Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में लगातार पांच साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे राज्य के कर्मचारियों को अभी भी इंतजार ही है. यह इंतजार कब खत्म होगा यह कोई नहीं जानता. जिम्मेदार लोग सिर्फ बैठकों में व्यस्त हैं और भरोसा दिलाया जा रहा है कि सब ठीक होगा लेकिन कर्मचारियों का सब्र अब टूटने लगा है क्योंकि प्रमोशन का इंतजार करते-करते 50,000 से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है.
हाईकोर्ट ने किया था निरस्त
प्रदेश में 2016 से सरकारी विभागों में प्रमोशन नहीं हो रहा है. इसका प्रमुख कारण हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) द्वारा 2002 में बनाए गए प्रमोशन नियम निरस्त किया जाना है. तर्क दिया गया है कि सेवा में अवसर का लाभ सिर्फ एक बार दिया जाना चाहिए. नौकरी में आते समय आरक्षण का लाभ मिल जाता है फिर पदोन्नति में भी आरक्षण का लाभ मिल रहा था. इसे लेकर सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को आपत्ति थी. इसलिए हाईकोर्ट ने पदोन्नति का नियम ही खारिज कर दिया. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरक्षण रोस्टर के हिसाब से जो पदोन्नति हुई उन्हें रिवर्ट किया जाए. जबसे इस निर्णय को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तभी से मामला उलझा हुआ है.
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विधानसभा में भी उठा था मामला
प्रमोशन का फार्मूला तय करने के लिए गठित कैबिनेट कमेटी की कई बैठकें हुईं लेकिन रास्ता नहीं निकल सका. सरकारी आकलन के तहत यदि कर्मचारियों को प्रमोशन मिलता है तो खजाने पर सालाना 2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आएगा. उधर कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हो रहे हैं लेकिन आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों सहित राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के प्रमोशन हो रहे हैं. कमलनाथ सरकार के समय में यह मामला विधानसभा में भी उठा था. तत्कालीन स्पीकर एनपी प्रजापति ने निर्देश दिए थे कि जबतक प्रमोशन का निर्णय नहीं हो जाता तबतक अफसरों को भी प्रमोशन नहीं दिया जाए. सत्ता बदलने के साथ ही निर्देश फाइलों में कैद हो गए.
नियमित कर्मचारी-अधिकारी
प्रथम श्रेणी के- 8,162
द्वितीय श्रेणी के -32,426
तृतीय श्रेणी के -4,49,896
चतुर्थ श्रेणी के -64,507
सार्वजनिक उपक्रम अर्द्धशासकीय संस्थान -47,028
विवि -4,700
नगरीय स्थानीय निकाय -34,957
ग्रामीण स्थानीय निकाय- 5,290
विकास प्राधिकरण -829