Jabalpur Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवार के नाम का ऐलान करके बीजेपी (BJP) ने तो अपने पत्ते खोल दिए हैं. हालांकि इस मामले में कांग्रेस अभी शांत है. बीजेपी ने पार्टी के ब्राह्मण चेहरे और युवा नेता आशीष दुबे को अपना उम्मीदवार बनाया है. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस भी जबलपुर सीट पर किसी ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है. बीजेपी ने बिल्कुल नए चेहरे आशीष दुबे को उम्मीदवार बनाया है ,जो अपने राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव लड़ने जा रहे हैं.


जबलपुर लोक सभा सीट पर कांग्रेस के दावेदारों पर चर्चा करने से पहले जान लेते हैं कि बीजेपी ने जिस नेता पर दांव खेला है, उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और करियर कैसा रहा है? जबलपुर से लोकसभा सीट से बीजेपी के प्रत्याशी आशीष दुबे ने साल 1990 से आम कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया था. साल 2000 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का जिला मंत्री और साल 2007 से 2010 तक  जिलाध्यक्ष बनाया गया था. 


उन्हें साल 2010 से 2015 तक भारतीय जनता पार्टी का जबलपुर का जिलाध्यक्ष (दो संगठनात्मक कार्यकाल) बनाया गया था. वे साल 2016 से 2021 तक प्रदेश कार्यसमिति सदस्य (भारतीय जनता पार्टी) रहे. इसके बाद उन्हें साल 2021 से प्रदेश मंत्री भारतीय जनता पार्टी का दायित्व का कार्यभार सौंपा गया.आशीष दुबे के पिता अंबिकेश्वर दुबे ने जबलपुर के महापौर का चुनाव लड़ चुके हैं, हालांकि उस दौरान उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.


कांग्रेस इन्हें बना सकती है उम्मीदवार
दरअसल, जबलपुर सीट से चार बार के सांसद रहे राकेश सिंह के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने दो दशक बाद यहां नया चेहरा मैदान में उतारा है. ब्राह्मण वर्ग को खुश करने के हिसाब से ही बीजेपी ने आशीष दुबे को टिकट देकर कांग्रेस के ऊपर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने का प्रयास किया है. अब चर्चा है कि कांग्रेस भी उनके खिलाफ किसी ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है. इस लिहाज से दो सबसे बड़े नाम पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट और राज्यसभा सांसद विवेक तंखा के नाम सामने आ रहे हैं. हालांकि, विवेक तंखा को दो बार (2014 और 2019) राकेश सिंह के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था.


इस बार विवेक तंखा पहले ही चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं. इसी तरह पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट भी विधानसभा का चुनाव हारने के बाद राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हैं. तरुण भनोट से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वह भी लोकसभा चुनाव लड़ने के अनिच्छुक हैं, लेकिन पार्टी फैसला करती है तो उन्हें मैदान में उतरना ही होगा. ब्राह्मण चेहरा और महिला होने के नाते पूर्व महापौर और पूर्व विधायक कल्याणी पांडेय का नाम भी लोकसभा चुनाव के टिकट के लिए कांग्रेस के दावेदारों में लिया जा रहा है. इसके अलावा नगर निगम में पूर्व नेता प्रतिपक्ष दिनेश यादव और वरिष्ठ महिला नेत्री अंजू सिंह बघेल का नाम भी कांग्रेसी दावेदारों के पैनल में शामिल है.


माना जा रहा है कि 10 मार्च तक कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर देगी. इसमें जबलपुर सहित मध्य प्रदेश की 8 से 10 सीटों के उम्मीदवारों का ऐलान हो सकता है. साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस को जबलपुर सीट पर 5 लाख से अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा था. इस वजह से इस बार भी जबलपुर सीट कांग्रेस के लिए बेहद कठिन मानी जा रही है.


जबलपुर संसदीय सीट का इतिहास
आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में जबलपुर में दो सीटें थीं. साल 1951 में हुए आम चुनाव में जबलपुर उत्तर सीट से कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया जीते थे, तो मंडला-जबलपुर दक्षिण सीट से मंगरु गुरु उइके पहले सांसद बने. इसके बाद 1957 में जबलपुर और मंडला दो अलग-अलग संसदीय क्षेत्र बन गए. इस साल दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के सेठ गोविंद दास जीते. इसके बाद उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा. सेठ गोविन्द दास ने 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में भी जीत दर्ज की.


पूर्व पीएम की पहल पर शरद यादव को टिकट
साल 1974 में जबलपुर लोकसभा सीट ने वह बदलाव देखा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. शरद यादव इसी साल छात्र राजनीति से निकलकर देश की मुख्य धारा की राजनीति में आए थे. शरद यादव जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से जुड़े हुए थे. उस दौर में कांग्रेस के खिलाफ एक लहर भी बन गई थी. जबलपुर लोकसभा सीट पर सेठ गोविंद दास की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भारतीय लोक दल के टिकट पर विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े शरद यादव ने कांग्रेस के रवि मोहन को हराकर सबको चौंका दिया था.


शरद यादव को टिकट देने के पहल तत्कालीन जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेई ने की थी. शरद यादव को हलधर किसान चुनाव चिह्न मिला था. प्रचार के दौरान शरद यादव के पक्ष में एक नारे ने पूरा माहौल बदलकर रख दिया. 'लल्लू पर न जगधर पर, मुहर लगेगी हलधर पर' इस नारे ने ऐसा जोर पकड़ा कि कांग्रेस की उसके गढ़ में ही नींव हिल गई. इसके बाद 1977 में शरद यादव ने एक बार फिर जबलपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस के जगदीश नारायण अवस्थी को हराकर जीत दर्ज की थी.


1982 में जबलपुर से पहली बार जीती बीजेपी
यहां बताते चले कि पहले आम चुनाव के बाद से 1974 तक जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. साल 1982 में पहली बार जबलपुर में कमल का फूल खिला और बाबूराव परांजपे बीजेपी के पहले सांसद बने. दो साल बाद ही 1984 में कांग्रेस ने सीट पर फिर से कब्जा कर लिया, जब कर्नल अजय नारायण मुशरान ने आम चुनाव में बाबूराव परांजपे को पराजित कर दिया. 1989 के चुनाव में यह सीट फिर बीजेपी के खाते में आ गई. 


साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा जमा लिया.इसके बाद 1996 से जबलपुर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ बन चुकी है.वर्तमान में राज्यसभा सदस्य विवेक तंखा जैसे धुरंधर भी दो बार यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए. जबलपुर सीट से बीजेपी नेता बाबूराव परांजपे तीन बार, जयश्री बैनर्जी एक बार और राकेश सिंह चार बार सांसद बने.


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