Madhavrao Scindia Birthday: माधवराव सिंधिया को क्यों भूल गए दिग्विजय सिंह! देखिए राजघरानों की सियासत में अदावत की दास्तां
MP News: माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह की अदावत पीढ़ियों पुरानी है. दोनों ही परिवार राजघराने से ताल्लुक रखते हैं, सिंधिया ग्वालियर रियासत से तो दिग्विजय सिंह राघोगढ़ रियासत से जुड़े हुए हैं.
Madhavrao Scindia Birthday: माधवराव सिंधिया की 78वीं जयंती के अवसर पर बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से लेकर दिग्गज नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह क्यों भूल गए? उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर माधवराव सिंधिया को श्रद्धांजलि देने वाली कोई पोस्ट दोपहर तक दिखाई नहीं दी. मध्य प्रदेश की राजनीति में इसके अलग मायने निकाले जा रहे हैं.
पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की 78वीं जयंती के मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित तमाम बीजेपी के नेता और मंत्रियों ने माधवराव सिंधिया को श्रद्धांजलि अर्पित की. इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित कांग्रेस के भी कई नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है. इन सब के बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ट्विटर अकाउंट पर कहीं भी माधवराव सिंधिया को श्रद्धांजलि देने वाली पोस्ट दिखाई नहीं दी. अगर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह श्रद्धांजलि देना भूल गए हैं तो और बात है लेकिन अगर उन्होंने राजघराने की अदावत के चलते श्रद्धांजलि देना मुनासिब नहीं समझा तो यह अलग बात है.
सिंधिया और दिग्विजय सिंह के राजघरानों की पुरानी अदावत
माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह की अदावत पीढ़ियो पुरानी है. दोनों ही परिवार राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. जहां, सिंधिया परिवार ग्वालियर रियासत से जुड़ा है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का परिवार राघोगढ़ रियासत से जुड़े हुआ है. इतिहास के मुताबिक 1802 में गवालियर स्टेट के महाराज दौलत राव सिंधिया ने तत्कालीन राघोगढ़ रियासत के महाराज राजा जयसिंह को युद्ध में पराजित किया था. इसके बाद राघोगढ़ रियासत ग्वालियर स्टेट के अधीन आने लगी, तभी से यह अदावत शुरू हुई थी. आज राजनीति के मैदान में यह अदावत जारी है.
दिग्विजय सिंह के कारण माधवराव नहीं बन पाए सीएम
साल 1993 में जब माधवराव सिंधिया की मध्यप्रदेश में ताजपोशी की तैयारी चल रही थी. यहां तक की मध्य प्रदेश सरकार का सरकारी हवाई जहाज उन्हें लेने के लिए रवाना होने वाला था. इसी बीच दिग्विजय सिंह की एंट्री हो गई. दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश विधायक दल का नेता चुन लिया गया. इसके बाद दो बार दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहे. कहा जाता है कि अगर दिग्विजय सिंह एक कदम भी पीछे खींच लेते तो माधवराव सिंधिया को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया जाता. हालांकि इस रणनीति के पीछे भी पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का राजनीतिक हस्तक्षेप माना जाता है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया आगे बढ़े तो जयवर्धन सिंह को मैदान में उतारा
माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बखूबी आगे बढ़ाया. उन्होंने भी जन जन के नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई. जब केंद्रीय मंत्री के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताजपोशी हुई, उसी समय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति में लाने का निर्णय ले लिया. इसके बाद जयवर्धन सिंह को मैदान में उतारा गया. जयवर्धन सिंह दो बार लगातार विधायक रह चुके हैं.
इसके अलावा कमलनाथ सरकार में हुए नगरीय प्रशासन मंत्री भी रह चुके हैं. राजनीति के जानकार मानते हैं कि जब भविष्य में सीएम पद की कुर्सी को लेकर बात सामने आती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने जयवर्धन सिंह को खड़ा कर दिया जाता. हालांकि अब बात पुरानी हो चुकी है, क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में नहीं है बल्कि बीजेपी में आ गए हैं. बावजूद इसके हर बार ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह में राजनीतिक रोड़े दिग्विजय सिंह की ओर से ही सामने आते रहे हैं.
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