Kubereshwar Dham Sehore: साइकिल से लग्जरी कार तक कैसे पहुंचे पंडित प्रदीप मिश्रा? इंटरव्यू में खुद बताई पूरी कहानी
Pandit Pradeep Mishra News: सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा के साथ. पंडित प्रदीप मिश्रा के जन्म के समय परिवार के पास अस्पताल में दाई तक को देने के पैसे नहीं थे. चने के ठेले से परिवार का गुजरा होता था.
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MP News: कहते हैं ईश्वर की कृपा हो जाए तो दिन खुद ब खुद बदल ही जाते हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा (Pandit Pardeep Mishra) के साथ. पंडित प्रदीप मिश्रा के जन्म के समय परिवार के पास अस्पताल में दाई तक को देने के पैसे नहीं थे. चने के ठेले से पूरे परिवार का गुजर बसर होता था. वे साइकिल से सफर किया करते थे. लेकिन आज लंबी चौड़ी जगह में कुबेश्वर धाम बना है. पंडित जी अब लग्जरी कार की सवारी करते हैं. अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को लेकर ये बातें स्वयं पंडित प्रदीप मिश्रा ने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताई हैं.
पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया, 'पावन सिद्धपुर नगरी सीहोर में ही मेरा जन्म हुआ है. मैं यही का निवासी हूं. बहुत साधारण गरीब परिवार से हूं. पिताजी का पूरा परिवार तो समृद्ध रहा, कोई सर्विस में था कोई नौकरी में था. पिताजी इतना पढ़ नहीं पाए थे. पिताजी चने का ठेला लगाते थे. अस्पताल में जन्म के समय थोड़ा बहुत तो पैसा लगता ही है न दायी को देना पड़ता है. मेरे जन्म के समय तो वो पैसा भी मेरे घर पर नहीं था. मेरा जन्म आंगन में ही एक तुलसी क्यारा है उसके पास हुआ. वो तुलसी का कुंड आज भी मेरे पुराने घर में रखा हुआ है. कामकाज के बारे आगे बताया कि चने का ठेला लगाया फिर चाय की दुकान लगाई. ग्लास में चाय देकर आना सभी को. यह सब चलता रहा फिर साइकिल के माध्यम से एजेंसी पर काम किया. पढ़ाई भी चल रही थी.'
ऐसे बने पंडित प्रदीप मिश्रा
पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया कि गीता बाई पाराशर रही जो जगह-जगह भोजन बनाने का कार्य करती थीं. चरखा लाइन में रहती थी. उन्होंने श्रीमद भागवत कथा का संकल्प लिया था पर पैसा नहीं था. उन्होंने घर के अंदर कथा करवाई, उस समय न भागवत थी न ही धोती कुर्ता. उन्होंने कहा कि पहले आप गुरु दीक्षा लीजिए. गुरु दीक्षा लेने हम इंदौर गए. गोवर्धन नाथ मंदिर. वहां से दीक्षा ली. मेरे गुरुजी ने ही मुझे धोती पहनना सिखाई और उन्होंने छोटी सी पोथी मेरे हाथ में दे दी.
कभी खाली नहीं रहेगा पंडाल
पंडित प्रदीप मिश्रा ने अपने गुरु के आशीर्वाद के बारे में बताया कि गुरुजी ने आशीर्वाद दिया था कि कभी तुम्हारे पंडाल खाली नहीं रहेंगे. उनकी वाणी उनकी कृपा और गोवर्धन नाथ जी की कृपा बनी रही. लगातार गोवर्धन नाथ जी की परिक्रमा चलती रही. धन नहीं था, हां लेकिन स्लीपर कोच या लोकल ट्रेन के डिब्बे में बैठकर जाते थे. परिक्रमा करते थे, वहां चकलेश्वर महादेव है. चकलेश्वर महादेव के मंदिर में बैठकर चर्चा करते थे पर ऐसा नहीं मालूम था कि वृंदावन विहार मुझे महादेव से जोड़ देंगे और महादेव बिहारी जी से जोड़ देंगे, और उनकी कृपा जो चालू हुई फिर वो कृपा आज तक बनी हुई है.
लंबी-चौड़ी जगह में बना कुबेश्वर धाम
बता दें भले ही पंडित प्रदीप मिश्रा का बचपन आर्थिक मंदी में गुजरा हो, लेकिन आज पंडित प्रदीप मिश्रा किसी नाम के मोहताज नहीं है. पंडित प्रदीप मिश्रा का आशीर्वाद लेने के लिए लोग लंबी-लंबी दूरी तय कर लाखों की तादाद में सीहोर के कुबेश्वर धाम पहुंचते हैं. यह नजारा बीते दिनों सीहोर जिला मुख्यालय पर आयोजित हुए रुद्राक्ष वितरण महोत्सव के दौरान देखा भी गया. जब कार्यक्रम के पहले ही दिन करीब 20 लाख से अधिक लोग सीहोर आ पहुंचे. पंडित प्रदीप मिश्रा का कुबेश्वर धाम लंबी-चौड़ी जगह में बना हुआ है. पंडित मिश्रा अब लग्जरी कार की सवारी करते हैं.
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