Chhindwara Lok Sabha Seat: देश में लोकसभा चुनाव के लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. भले ही निर्वाचन आयोग ने अभी चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि पहले चरण का मतदान 100 दिन के भीतर हो सकता हैं. मध्य प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हो चुकी हैं. सूबे के दो प्रमुख राजनीतिक दलों, बीजेपी और कांग्रेस ने जीत के लिए अपनी-अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. एमपी में लोकसभा की सबसे हॉट सीट छिंदवाड़ा मानी जा रही है, जहां से कांग्रेस सिर्फ एक बार (1998 का उप चुनाव) हारी है.


छिंदवाड़ा से कांग्रेस के प्रत्याशी का नाम लगभग फाइनल हो चुका है, लेकिन बीजेपी ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. कयास लगाया जा रहा है कि पार्टी यहां से किसी बड़े चेहरे को चुनाव मैदान में उतार सकती है. दरअसल, कांग्रेसी के दिग्गज नेता कमलनाथ को चुनावी राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को कमलनाथ का अभेद्य गढ़ कहा जाता है. फिलहाल, कमलनाथ छिंदवाड़ा से दूसरी बार विधायक चुने गए हैं और उनके पुत्र नकुलनाथ सांसद हैं. 


सिर्फ एक बार (1998 का उप चुनाव) को छोड़कर 1952 से छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कांग्रेस के कब्जे में है. राजनीतिक जानकार यह मानकर चल रहे हैं कि छिंदवाड़ा से वर्तमान सांसद नकुलनाथ ही कांग्रेस के कैंडिडेट होंगे और उन्हें जिताने की जिम्मेदारी कमलनाथ के सिर होगी.


पत्नी को इस्तीफा दिला कर लड़े उप चुनाव
यहां बताते चलें कि व्यक्तिगत तौर पर कमलनाथ के नाम पर कई चुनावी जीत दर्ज हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि उन्होंने एक बार हार का स्वाद भी चखा था. आइये आज कमलनाथ के राजनीतिक जीवन और एकमात्र हार का किस्सा बताते है. वो 1998 का मार्च-अप्रैल का महीना था. गर्मी दस्तक देने लगी थी. इसी समय मध्य प्रदेश की राजनीति भी उबाल मार रही थी. यहां लोकसभा का एक ऐसा उप चुनाव होने जा रहा था, जिस पर पूरे देश की नजर थी. 


साल 1952 से कांग्रेस की अजेय सीट पर इंदिरा गांधी के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कमलनाथ ने अपनी सांसद पत्नी अलका नाथ को इस्तीफा दिलाकर उप चुनाव की राह पकड़ी थी. 1980 से लगातार चार बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से सांसद कमलनाथ आत्मविश्वास से लबरेज थे. किसी को आभास नहीं था कि छिंदवाड़ा की जनता के मन में क्या चल रहा है? लेकिन नामांकन  से एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी ने इतना बड़ा दांव चल दिया जिसने कमलनाथ के उजले राजनीतिक करियर में एक दाग लगाने का काम किया.


मध्य प्रदेश के चुनावी इतिहास में कई ऐसे किस्से हैं, जिनकी चर्चा आज भी राजनीतिक गलियारों में होती है. एक ऐसा ही किस्सा 1998 के छिंदवाड़ा सीट के लोकसभा उप चुनाव का है. उससे पहले जानते है कि उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश तक का कमलनाथ का सफर कैसा रहा. साल 1979 में कमलनाथ ने मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबला करने में कांग्रेस की मदद की थी. कमलनाथ संजय गांधी के हॉस्टलमेट थे और आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई की सरकार में उनके लिए जेल भी गए थे. उन्हें इंदिरा गांधी अपना तीसरा पुत्र मानती थीं. 1977 के आम चुनाव में सेंट्रल इंडिया से कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा की एक सीट जीती थी. गार्गी शंकर मिश्र जनता लहर में भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.


'कमलनाथ दिल्ली का बंगला नहीं करना चाहते थे खाली'
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्य प्रदेश: राजनेताओं के किस्से' में लिखते हैं कि चार बार लगातार चुनाव जीतते आ रहे कमलनाथ को साल 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया. उन्होंने अपनी पत्नी अलका नाथ को चुनाव मैदान में उतार दिया. छिंदवाड़ा में अपने व्यापक जनाधार के कारण कमलनाथ पत्नी अलकानाथ को चुनाव जिताने में कामयाब रहे. कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब कमलनाथ को दिल्ली में सांसद रहने के चलते लुटियंस जोन में मिला बड़ा बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया. 


कमलनाथ ने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी अलका नाथ के नाम अलाट हो जाए. उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं, जिसके कारण बड़ा बंगला नहीं मिल सका. उधर, कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने को तैयार नहीं थे. इस बंगले की खातिर उन्होंने अपनी पत्नी से संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए. तब तक वे हवाला कांड के दाग से बरी भी हो चुके थे.


'बीजेपी के दांव से कमलनाथ चित'
छिंदवाड़ा के बाहर लगभग सभी को लग रहा था कि कमलनाथ पांचवीं बार लोकसभा के सदस्य बनने वाले है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे. सरकार होने के फायदा भी उन्हें मिलने की पूरी उम्मीद थी. भारी ताम झाम के साथ कमलनाथ ने अपना नामांकन दाखिल किया और दावा किया कि चुनाव में जीत सुनिश्चित है. इसी बीच नामांकन से पहले भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव चलते हुए अपने मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता सुंदरलाल पटवा को कमलनाथ के खिलाफ छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतार दिया. पार्टी ने अपने फैसले को बेहद गोपनीय रखा था. दोनों पार्टियों की ओर से देशभर के तमाम दिग्गज नेता चुनाव प्रचार के लिए छिंदवाड़ा पहुंचने लगे.


इस चुनाव की कवरेज के लिए छिंदवाड़ा गए वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे बताते हैं कि बीजेपी ने यह मुद्दा बना दिया कि जब अलका नाथ यहां से सांसद थी तो उन्हें इस्तीफा दिलाकर फिर से नया चुनाव कराने की क्या आवश्यकता थी? इस बात को बीजेपी ने मतदाताओं को बीच जोरशोर से उठाई और इसका फायदा उन्हें मिला, इसके उलट पत्नी को इस्तीफा दिलाने का कमलनाथ को खामियाजा भुगतना पड़ा. लोग कहते भी थे इस बार कमलनाथ को हरवा देंगे, भले अगली बार उन्हें फिर से जीत कर छिंदवाड़ा का सांसद बना देंगे.


उस समय कमलनाथ के चुनाव पर बारीक नजर रखने वाले मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि छिंदवाड़ा में जैसे-जैसे मतदान की तिथि पास आती जा रही थी, वैसे-वैसे चुनावी मैदान में कमलनाथ की जमीन की खिसकती नजर आने लगी थी. सरकार को इंटेलिजेंस की तरफ से लगातार रिपोर्ट मिल रही थी कि मतदान के दिन बड़े पैमाने पर हिंसा और गड़बड़ी हो सकती है. काशीनाथ कहते हैं कि तब के एडीजी इंटेलिजेंस ए एन सिंह के मशविरे पर मतदान के दिन जिले भर में चार पहिया वाहनों को सड़कों पर उतारने पर रोक लगा दी गई. इससे हुआ यह कि जो जहां था, वहीं फंसा रह गया.


बीजेपी दिग्गज पटवा ने छिंदवाड़ा में पार्टी के कैडर, नेतृत्व कौशल, चुनाव प्रबंधन और वक्तृत्व कला से माहौल पूरी तरह अपने पक्ष में कर लिया. जब नतीजा घोषित हुआ तो वो कमलनाथ के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. 73 साल के पटवा ने कमलनाथ को 38 हजार से ज्यादा मतों से परास्त कर दिया. हालांकि,1998 के आम चुनाव में कमलनाथ ने बड़े अंतर से सुंदर लाल पटवा को पराजित करके अपनी हार का बदला लिया. इसके बाद कमलनाथ की छिंदवाड़ा पर पकड़ कभी ढीली नहीं हुई. अपने जीवन की एकमात्र हार ने कमलनाथ को आत्मावलोकन को मजबूर किया. उन्होंने लगातार दौरे करके लोगों से मुलाकात की और अपनी हार की वजह जानी. 


मोदी लहर में भी छिंदवाड़ा से जीती कांग्रेस
इन गलतियों से सबक लेकर कमलनाथ फिर से छिंदवाड़ा के अपराजेय योद्धा बन गए. यहां तक की 2019 की मोदी लहर में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की 29 में से जो एक सीट जीती थी, वह छिंदवाड़ा थी. यहां से कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ ने जीत हासिल की थी. इससे पहले 2014 में आखिरी बार उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता था. 2018 में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने पहली बार विधानसभा का उप चुनाव लड़ा और जीतकर दिल्ली की जगह भोपाल की राजनीति शुरू की. साल 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ ने छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से दूसरी बार निर्वाचित होकर मध्य प्रदेश की राजनीति में ही सक्रिय रहने का फैसला किया है.


'बीजेपी चुनावी रण में उतार सकती है बड़ा नाम'
वैसे, कमलनाथ छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद निर्वाचित हुए हैं जबकि एक बार उनकी पत्नी अलका नाथ और एक बार उनके पुत्र नकुल नाथ को यहां से जीत मिली है. कमलनाथ अपने पहले कार्यकाल में 1980 से लेकर 1996 तक और दूसरे कार्यकाल में 1998 से लेकर 2018 तक छिंदवाड़ा से सांसद थे. चर्चा है कि कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को फतह करने के लिए बीजेपी 1998 वाला दांव फिर चल सकती है, जब उसने पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को यहां से मैदान में उतार कर कमलनाथ को पटकने दी थी. हालांकि, अभी तक छिंदवाड़ा से नकुल नाथ के नाम का ऐलान पार्टी ने नहीं किया लेकिन कमलनाथ यह संकेत दे चुके है कि उनके पुत्र (नकुल नाथ) ही चुनाव लड़ेंगे. माना जा रहा है कि इस बार सांसद नकुलनाथ को घेरने के लिए बीजेपी बड़ी योजना पर काम कर रही है. बीजेपी अंतिम समय में किसी बड़े चेहरे को उम्मीदवार बनाकर सबको चौंका देगी.


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