मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले प्रत्याशियों की घोषणा कर बीजेपी ने परंपरा तोड़ दी है. आम तौर पर बीजेपी आखिरी तक अपने प्रत्याशियों की सीटों का ऐलान करती रही है. बीजेपी सबसे पहले प्रत्याशियों की घोषणा ही नहीं की है बल्कि जातिगत समीकरणों को भी साधने की पूरी कोशिश की है. हिंदुत्व के रथ पर सवार बीजेपी आरक्षित सीटों पर टिकट देकर प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार का पूरा मौका दे दिया है. 


खास बात ये है कि इन सीटों पर साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी ने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के समर्थकों की सीटों पर भी तगड़ी घेराबंदी की है. इसके साथ ही टिकट बंटवारे में इस बार ज्योर्तिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को भी जगह दी गई है.


टिकटों की घोषणा के बाद से ही एबीपी की टीम इन सीटों पर जातिगत समीकरणों के खंगालने में जुट गई और कई तरह के तथ्यों और रिपोर्टों के अध्ययन के बाद हम आपको अलग-अलग सीटों पर जातियों  की संख्या और समीकरण के बारे में बताएंगे.


सबलगढ़ : मध्यप्रदेश के सबलगढ़ से बीजेपी ने सरला विजेन्द्र रावत को उम्मीदवार बनाया है. सबलगढ़ विधानसभा सीट के बारे में यह कहा जाता है कि जिस भी उम्मीदवार के पीछे रावत जुड़ जाता है वो चुनाव जीतता है. इस सीट को रावत का गढ़ कहा जाता है. 


अगर इस सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां रावत, ब्राह्मण व अनुसूचित जाति के मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इसलिए हर चुनाव में रावत समुदाय के उम्मीदवार को ही पार्टियां टिकट देती हैं.


सुमावली : इस सीट से बीजेपी ने एंदल सिंह कंसाना को अपना उम्मीदवार बनाया है. 2018 के विधानसभा चुनाव में सुमावली सीट से बीजेपी  के टिकट पर चुनाव लड़े अजब सिंह कुशवाह 53 हजार वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे.


इस चुनाव में कांग्रेस के ऐंदल सिंह कंसाना को 63 हजार वोट मिले थे. एंदल सिंह ने दस हजार वोटों से जीत हासिल की थी.कंसाना सिंधिया के साथ 2020 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे. 


सुमावली सीट के जातीय समीकरणों पर की बात करें तो यहां पर कुशवाहा बिरादरी के 42 हजार वोट हैं. इसके अलावा क्षत्रिय वोट 28 हजार, गुर्जर वोट 26 हजार, दलित वोट 36 हजार, किरार यादव 14 हजार, ब्राह्मण 16 हजार, बघेल 6500, मुस्लिम 6000, यादव अहीर 3000 व रावत जाति के 2200 वोट हैं.  इस सीट पर 2.17 लाख की वोटिंग है.


गोहद- इस विधानसभा सीट से बीजेपी ने लाल सिंह आर्य को अपना उम्मीदवार बनाया है. जिले की पांच विधानसभाओं में आरक्षित गोहद विधानसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक 16  बार चुनाव हुआ है, लेकिन शुरुआत के तीन चुनाव को छोड़कर हर बार यहां से विधायक बाहरी प्रत्याशी चुना जाता है.


साल 1957 से अब तक गोहद विधानसभा क्षेत्र से चुने गए विधायकों पर नजर डाली आए तो इस सीट पर बीजेपी का अच्छा दबदबा रहा. गोहद सीट पर ग्वालियर और भिंड जिले के रहने वाले उम्मीदवार विधायक बनते आए हैं. गोहद के रहने वाले उम्मीदवारों को यहां कम ही सफलता मिलती है.


ये सीट ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों में से एक है. जो विधानसभा सीट भिंड जिले में आती है. इस सीट पर हरिजन और क्षत्रिय वोटर निर्णायक भूमिका में रहते है. क्षत्रिय के अलावा ओबीसी वर्ग के वोटर भी चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं. जो चुनाव के नतीजों को किसी भी एक पक्ष से दूसरे पक्ष में खिसका सकता है. 


पिछोर- इस सीट से बीजेपी ने प्रीतम लोधी को उम्मीदवार बनाया है. इसे तोमर राजपूतों की नगरी कहा जाता है. केपी सिंह यहां से 30 सालों से विधायक बनते आ रहे हैं. इस विधानसभा सीट पर बीजेपी शुरू से अपनी ताकत लगाती आ रही है, लेकिन कांग्रेस के केपी सिंह ही हर बार जीतते हैं.


इस सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर कुल 2 लाख 15 हजार 517 वोटर हैं. यहां ब्राह्मण वोटर की संख्या 35 हजार है. धाकड़ समाज के 50 हजार और आदिवासी समाज के 30 हजार मतदाता हैं. जाटव और कुशवाहा वर्ग से भी 30-30 हजार मतदाता हैं. यादव और रावत समाज के भी करीब 12-12 हजार मतदाता हैं. 


चाचौड़ा- गुना जिले के इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. इसे दिग्विजय सिंह का गढ़ भी कहा जाता है. 1990 के बाद सिर्फ 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीतने में सफल रही थी. फिलहाल बीजेपी की ममता मीना यहां से विधायक हैं. इस बार बीजेपी ने प्रिंयका मीना को अपना उम्मीदवार बनाया है.


चाचौड़ा के सियासी समीकरण की बात करें तो यहां पार्टियों की जीत-हार कास्ट फैक्टर से तय होती है. इस सीट पर  मीना समाज का बोलबाला है. इसलिए बीजेपी ने मीना कार्ड के रूप में सियासी दांव चला है. 


मीना चाचौड़ा में पार्टियों की हार जीत में अहम सियासी फैक्टर हैं . दरअसल यहां दो लाख 6 हजार मतदाताओं में से 55 हजार से ज्यादा मीना समाज के वोटर्स हैं. कांग्रेस ने लंबे समय तक मीना कार्ड के जरिए यहां राज किया.  लेकिन 2013 में बीजेपी ने मीना प्रत्याशी के दम पर ही कांग्रेस को मात दी.


चंदेरी- बीजेपी ने यहां से जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को उम्मीदवार बनाया है. जगन्नाथ सिंह रघुवंशी भी सिंधिया के समर्थक हैं और वर्तमान में जिला पंचायत के अध्यक्ष हैं.


चंदेरी विधानसभा चुनाव में जातिगत आंकड़ों की बात करें तो यहां पर 25 हजार अनुसुचित जनजाति, 21 हजार अनुसुचित जाति , 18 हजार यादव समाज, 17 हजार लोधी समाज , 15 हजार रघुवंशी, 14 हजार ब्राह्मण, 14 हजार मुस्लिम, 8.5 हजार कुशवाह, 6 हजार गुर्जर, 4.5 रैकवार, 3 हजार जैन सहित अन्य समाज के वोट भी 1 हजार से लेकर 3 हजार के बीच हैं. 


बंडा- बीजेपी ने इस विधानसभा सीट से वीरेन्द्र सिंह लम्बरदार को अपना उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार इस सीट पर कांग्रेस के तरबर सिंह ने भाजपा के हरवंश सिंह को 24164 वोट से हराया था . 


बंडा विधानसभा में कुल 2 लाख 17 हजार 604 मतदाता हैं. इनमें से 80 हजार 566 मतदाता शाहगढ़ तहसील में हैं. यहां आने वाली 121 पोलिंग बूथ पर कुल 40485 पुरुष और 40081 महिला मतदाता हैं.  


इनमें करीब 20-20 हजार यादव और एससी वर्ग के मतदाता हैं.  पूरे बंडा में लोधी समाज के बाद एससी और यादव वोटर ही ज्यादा हैं. ये वोटर  चुनावों में बड़ी भूमिका निभाते हैं.


महाराजपुर- छतरपुर जिले की महाराजपुर सीट से बीजेपी ने कामख्या प्रताप सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार कांग्रेस के नीरज दीक्षित ने बीजेपी के मानवेंद्र सिंह को 14005 वोट से हराया था.


जातिगत समीकरणों की बात करें तो चौरसिया और अहरिवार समाज के बाहुल्य वाले इलाके में ब्राह्मण मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं.


पथरिया- बीजेपी ने यहां से लखन पटेल को टिकट दिया है. यहां बसपा की रामबाई ने बीजेपी के लखन पटेल को 2205 वोट से हराया था.बीएसपी ने ये  चुनाव जीत कर बीजेपी के 20 साल के किले का ढ़हा दिया था.  


पथरिया विधानसभा में सबसे ज्यादा कुर्मी मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर एससी, तीसरे नंबर पर लोधी, चौथे नंबर राजपूत, पांचवे नंबर पर ब्राम्हण हैं.  अन्य जातियां भी हैं.  कुर्मी, एससी व लोधी मतदाता प्रत्याशी की जीत तय करते है.


गुन्नौर (पन्ना) - अनुसूचित जाति सीट से बीजेपी ने राजेन्द्र कुमार वर्मा को उम्मीदवार बनाया है इस सीट पर कांग्रेस के शिवदयाल बागरी ने बीजेपी के राजेश कुमार वर्मा को 1984 वोट से हराया था.


बीजेपी ने इस बार यहां पर जातिगत समीकरण के आधार पर चुनावी जीत रखने की कोशिश की है. गुनौर आरक्षित सीट का इतिहास है कि यहां कोई विधायक रिपीट नहीं हो पाता है.


चित्रकुट- बीजेपी ने यहां से सुरैन्द्र सिंह गहरवार को उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद क्षत्रिय रणनीति बनाने में माहिर दिखते हैं.  जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर कुल 1.98737 मतदाता है. 58 हजार ब्राह्मण मतदाता, 53 हजार हरिजन-आदिवासी, 16 हजार यादव, 14 हजार कुशवाहा, 12 हजार मुस्लिम, 7 हजार क्षत्रिय मतदाता, 38 हजार अन्य मतदाता हैं. यहां से 6 बार विधानसभा चुनावों में क्षत्रिय चुनाव जीतते आए हैं.


छतरपुर- बीजेपी ने इस बार ललिता यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी ने बीजेपी की अर्चना गुड्‌डू सिंह को 3495 वोट से हराया था.  ललिता यादव 1997 से लेकर 2004 तक छतरपुर महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही हैं.


उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2008 में लड़ा था, और जीत हासिल की थी. 2013 में एक बार फिर छतरपुर से विधायक चुनी गई थी. 2018 में बीजेपी ने अर्चना गुड्डु सिंह को दिया था, जो कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी से 3 हजार 495 वोटों से हार गयी थी.


पुष्पराजगढ़- बीजेपी ने हीरा सिंह श्याम को अपना उम्मीदवार बनाया है. यह शहडोल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का एक खंड है. हीरा सिंह श्याम एक युवा चेहरा और बीजेपी के जिला महामंत्री हैं. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 


बड़वारा- धिरेन्द्र सिंह को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार कांग्रेस के  विजयराघवेन्‍द्र सिंह 84236 वोटों से जीते थे. बीजेपी के मोती कश्यप दूसरे नंबर पर थे. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 


बरगी- बीजेपी ने इस सीट से नीरज ठाकुर पर दांव खेला है. पिछले विधानसभा चुनाव में बरगी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक प्रतिभा सिंह को कांग्रेस प्रत्याशी संजय यादव से हार का सामना करना पड़ा था. संजय यादव को 86901 और प्रतिभा सिंह को 69368 वोट मिले थे. पार्टी ने जातीय समीकरण को देखते हुए इस बार नीरज ठाकुर  के नाम पर दांव खेला है. बरगी सीट में यादव और लोधी वोटरों का दबदबा है. नीरज लोधी समुदाय से आते है. 


जबलपुर - जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट से पिछले चुनाव में अंचल सोनकर को लगातार दूसरी बार कांग्रेस उम्मीदवार लखन घनघोरिया से हार का सामना करना पड़ा था. लखन घनघोरिया को 90206 और अंचल सोनकर को 55070 वोट मिले थे. इस बार भी इस सीट से बीजेपी ने अंचल सोनकर को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट मुस्लिम और अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों की बहुलता वाला क्षेत्र है. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.


पेटलावाद  - बीजेपी ने निर्मल भूरिया को अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां पर कुल वोटर- 247585 हैं. महिला वोटर की संख्या 123989 और पुरुष वोटर की संख्या 123590 है. यहां पर आदिवासी चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 


कुक्षी -  बीजेपी ने जयदीप पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है. ये सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट है. यहां अनुसूचित जनजाति ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं. हर बार यहां से कांग्रेस उम्मीदवार को वोट मिलते आए हैं. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 


यहां अनुसूचित जनजाति वोट निर्णायक स्थिति में हैं. ऐसे में आदिवासी बाहुल्य डही क्षेत्र जो कांग्रेस का गढ़ है, वहां के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. हर बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को यहां से इतने वोट मिलते आए हैं कि कुक्षी क्षेत्र के मतदाताओं का झुकाव बीजेपी के साथ होने के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं.


हालांकि, पाटीदार और सिर्वी समाज भी इस इलाके में प्रभावी हैं. कुक्षी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यहां एसटी वोटर्स की संख्या अन्य समुदायों से अधिक है, आदिवासी मतदाता ही यहां निर्णायक भूमिका में होते है. सीट पर पाटीदार समुदाय की तादाद भी चुनावी नतीजों को प्रभावित करती है. 


धरमपुरी  बीजेपी ने कालू सिंह ठाकुर को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 


राऊ- मधु वर्मा को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां पर सिख मराठी वोट ज्यादा हैं. यहां पर मराठी खाटी, सिंधी और पंजाबी वोटर बीजेपी समर्थक माने जाते हैं.


राऊ क्षेत्र में आठ वार्ड महाराष्ट्रीयन बहुल है. इन्हीं वोटों को बीजेपी साधने में असफल होती आ रही है. इसी वजह से वह जीत नहीं पा रही है. ब्राह्मण, मराठी, मुस्लिम वोट निर्णायक माने जाते हैं.  यहां पर सिख मराठी वोट ज्यादा मायने रखता है. 


राऊ में चाहे वो जीतू पटवारी हो या जीतू जिराती हो दोनों की जीत के पीछे खाती समाज है. दरअसल ये सीट खाती समाज बाहुल्य सीट है और यहां इस समाज के वोटरों की संख्या करीब 22 हजार है. एससी-एसटी वर्ग का नंबर दूसरे नंबर पर आता है. जिसके मतदाताओं की संख्या करीब 35 हजार है.  मुस्लिम वोटर्स की संख्या  करीब 28 हजार है. मराठी वोटर्स की संख्या करीब 20 हजार है.  सिक्ख समाज के वोटर्स की संख्या करीब 14 हजार है. पाटीदार समाज और सिंधी समाज के वोटर्स की संख्या करीब 12-12 हजार है.


घटिया विधान सभा- घटिया विधानसभा शुरू से ही बलाई समाज का गढ़ रहा है. यहां पर दो लाख से ज्यादा मतदाता हैं जिनमें 40,000 वोट बलाई समाज से आते हैं. इसके अलावा 15000 आंजना समाज, 10000 ब्राह्मण और 20000 राजपूत समाज के वोट है. इसी आंकड़े को दृष्टिगत रखते हुए हमेशा से यहां बलाई समाज के प्रत्याशी कोई राजनीतिक पार्टियों मैदान में उतारती है. वर्तमान में भी दोनों ही प्रत्याशी बलाई समाज से हैं.


तराना- तराना विधानसभा सीट पर भी भलाई वोटरों की संख्या 25000 के आसपास है लेकिन यहां पर बीजेपी ने नया प्रयोग करते हुए पूर्व विधायक ताराचंद गोयल को मैदान में उतारा है  . रविदास समाज के भी यहां 12000 वोट हैं. रविदास समाज से जुड़े ताराचंद गोयल मैकेनिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. तराना विधानसभा में ठाकुर समाज 22000 वोट हैं जबकि ब्राह्मण समाज के 8000 मतदाता है. यहां जाट आंजना चौधरी और अन्य मिलाकर 25000 वोट है. यहां भी कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख के आसपास है.