Madhavrao Scindia Birthday: राजनीति में जब भी दोस्ती की मिसाल दी जाती है तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की दोस्ती के किस्से भी सुनाए जाते हैं. सिंधिया और गांधी परिवार की दोस्ती 2 पीढ़ियों तक चली. जैसा याराना राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया के बीच था वैसा ही 16 साल तक ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी के बीच रहा. हालांकि राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया की दोस्ती ने राजनीति के कई दिग्गजों को सियासत के मैदान में शिकस्त दी मगर राहुल और ज्योतिरादित्य की दोस्ती शुरू से ही उतनी सफल नहीं रही.
माधवराव सिंधिया की 78वीं जयंती
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की आज 78वीं जयंती है. भले ही ग्वालियर में माधवराव सिंधिया की जयंती के उपलक्ष पर मैराथन दौड़ से लेकर भजन संध्या तक आयोजित की जा रही है, मगर माधवराव सिंधिया को पूरा मध्य प्रदेश याद कर रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया अपनी साफ छवि और मध्यप्रदेश के लिए कई सौगात देने वाले नेताओं में गिने जाते रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया की दोस्ती लंबे समय तक चली.
एक दूसरे के बिना नहीं लेते कोई फैसला
दोनों ही एक दूसरे की सलाह के बिना राजनीति का कोई बड़ा फैसला नहीं करते थे. यही वजह रही कि दूसरी पंक्ति के नेताओं को हमेशा से माधवराव सिंधिया से जलन भी रही लेकिन शीर्ष नेतृत्व का साथ होने की वजह से कोई उनका कुछ भी नहीं कर सका. राजनीति के दिग्गज इस बात को मानते हैं कि सिंधिया जैसे नेता सदियों में जन्म लेते हैं और उनकी उनकी कार्यशैली ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण रही है.
राजीव और माधव की जुगलबंदी ने किया था किला फतह
ग्वालियर से 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा चुनाव के लिए पर्चा भर दिया. उस समय सिंधिया और वाजपेई परिवार के बीच भी काफी नजदीकी रही थी. अटल बिहारी वाजपेयी ने जब माधवराव सिंधिया से पूछा कि वे ग्वालियर से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं तो माधवराव सिंधिया ने सोची-समझी रणनीति के तहत इंकार कर दिया. इस दौरान राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया ने एक डमी उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया.
जब सिंधिया ने वाजपेयी को हराया
इसके खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पर्चा भर दिया लेकिन निर्वाचन कार्यालय पहुंचकर एन वक्त पर माधवराव सिंधिया ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी और माधवराव सिंधिया के बीच कड़ा मुकाबला हुआ है, मगर सिंधिया ने 175000 वोटों से अटल बिहारी वाजपेयी को हरा दिया. अटल बिहारी वाजपेयी की हार के बाद माधवराव सिंधिया पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के और भी करीबी बन गए. इस घटनाक्रम के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी ग्वालियर से चुनाव लड़ने का नहीं सोचा. वे मध्य प्रदेश के विदिशा, उत्तर प्रदेश के लखनऊ सहित अन्य लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ते रहे.
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