MP Politics : मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में बारिश का सीजन आमतौर 15 से 20 जून तक शुरु हो जाता है. विधानसभा चुनावों (Assembly Election) से पहले प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार के लिए ये एक चुनौती है. सड़कों और पुलों के अभाव के कारण प्रदेश के कई गांव टापू में बदल जाते हैं. प्रदेश की सत्ता में चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के मेनिफेस्टो में सड़क और पुल मुख्य बुनियादी मुद्द रहता है. हालांकि  बुधवार (25 मई) को सीएम शिवराज सिंह चौहान 17 जिलों से गुजरने वाली मेगा सड़क प्रोजेक्ट की सौगात दी, साथ ही 9 पुलों के निर्माण की भी मंजूरी दी. 


साल 2023 के अंतिम महीनों नवंबर- दिसंबर में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव होना है. ऐसे में सीएम शिवराज सिंह चौहान का ये ड्रीम प्रोजेक्ट इतनी जल्दी पूरा हो जाएगा, इसकी संभावना कम ही है. चुनावों में अब महज छह महीने का समय ही शेष बचा है. मध्य प्रदेश के दोनों ही प्रमुख दल बीजेपी और कांग्रेस विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जोरशोर से जुटी हैं. वर्तमान में मध्य प्रदेश की सत्ता में सीएम शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली बीजेपी की सरकार है. साल 2018 में कांग्रेस ने आवास, सड़क, पुल और किसानों के कर्ज माफी जैसे बुनियादी मुद्दों के साथ विधानसभा चुनाव में उतरी थी. इन मुद्दों के बलबूते वह प्रदेश की सत्ता में काबिज होने सफल भी रहे. बारिश के कारण सड़क और पुल के अभाव में पैदा होने वाली इस समस्या को कांग्रेस विधानसभा चुनावों में भुनाने की पूरी कोशिश करेगी. 


आजादी के 77 साल बाद भी कई गांव बुनियादी सुविधाओं वंचित


जब से मध्य प्रदेश विधानसभा का गठन हुआ है और चुनावों की शुरुआत हुई है, तब से आज तक मध्य प्रदेश के हर विधानसभा चुनावों में सड़क, पानी और बिजली मुख्य मुद्दा रहा है. आज भी मध्य प्रदेश में कई ऐसे गांव है जहां आजादी के 77 सालों बाद भी बिजली नहीं पहुंची है, वहीं कई गांव ऐसे भी हैं जहां अभी तक सड़कें भी नहीं पहुंची हैं. जिन गांवों में सड़क नहीं है उन गांवों के ग्रामीणों के बारिश के चार महीने किसी जेल से कम नहीं होते हैं. ग्रामीण पूरे चार महीने तक अपने घरों में ही कैद होकर रह जाते हैं. हालात ऐसे हो जाते हैं कि शासन प्रशासन को ऐसे गांवों तक बारिश से पहले ही स्वास्थ्य संबंधी दवाई गोली आदि व्यवस्थाओं के इंतजाम करना पड़ता है. हर चुनावों में जन प्रतिनिधियों द्वारा इन गांवों की परेशानियों का दूर करने का आश्वासन दिया जाता है, लेकिन चुनाव बाद यह आश्वासन गुम हो जाते हैं. 


कांग्रेस को बारिश से ऐसे होगा फाएदा?


इस बार विधानसभा के चुनाव बारिश के बाद नवंबर- दिसंबर महीने में होने जा रहे हैं. सियासी जानकारों का मानना है कि इस बार की बारिश कांग्रेस के लिए काफी फायदेबंद साबित हो सकती है. बारिश में ग्रामीण सड़क- पानी की समस्या से जूझेंगे, ऐसे में उनकी समस्याओं के जख्म पूरी तरह से हरे भरे रहेंगे और ठीक उसी समय चुनाव होंगे. कांग्रेसियों का मानना है कि ग्रामीणों की इस परेशानी का फायदा उन्हें जरूर मिलेगा. बता दें बीते वर्ष 2022 के जुलाई महीने की 16 तारीख को श्योपुर जिले के सुंडी गांव में बारिश ने काफी तबाही मचाई थी. पूरा गांव टापू में तब्दील हो गया था. ग्रामीण चारों तरफ से बारिश के पानी से घिर गए थे. ग्रामीणों का मेन रोड से संपर्क ही कट गया था. पार्वती नदी में आई बाढ़ की वजह से लगातार 17 घंटे तक ग्रामीण पानी से घिरे रहे थे. 


सीएम शिवराज के गृह जिले में 50 गांव हो जाते हैं टापू में तब्दील
बता दें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर की चारों ही विधानसभा क्षेत्रों में भी 50 से अधिक ऐसे गांव है जो बारिश के समय टापू में तब्दील हो जाते हैं. ग्रामीणों के लिए यह चौमासे किसी परेशानी से कम नहीं होते हैं. बात आष्टा विधानसभा क्षेत्र के बोरखेड़ा- रनायल जोड़ की करें तो यहां से पार्वती नदी गुजरती है. यहां एक पुलिया बनी है. यह पुलिया दो जिले सीहोर और शाजापुर को जोड़ती है, लेकिन पुलिस महज दो फीट ऊंची है, जरा सी बारिश में पुलिया के ऊपर से पानी बहने लगता है और ग्रामीणों का सीहोर और शाजापुर जिले से संपर्क कट जाता है. 


इसी तरह मुगली आष्टा के बीच पपनास नदी पर रपटा बना है वह एक फीट ऊंचा है. जरा सी बारिश में इस रपटे पर पानी आ जाता है. तीन साल पहले ही इस रपटे से बोलेरो कार नीचे गिर गई थी, जिससे तीन लोगों की मौत हो गई थी. वहीं आष्टा विधानसभा क्षेत्र के ही मालीखेड़ा गांव में भी यही हालात है. यहां भी रपटा बना है. पूरे चार महीने ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.


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