जबलपुर: मध्यप्रदेश में अभियोजन की गलती से एक निर्दोष व्यक्ति के 4 हजार 740 दिन जेल में काटने का मामला सामने आया है.अब मध्यप्रदेश हाई कोर्ट( Madhya Pradesh High Court) ने न केवल उसे बाइज्जत बरी किया है बल्कि सरकार को उसे 42 लाख रुपये मुआवजा देने के आदेश भी दिए है.
हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा पाए व्यक्ति को निर्दोष करार दिया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में निचली अदालत से उम्रकैद की सजा पाए व्यक्ति को निर्दोष करार दिया और उसे मुआवजा देने के निर्देश भी दिए.जस्टिस अतुल श्रीधरन व जस्टिस सुनीता यादव की खंडपीठ ने कहा कि द्वेषपूर्ण अभियोजन के कारण आवेदक का पूरा जीवन अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया.कोर्ट ने कहा कि निर्दोष होते हुए भी उसे 4 हजार 740 दिन जेल में काटने पड़े,इसलिए सरकार उसे 42 लाख रुपए का मुआवजा दे.कोर्ट ने सरकार को 90 दिन के भीतर इस राशि का भुगतान करने को कहा है और ऐसा नहीं होने पर सालाना 9 फीसदी ब्याज भी देना होगा. कोर्ट ने कहा कि आवेदक चाहे तो द्वेषपूर्ण अभियोजन से उसे हुए नुकसान के लिए सरकार के खिलाफ सक्षम फोरम में अपील भी कर सकता है.
भोपाल की अदालत ने चंद्रेश को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सुनाई थी सजा
प्रकरण के अनुसार बालाघाट निवासी चंद्रेश मर्सकोले पर अपनी प्रेमिका की हत्या और उसके शव को नदी में फेंकने का आरोप था.घटना 19 अगस्त 2008 की है.भोपाल की अदालत ने 31 जुलाई 2009 को चंद्रेश को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.चंद्रेश एमबीबीएस के अंतिम वर्ष का छात्र था.घटना के दिन उसने सीनियर रेसिडेंट डॉक्टर हेमंत वर्मा से होशंगाबाद जाने के लिए गाड़ी मांगी.उस पर आरोप है कि पहले उसने अपनी प्रेमिका की हत्या की और बाद में रास्ते में उसका शव पचमढ़ी स्थित रावी नदी में फेंक दिया.
चंद्रेश ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी
चंद्रेश ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की.उसकी ओर से अधिवक्ता एचआर नायडू ने पैरवी की.उन्होंने दलील दी कि असल में डॉ. हेमंत वर्मा ने हत्या की है और खुद को बचाने के लिए उसने चंद्रेश को झूठे केस में फंसा दिया.उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. वर्मा और तत्कालीन आईजी भोपाल रेंज शैलेन्द्र श्रीवास्तव के आपस में अच्छे ताल्लुक थे.डॉ. वर्मा ने ही सबसे पहले आईजी को पत्र लिखा था और फोन पर भी संपर्क किया था.कोर्ट ने कहा कि पूरे प्रकरण का अवलोकन करने के बाद यह उजागर होता है कि पुलिस ने इस मामले में मुख्य आरोपी को बचाने और अपीलार्थी को फंसाने के उद्देश्य से ही दूषित जांच की है.कोर्ट ने कहा कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है और हत्या का कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं है.जांच में हत्या की वजह भी स्थापित नहीं हो पायी.
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