ ही धसान, सिंध (काली सिंध) नर्मदा का प्रवाह भी अंचल की आर्थिक समृद्धि में सहायक है. इस सब के बाबजूद बुन्देलखण्ड अंचल में पानी की गंभीर समस्या रही है. यही कारण रहा होगा कि अंचल में राजशाही के समय बड़ी संख्या में बड़े-बड़े तालाबों का निर्माण कराया गया, लेकिन घटती वर्षा और बढ़ते शहरीकरण से इन तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो गया. परिणामस्वरूप सूखी खेती के साथ पेयजल समस्या ने भी विकराल रूप ले लिया.


पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी केन-बेतवा परियोजना


देश में अटल बिहारी वाजपेयी ही ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे, जिनका ध्यान बुंदेलखण्ड की इस समस्या पर गया. उन्होंने यह समझ लिया था कि पलायन रोकने और बुंदेलखण्ड के विकास के लिये यहां की पानी की समस्या को खत्म करना बेहद जरूरी है. इसीलिये अपने कार्यकाल के दौरान वर्ष 2002 में उन्होंने केन-बेतवा लिंक परियोजना की परिकल्पना तैयार करवाई. इसके जरिए उनका उद्देश्य बुंदेलखण्ड की दो बड़ी नदी केन एवं बेतवा को आपस में जोड़कर बारिश के पानी को बर्बाद होने से रोकना था, ताकि बारिश के पानी का संग्रहण और सही उपयोग हो और प्यासा बुंदेलखण्ड हरियाली से भरा क्षेत्र बन पाये.


दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के बाद देश में कई सरकारें केन्द्र में आईं और गईं, मगर बुंदेलखण्ड की इस समस्या की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिर से अटल जी के इस सपने को पूरा करने के लिए प्रयास किया है. काफी समय तक यह परियोजना पानी बंटवारे के विवाद के चलते उलझी रही. करीब 19 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से पिछले वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सहयोग से दोनों प्रदेश पानी बंटवारे पर सहमत हुए. उसके बाद इस परियोजना को आगे बढ़ाने की कवायद शुरू हुई.


इस बार केंद्र सरकार स्वीकार किया 44 हजार करोड़ का बजट


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था की तरफ एक और मजबूत कदम बढ़ाते हुए देश के अलग-अलग क्षेत्रों में नदियों को एक करने के प्रस्ताव को केन्द्रीय बजट में पास किया है. इसमें प्रधानमंत्री मोदी द्वारा विशेष रूप से केन-बेतवा नदियों को लिंक करने के लिये 44 हजार 605 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया है. इस योजना में 90 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार खर्च करेगी. शेष दस फीसदी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार खर्च करेंगी. केन-बेतवा लिंक परियोजना किसानों के जीवन और खेती में बदलाव लायेगी. अब बुंदेलखण्ड के खेतों में और अधिक हरियाली आयेगी और गर्मी के मौसम में भी खेतिहर मजदूरों को रोजगार की तलाश में भटकना नहीं पड़ेगा.


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