MP News: दुनिया में शांति का संदेश देने वाले बौद्ध धर्म के प्रमुख भगवान गौतम बुद्ध की अस्थियों का पहली बार उनके शिष्यों से एक महीने के लिए मिलन होगा. थाईलैंड के कंबोडिया में इसको लेकर कई देशों की मदद से एक महीने के लिए अस्थि दर्शन के लिए विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है. यह वह मौका है जब 2500 साल पुराने बौद्ध गुरु भगवान बुद्ध ओर उनके शिष्यों का मिलन होगा, जिसके साक्षी बनने के लिए दुनिया भर से बौद्ध अनुयाई थाईलैंड पहुंच रहे हैं.
भारत सरकार की ओर से इस प्रदर्शनी को सफल बनाने के लिए भगवान बुद्ध के परम शिष्य अर्हन्त सारिपुत्र और अर्हंत महामोगल्यान के पवित्र अवशेषों (अस्थियों) को भी विधि विधान से ससम्मान थाईलैंड भेजा जा रहा है. इसके लिए रायसेन (Raisen) जिला प्रशासन ने विश्व धरोहर सांची स्तूप परिसर में स्थित बौद्ध मंदिर से पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ थाईलैंड से आए प्रतिनिधियों को पवित्र अस्थियों को सौंपा. सांची से पवित्र अवशेषों को सर्वप्रथम चैतियगिरी विहार में स्थित तहखाने से विधिवत पूजा-अर्चना कर मंदिर में लाया गया.
पवित्र अवशेषों को दिया गया गार्ड ऑफ ऑनर
इसके बाद यहां भी पवित्र अवशेषों की पूजा-अर्चना करने के बाद उसको मंदिर के बाहर लाते समय गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रतिनिधि को सौंपा गया. दरअसल, भारत सरकार द्वारा सांची में बौद्ध स्तूप परिसर में स्थित मंदिर में रखे भगवान बुद्ध के शिष्यों अर्हन्त सारिपुत्र और अर्हंत महामोगल्यान के पवित्र अवशेषों को दर्शनार्थ हेतु बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया विहार ले जाने की अनुमति दी गई है.
दर्शन के लिए ले जाया जाएगा कंबोडिया विहार
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग के निर्देशानुसार रायसेन कलेक्टर अरविंद दुबे ने सांची में बौद्ध स्तूप परिसर में स्थित चैतियगिरी विहार मंदिर में रखे भगवान बुद्ध के शिष्यों अर्हन्त सारिपुत्र और अर्हंत महामोगल्यान के पवित्र अवशेषों को राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रतिनिधि डीजे प्रदीप को सुरक्षित तरीके से सौंपा. बता दें भोपाल से पवित्र अवशेषों को हवाई जहाज के माध्यम से दिल्ली और फिर वहां से थाईलैंड के बैंकॉक और कंबोडिया विहार दर्शनार्थ हेतु ले जाया जाएगा.
सारिपुत्र और महामोग्गलान कौन थे?
पवित्र अवशेष वहां 22 फरवरी से 18 मार्च तक दर्शनार्थ हेतु रहेंगे. इसके बाद पवित्र अवशेष वापस यथास्थान सांची में सुरक्षित रखे जाएंगे. इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा पूर्ण प्रक्रिया का अभिलेखीकरण, वीडियोग्राफी और पंचनामा तैयार कर सौंपा गया. इस अवसर पर आईबीसी के डायरेक्टर विजयेंद्र थापा, रायसेन एसपी विकास शहवाल भी साथ रहे. गौरतलब है कि, सारिपुत्र और महामोग्गलान भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्यों में प्रमुख शिष्य थे, जिसमें सारिपुत्र धम्म के विशेषज्ञ माने जाते थे. उन्होंने ही अभिधम्म की परंपरा शुरू की थी, जबकि महामोग्गलान तपस्वी और तात्विक ज्ञाता थे. बौद्ध दर्शन के जानकार लोग बताते हैं कि मोग्गलान बाद में चलकर महामोग्गलान कहलाए क्योंकि वे धर्म उपदेश देने में सर्वश्रेष्ठ थे.
बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने पीछे धर्म का उपदेश देने के लिए मोग्गलान को ही रखा था. बौद्ध साहित्य के अनुसार मोग्गलान देवलोक और ब्रह्मलोक में आते-जाते थे. उनकी प्रशंसा का उल्लेख त्रिपिटक में मिलता है. वहीं सारिपुत्र को भगवान बुद्ध ने धम्म सेनापति की पदवी से विभूषित किया था. 84 साल की आयु में सारिपुत्र और महामोग्गलान तथागत बुद्ध से पहले परिनिवृत हुए थे. सम्राट अशोक के शासनकाल से ही दोनों की देह धातु को संनिधानित कर सांची में स्तूप और विहार बनाए गए.
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