Bamboo Jewelery: देश का सबसे साफ शहर इंदौर अपनी स्वक्छता के लिए तो जाना ही जाता है वहीं इंदौर के बम्बू से बनाई जाने वाली ज्वेलरी के लिए भी जाना जाने लगा है. इसकी डिमांड शहर के साथ ही प्रदेश व देशभर में देखने को मिल रही है. ये ज्वेलरी बनाने वाले शेख रियाजुद्दीन अब फुटपाथ पर बैठकर अपना माल बेचने को मजबूर हैं.
पुशतैनी पेशे का कलात्मक रुप
इंदौर शहर के मध्य क्षेत्र स्थित बांस गली जो कि बांस के होने वाले कामों से पहचानी जाती है. वहां चार पीढ़ियों से बम्बू से उत्पाद बनाकर शेख रियाजुद्दीन अपने एक बहुत छोटे से घर में रहते हैं. लेकिन उन्होंने अपने हुनर से इंदौर ही नहीं देशभर में अपना नाम रोशन किया है. शेख रियाजुद्दीन का परिवार करीब चार पीढ़ियों से बम्बू के बनाए हुए उत्पादों से अपनी रोजी रोटी चला रहा है. रियाजुद्दीन ने फाइन आर्ट्स की मास्टर डिग्री भी ले रखी है. उनका कहना है कि इसी पुशतैनी पेशे को कलात्मक रूप से आगे बढाने के लिए बम्बू के जेवरात, फ्लॉवर पॉट और कप आदि खूबसूरत उत्पाद बनाना शुरू किए. इस काम में उनके पिता शेख नसीमुद्दीन और पत्नी सहित परिवार के और भी सदस्य सहयोग करने लगे हैं. उनका कहना है कि हमारे द्वारा बनाए जाने वाले बम्बू के आभूषण की काफी डिमांड बड़ी है.
मशीनी युग में सरकारी मदद
रियाजुद्दीन को उनके इस काम के लिए विभिन्न स्तर के अवार्ड्स सर्टिफिकेट तो कई मिले हैं. लेकिन उन्हें अपने इस हुनर के मुताबिक कद्रदान ग्राहक नहीं किया है. परिवार को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिससे अब रियाजुद्दीन को अपनी कला को बेचने के लिए फुटपाथों पर उतरना पड़ रहा है. रियाजुद्दीन बताते हैं कि हमारी चार पीढियां करीब दो सौ साल से बम्बू का काम कर रही है. अब बम्बू के प्रोडक्ट बनाने में मशीन लगती है जो महंगी होने के कारण हम खरीद नहीं सकते हैं. हम चाहते हैं सरकार मदद करें ये कलाकरों का मुश्किल दौर है. अब मशीनी युग है जो उत्पाद मशीनों से बनाए जाते हैं. वह ग्राहकों को आकर्षित करते हैं. इसलिए कलात्मक घराने विलुप्त होते जा रहे हैं.
बच्चों तक पहुंचाने की मांग
रियाजुद्दीन पहले देश भर में घूम कर स्टॉल लगाते थे लेकिन लागत भी नहीं निकाल पाने के कारण अब इंदौर में ही फुटपाथ पर बेचने को मजबूर हैं. आर्ट गैलरी या एग्जीबिशन में हम स्टॉल लगाना चाहते हैं. लेकिन इनका किराया खर्चा ज्यादा होने से हम स्टॉल नहीं लगा पाते हैं. हम चाहते हैं हमें सस्ती दरों पर बड़े एग्जीबिशन में स्टॉल लगाने को मिले. वहीं प्रदेश सरकार से दरख्वास्त है कि स्कूल कालेजों में कला व चित्रकला अनिवार्य रूप से करे व हमारे जैसे कई कलाकार है जिनकी नियुक्ति की जाए. ताकि वह इस चित्रकला व मूर्तिकला के अपने हुनर को बच्चों को सीखा पाएं.
अब तक नहीं मिली कोई सहायता
रियाजुद्दीन के पिता नसीमुद्दीन शेख के अनुसार बम्बू से उनके द्वारा गुलदान, नेकलेस आदि बनाते हैं. मैं बम्बू के प्रोडक्ट बनाकर देता हूं. बेटा रियाज उस पर कलात्मक डिजाइन बनाता है. वहीं कोरोना के कारण भी और ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. सरकारों के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को हमने इस कला के लिए लिखा और मिलकर बताया लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाई. कई सम्मान पत्र तो मील है पद्मश्री के लिए भी कई बार नाम दिया गया है. लेकिन आज तक कोई राष्ट्रीय लेवल पर सम्मान नहीं मिल पाया है. जिसकी कसक आज भी दिल में है. सरकार कुछ ऐसे कलाकरों के हित में करे जिससे कलाकारों का हौसला बना रहे और वो अपने वजूद को जिंदा रख सकें.
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