Madhya Pradesh News : या तो सरकार दस जनवरी के पहले तक मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित कर दे या फिर 10 जनवरी को राज्य के मुख्य सचिव अदालत में आकर बताएं कि आदेश का पालन क्यों नही हुआ. राज्य के मुख्य सचिव को अदालत की अवमानना का दोषी माना जायेगा. अदालत के आदेश की अवहेलना पर हाईकोर्ट ने एक अवमानना प्रकरण में सख्त रुख अपनाया है. मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ एवं जस्टिस अंजुली पालो की खंडपीठ ने कहा है कि अगली सुनवाई तक सरकार यदि आदेश का पालन नहीं करती तो मुख्य सचिव को अदालत में हाजिर होकर इसका कारण बताना पड़ेगा. मामले पर अगली सुनवाई 10 जनवरी 2022 को होगी.

कोरोना के कारण नहीं हुई सुनवाई
हाई कोर्ट के किशन पिल्लई सहित 109 कर्मचारियों ने उच्च वेतनमान और भत्ते देने के लिए 2016 में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर हाईकोर्ट ने 2017 में राज्य सरकार को आदेश जारी किए थे. आदेश का पालन नहीं होने पर 2018 में अवमानना याचिका प्रस्तुत की गई. हाईकोर्ट ने 10 मार्च 2021 को पिछली सुनवाई में कहा था कि 30 अप्रैल 2021 तक आदेश पर अमल नहीं हुआ तो विधि, सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग के प्रमुख सचिवों को कोर्ट में हाजिर होना होगा. लेकिन कोरोना के कारण मामले पर सुनवाई नहीं हो पाई.


प्रस्ताव मिलने के बाद हुई 22 बैठकें
अवमानना मामले पर सोमवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ एवं हिमांशु मिश्रा ने कहा कि अब इस मामले में मुख्य सचिव को ही पक्षकार बनाया जाए. उन्होंने कहा कि दरअसल हाईकोर्ट द्वारा प्रस्तुत पे स्केल की योजना को अभी तक कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है. पिछले आदेश के बाद 22 कैबिनेट की बैठकें हो चुकी हैं. वहीं सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आरके वर्मा ने अंडरटेकिंग दी कि 10 जनवरी तक इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी जाएगी. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने उक्त सभी अनावेदकों के नाम हटाकर कर उनके स्थान पर मुख्य सचिव को नया पक्षकार बना दिया और उन्हें नोटिस जारी किए हैं.


भेजा जा चुका है प्रस्ताव
हाईकोर्ट में कार्यरत सेक्शन ऑफिसर, स्टेनोग्राफर, रीडर्स, निज सचिव, ड्राइवर समेत सभी कर्मचारियों को नया पदनाम एवं वेतन का निर्धारण करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 229 में चीफ जस्टिस को दिया गया है. मप्र हाईकोर्ट के कर्मियों के लिए वेतनमान का प्रस्ताव सरकार को भेजा जा चुका है. इसे कैबिनेट में रखा जाना है क्योंकि हाईकोर्ट ऑफ मध्यप्रदेश सर्विस रूल्स 2017 में संशोधन करना होगा.


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