Madhya Pradesh Elections 2023: मध्य प्रदेश में इन दिनों चुनावी बिसात बिछाई जा रही है. बीजेपी एक बार फिर सत्ता पाने के लिए जीन-जान से जुटी है. शिवराज सिंह चौहान पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं. छात्र राजनीति से संसदीय राजनीति में आए शिवराज सिंह चौहाने के लिए पांचवीं बार का सफर आसान नहीं दिख रहा है. प्रदेश में लगातार तीन बार सरकार चलाने के बाद 2018 के चुनाव में मिली हार ने शिवराज के सामने कई प्रतिद्वंदी खड़ा कर दिए .
शिवराज का सियासी सफर
उमा भारती के इस्तीफे के बाद शिवराज सिंह चौहान 2005 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. अपने व्यक्तित्व और कामकाज की बदौलत वे 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिला पाने में कामयाब रहे. इस तरह वो लगातार तीन बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. लेकिन 2018 के चुनाव में मली हार से सत्ता उनके हाथ से चली गई.इसे शिवराज का करिश्मा कम होने का प्रतीक माना गया. लेकिन मार्च 2020 में वो जोड़-तोड़ से फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रहे.
पांच मार्च 1958 को सीहोर जिले के जैत गांव में प्रेम सिंह चौहान और सुंदर बाई चौहान के घर जन्मे शिवराज सिंह ने 16 साल की उम्र में राजनीति शुरू की थी.वो 1975 में पहली बार कोई चुनाव लड़े. वो छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे.इसके बाद वो संगठन और संसद की सीढ़ियां चढ़ते हुए वो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं.
प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर तक की जिम्मेदारियां
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर कहते हैं कि छात्र संगठन और युवा मोर्चा में शिवराज को जो भी जिम्मेदारी मिली, उसे उन्होंने बड़ी कुशलता से निभाया.वो राष्ट्रीय पदाधिकारी भी रहे. इसी वजह से वो चुनावी राजनीति में आए.
शिवराज ने भोपाल से दिल्ली तक में मिली जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया. उन्होंने इस वक्त का अच्छा इस्तेमाल किया और दिल्ली में बीजेपी के बड़े नेताओं से दोस्ती बनाई. उन्होंने अरुण जेटली, लालकृ्ष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन को साधा.उन्हें 2000 में भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.उसी साल वो मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. उस वक्त मध्य प्रदेश की जिम्मेदारी पिछड़े वर्ग से ही आने वाली उमा भारती के पास थी.साल 2003 के चुनाव में पार्टी ने शिवराज को कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा. लेकिन वो 21 हजार वोटों से चुनाव हार गए.इसके बाद उमा भारती और बाबूलाल गौर की लड़ाई में शिवराज को मौका मिल गया.वो पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने.वो बुधनी सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने.
शिवराज सिंह चौहान का करिश्मा
साल 2008 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने शिवराज के नेतृत्व में लड़ा. इस चुनाव में बीजेपी 143 सीटें जीतने में कामयाब रही. कांग्रेस को इस चुनाव में 71 सीटें मिलीं. शिवराज के ही नेतृत्व में बीजेपी को 2013 के चुनाव में और बड़ी जीत मिली. बीजेपी 165 सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं कांग्रेस के खाते में केवल 58 सीटें ही आईं. बीजेपी यह चुनाव तो जीत गई लेकिन खुद शिवराज व्यापमं घोटाले के आरोपों से बुरी तरह घिर गए.इस घोटाले की आंच शिवराज की पत्नी, पिता, मामा और चचेरे भाई तक आई थी.
वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि व्यापमं घोटाले में जो नाम आए उनमें से ज्यादातर निचले स्तर के लोग ही पकड़े और दंडित किए गए. कांग्रेस ने इस मुद्दे को भुनाया. इसका असर 2018 के चुनाव में दिखा और बीजेपी महज कुछ सीटों से ही सत्ता की कुर्सी से दूर हो गई. इस चुनाव में बीजेपी को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं थीं. इस तरह कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता में आई. कमलनाथ सरकार केवल 15 महीने ही चल पाई. मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए. उसी महीने शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए.
चौथी बार जोड़-तोड़ से बने मुख्यमंत्री
जोड़ तोड़ से मुख्यमंत्री बने शिवराज से चौथी बार सत्ता संभालने के बाद अपनी स्टाइल बदल दी. वो उदार छवि से बाहर आए. उन्होंने अपराधियों से बुलडोजर से निपटना शुरू कर दिया और बेटियों के लिए कई योजनाएं लेकर आए.वो महाकाल प्रोजेक्ट के जरिए हिंदुओं को साधने में जुट गए. दलित-आदिवासियों को सताने वाले अपने ही कार्यकर्ताओं पर वो रासुका लगाने से भी पीछे नहीं हटे. वो पीड़ित आदिवासी के पैर पखारते नजर आए.यह सब उनकी बीजेपी के बिखरते जनाधार को समेटने की कोशिश थी.
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर कहते हैं कि शिवराज सिंह बीजेपी के लिए हमेशा से एसेट रहे हैं, वो कभी बोझ नहीं रहे. इस चुनाव में भी अगर शिवराज सिंह को माइनस कर दें तो बीजेपी में एक बहुत बड़ा वैक्यूम खड़ा हो जाएगा. शिवराज ने अपना एक बहुत बड़ा जनाधार तैयार किया है. वह बीजेपी का जनाधार है. चुनाव में पर्सनालिटी बहुत बड़ा फैक्टर होती है, वह शिवराज सिंह चौहान के पास है.
मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान का महत्व
अब मध्य प्रदेश एक बार फिर चुनाव के मुहाने पर खड़ा है.ऐसे में वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के लिए बहुत जरूरी हैं. उनकी छवि है. उनका नाम है. उनका काम है.उनको हर गांव और तालुका के लोग जानते हैं. इसलिए शिवराज बीजेपी की मजबूरी नहीं बल्कि जरूरी हैं.
शिवराज सिंह चौहान सनातन विश्वास और विकास के दम पर एक बार फिर सत्ता में आने का दम भर रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र कहते हैं कि यह चुनाव शिवराज की परीक्षा का सबसे कड़ा और कठिन दौर है.शायद इसी वजह से वो बड़ी तेजी से इस चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. वो कहते हैं कि इस समय उन्हें मध्य प्रदेश बीजेपी में ऐसा कोई नेता नहीं दिखता है जो शिवराज के जितना मेहनत करता हो.वहीं गिरिजाशंकर कहते हैं कि बीजेपी के लिए यह अच्छी बात है कि उसके पास शिवराज जैसा मजबूत जनाधार वाला नेता है.
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