मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की भूमि पूरे भारत में अपनी उर्वरक क्षमता के लिए जानी जाती है. लेकिन मध्य प्रदेश के हजारों गांव ऐसे हैं जो आज भी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister) की महत्वकांक्षी योजना के अंतर्गत जल जीवन मिशन का महत्वपूर्ण स्थान है. प्रदेश में इसे पूरी तरह से दूर करने के लिए मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन पर जोरदार काम किया जा रहा है.
2024 तक सभी गांव में पेयजल उपलब्ध कराने का रखा गया है लक्ष्य
फिलहाल मध्यप्रदेश में जलाभिषेक अभियान भी चलाया जा रहा है. मध्यप्रदेश जल जीवन मिशन को सफल बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 2024 तक सभी गांव में जल जीवन मिशन के अंतर्गत पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन मध्यप्रदेश के 12 से 13 हजार गांव ऐसे हैं जहां जमीन भूमिगत जल की अनुपलब्धता के कारण बंजर सी हो गई है. ऐसे गांव एवं ग्राम पंचायतों में 2024 तक जल जीवन मिशन के अंतर्गत पेयजल उपलब्ध कराना सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है. दरअसल इनको लेकर अभी तक कोई कार्य योजना सुचारू रूप से नहीं बन पाई है.
सिंगल विलेज स्कीम अब तक नहीं बन पाई है
वही रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आयरन व एचडीपी पाइप के रॉ मटेरियल के दामों में खासी बढ़ोतरी होने से टेंडर लेने वाली कंपनियों व ठेकेदारों ने काम की गति घटा दी है.सबसे बड़ी परेशानी उप्र-गुजरात से आने वाली स्किल्ड लेबर व टेक्निकल टीम की है. जो पानी की टंकी, इंटकवेल व ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण करती है.यह बात इसलिए बता रहे है क्योंकि मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन का काम 2024 तक 100% पूरा होने में संशय है, क्योंकि 13 हजार गांवों की जमीन में पानी नहीं होने से सिंगल विलेज स्कीम अब तक नहीं बन पाई. हैं देशभर में मिशन एक साथ शुरू होने से ये टीम अपने अपने राज्यों में ही काम करने लगी. इस का असर छह हजार करोड़ से अधिक के कामों पर पड़ रहा है.हालात ये हैं कि पीएचई के बड़े अफसरों को मैदान में जुटना पड़ा. वहीं लापरवाही करने वाली कंपनियों को नोटिस दिए गए हैं.
विषय से संबंधित तकनीकी इंजीनियर्स की है कमी
इतना ही नहीं पीएचई व जल निगम के पास विषय से संबंधित तकनीकी इंजीनियर्स की भी कमी है .जिसके चलते एक-एक इंजीनियर पर कई स्थानों का बोझ है. वही टंकी निर्माण के लिए उत्तरप्रदेश,गुजरात से आने वाली लेबर व टेक्निकल टीम मध्यप्रदेश के अंदर जल जीवन मिशन के अंतर्गत काम करेगी जो कि पानी की टंकी,संपवेल,वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण भी करेगी लेकिन पूरे देश भर में यह मिशन एक साथ चलने के कारण तकनीकी विशेषज्ञों और एक्सपर्ट की कमी साफ तौर पर दिखाई दे रही है.
कच्चा मटेरियल भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है
वहीं दूसरी ओर वर्तमान में चल रहे यूक्रेन रूस युद्ध के कारण कच्चा मटेरियल भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है., जिसके कारण कीमतें बढ़ती जा रही हैं.और काम के टेंडर लेने वाले ठेकेदारों में कमी देखी गई है.जब एबीपी संवाददाता ने इस महत्वपूर्ण विषय में जानकारी जुटाई तो पता चला कि लगभग 12 से 14 हजार गांव ऐसे हैं जिनमें 2024 तक जल जीवन मिशन के अंतर्गत पेयजल पहुंचाना आसान नहीं होगा. खासतौर पर रतलाम,नीमच, मंदसौर, शाजापुर,झाबुआ,छतरपुर, बेतूल, छिंदवाड़ा,रायसेन,शिवपुरी, सीहोर ,ग्वालियर चंबल के कई जिले ऐसे हैं जहां के कई ग्रामीण अंचलों में भूमिगत जल का स्तर बहुत नीचे पहुंच चुका है.या बिल्कुल भी नहीं है ऐसी स्थिति में इन गांवों में पेयजल संकट को दूर करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.
मध्य प्रदेश के 31 जिलों के 26 तहसील क्षेत्रों में भूजल का होता है अति दोहन
अब देखने वाली बात यह होगी कि टेक्निकल एक्सपर्ट की टीम इन चुनौतियों का सामना कैसा करती है. और किस प्रकार से इस लक्ष्य को पूरा करने में अपना जोर आजमाती है. यदि सुचारू रूप से तकनीकी टीम समय पर काम नहीं करेगी तो यह मिशन 2024 तक पूरा होने की कोई संभावना नहीं है. वहीं मुख्य अभियंता, पीएचई मध्य प्रदेश शासन के के.के.सोनगरिया ने बताया कि 31 जिलों के 26 तहसील क्षेत्र ऐसे हैं, जहां भूजल का अति दोहन होता है. 8 ब्लॉक क्रिटिकल हैं, जहां 100% पानी निकाला जाता है.ऐसे में कहीं पानी है तो कहीं नहीं.लापरवाही पर 18 कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड किया है.
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