Namibian Cheetah in MP: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चीतों को स्थानांतरित करने का एक बड़ा अभियान चलाया गया था, जिसके अंतर्गत पहले चरण में नामीबिया से 8 चीते और बाद में साउथ अफ्रीका से 12 चीते कूनो नेशनल पार्क में गए थे. इनमें से पहले चरण में आई "साशा" का किडनी फेलियर के चलते निधन हो गया है. इसको लेकर एबीपी न्यूज ने वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे से चर्चा कि तो उन्होंने बताया कि कूनो में चीता प्रोजेक्ट से जुड़े मप्र के वन विभाग के बड़े अफसर जिम्मेदार हैं और इनको सजा मिलनी चाहिए. 


अजय दुबे ने आगे कहा कि, माधव नेशनल पार्क, ग्वालियर के सीसीएफ और सिंह परियोजना के तहत चीता प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी निभाने वाले अकेले उत्तम शर्मा को तत्काल हटाकर जांच हो. यह भी जांच का विषय है कि करोड़ों रुपए खर्च कर पिछले २ वर्षो से नामीबिया और साउथ अफ्रीका में चीता प्रबंधन सीखने गए वन मंत्री, अपर मुख्य सचिव वन, पीसीसीएफ मप्र सहित वन अफसरों की टीम बीमार चीता क्यों भारत लाए?


किस वजह से होती है समस्या
अजय दुबे ने कहा, अक्सर लंबे समय तक पिंजरे में रहने वाले चीतों के अंदर भोजन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जिसकी वजह से किडनी फैलियर की समस्यायें उनमें देखी जाती हैं. लीवर और आंतों संबंधी समस्याएं भी होती हैं, कई बार उनकी जान भी चली जाती है. भारत में चीतों को लाने से पहले नामीबिया में चीतों को लंबे समय तक पिंजरे में रखा गया था, जिसके कारण उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ा होगा. 


इस संबंध में साउथ अफ्रीका के वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट  एड्रियन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, मुझे पहले से ही शक था कि साशा ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएगी, क्योंकि वह लंबे समय तक नमीबिया में पिंजरे में रही है.


उनको केयर करना एक चुनौती
इस संबंध में एबीपी टीम ने चीता कंजर्वेशन फंड की लोरी मारकर से भी चर्चा की उन्होंने साशा की मृत्यु को दुखद बताया है. साथ ही उन्होने  कहा कि हम जानते हैं कि चीते  लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं, उनकी केयर उनको संगठित करना एक कठिन चुनौती है. इसको लेकर भारत में अच्छा प्रयास किया जा रहा है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार साशा का इलाज 22 जनवरी से लगातार चल रहा था. भारत सरकार ने जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए चीतों को भारत लाने की इस परियोजना में लगभग 91.65 करोड रुपए खर्च किए हैं.


इस संबंध में भारतीय वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि आने वाले समय में हमें और भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि मादा चीतों का जीवन चुनौतियों से भरा रहता है और अभी उन्हें कूनो नेशनल पार्क में सेट होने में समय लग सकता है. उनकी देखभाल और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.


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